श्री कृष्ण जन्माष्टमी तिथि विवाद पर मेरे विचार

दयानन्द शास्त्री
दयानन्द शास्त्री
प्रिय मित्रों/पाठकों, हिंदू पर्वों के निर्णय हेतु कौन-कौन से शास्त्र प्रामाणिक हैं निष्कर्ष यह है कि विद्यमान देश, काल और परिस्थिति में विषयान्तर्गत प्रामाणिकता की दृष्टि से सर्वधर्मशास्त्रों में ‘निर्णयसिंधु’ ही श्रेयस्कर है।

जन्माष्टमी पद्मपुराण-

उत्तराखंड श्रीकृष्णावतार की कथा में वर्णन मिलता है कि ‘‘दसवां महीना आने पर भादों मास की कृष्णा अष्टमी को आधी रात के समय श्री हरि का अवतार हुआ।’’

महाभारत खिलभाग हरिवंश- विष्णु पर्व – 4/17 के अनुसार

जब भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हुए, उस समय अभिजित नामक मुहूत्र्त था, रोहिणी नक्षत्र का योग होने से अष्टमी की वह रात जयंती कहलाती थी और विजय नामक विशिष्ट मुहूत्र्त व्यतीत हो रहा था।’’

श्रीमद्भागवत- 10/3/1 के अनुसार

भाद्रमास, कृष्ण पक्ष, अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र और अर्द्ध रात्रि के समय भगवान् विष्णु माता देवकी के गर्भ से प्रकट हुए।

गर्ग संहिता गोलोकखंड-11/22-24 के अनुसार ‘‘

भाद्रपद मास, कृष्ण पक्ष, रोहिणी नक्षत्र, हर्षण-योग, अष्टमी तिथि, आधी रात के समय, चंद्रोदय काल, वृषभ लग्न में माता देवकी के गर्भ से साक्षात् श्री हरि प्रकट हुए।’’

ब्रह्मवैवर्त पुराण- श्रीकृष्ण जन्मखंड-7 के अनुसार

आधी रात के समय रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के संयोग से जयंती नामक योग संपन्न हो गया था। जब अर्ध चंद्रमा का उदय हुआ तब भगवान श्रीकृष्ण दिव्य रूप धारण करके माता देवकी के हृदय कमल के कोश से प्रकट हो गए।

ब्रह्मवैवर्त पुराण- श्रीकृष्ण जन्मखंड-8 के अनुसार

सप्तमी तिथि के दिन व्रती पुरुष को हविष्यान्न भोजन करके संयम पूर्वक रहना चाहिए। सप्तमी की रात्रि व्यतीत होने पर अरुणोदय की बेला में उठकर व्रती पुरुष प्रातः कालिक कृत्य पूर्ण करने के अनंतर स्नानपूर्वक संकल्प करें। उस संकल्प में यह उद्देश्य रखना चाहिये कि आज मैं श्री कृष्ण प्रीति के लिये व्रत एवं उपवास करूंगा। मन्वादि तिथि प्राप्त होने पर स्नान और पूजन करने से वही फल कोटिगुना अधिक होता है। उस तिथि को जो पितरों के लिये जल मात्र अर्पण करता है, वह मानो लगातार सौ वर्षों तक पितरों की तृप्ति के लिये गया श्राद्ध का संपादन कर लेता है, इसमें संशय नहीं है।
<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<< उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की सप्तमीयुक्त अष्टमी को त्याग देना चाहिए और अष्टमी युक्त नवमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतोपवास करना चाहिये। जानिए 2017 में श्री कृष्ण जन्माष्टमी पूजा मुहूर्त--- भगवान श्रीकृष्ण का ५२४४वाँ जन्मोत्सव होगा | निशिता पूजा का समय रात्रि= १२:०३+ से 1२:४७+ अवधि = ० घण्टे ४३ मिनट्स मध्यरात्रि का क्षण = १२:२५+ १५th को, पारण का समय शाम= ५:३९ के बाद ====== ---- बैष्णव् जन्माष्टमी---- पारण के दिन अष्टमी तिथि का समाप्ति समय शाम = ५:३९ रोहिणी नक्षत्र के बिना जन्माष्टमी -- *वैष्णव कृष्ण जन्माष्टमी १५/अगस्त/२०१७ को वैष्णव जन्माष्टमी के लिये अगले दिन का पारण समय = ०५:५४ (सूर्योदय के बाद) पारण के दिन अष्टमी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी रोहिणी नक्षत्र के बिना जन्माष्टमी दही हाण्डी - १५th, अगस्त को अष्टमी तिथि प्रारम्भ = १४/अगस्त/२०१७ को शाम ७:४५ बजे अष्टमी तिथि समाप्त = १५/अगस्त/२०१७ को शाम ५:३९ बजे उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की जन्माष्टमी के एक दिन पूर्व केवल एक ही समय भोजन करते हैं। व्रत वाले दिन, स्नान आदि से निवृत्त होने के पश्चात, भक्त लोग पूरे दिन उपवास रखकर, अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के समाप्त होने के पश्चात व्रत कर पारण का संकल्प लेते हैं। कुछ कृष्ण-भक्त मात्र रोहिणी नक्षत्र अथवा मात्र अष्टमी तिथि के पश्चात व्रत का पारण कर लेते हैं। संकल्प प्रातःकाल के समय लिया जाता है और संकल्प के साथ ही अहोरात्र का व्रत प्रारम्भ हो जाता है। जन्माष्टमी के दिन, श्री कृष्ण पूजा निशीथ समय पर की जाती है। वैदिक समय गणना के अनुसार निशीथ मध्यरात्रि का समय होता है। निशीथ समय पर भक्त लोग श्री बालकृष्ण की पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं। विस्तृत विधि-विधान पूजा में षोडशोपचार पूजा के सभी सोलह (१६) चरण सम्मिलित होते हैं। जन्माष्टमी की विस्तृत पूजा विधि, वैदिक मन्त्रों के साथ जन्माष्टमी पूजा विधि पृष्ठ पर उपलब्ध है। कृष्ण जन्माष्टमी पर व्रत के नियम एकादशी उपवास के दौरान पालन किये जाने वाले सभी नियम जन्माष्टमी उपवास के दौरान भी पालन किये जाने चाहिये। अतः जन्माष्टमी के व्रत के दौरान किसी भी प्रकार के अन्न का ग्रहण नहीं करना चाहिये। जन्माष्टमी का व्रत अगले दिन सूर्योदय के बाद एक निश्चित समय पर तोड़ा जाता है जिसे जन्माष्टमी के पारण समय से जाना जाता है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की जन्माष्टमी का पारण सूर्योदय के पश्चात अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने के बाद किया जाना चाहिये। यदि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र सूर्यास्त तक समाप्त नहीं होते तो पारण किसी एक के समाप्त होने के पश्चात किया जा सकता है। यदि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में से कोई भी सूर्यास्त तक समाप्त नहीं होता तब जन्माष्टमी का व्रत दिन के समय नहीं तोड़ा जा सकता। ऐसी स्थिति में व्रती को किसी एक के समाप्त होने के बाद ही व्रत तोड़ना चाहिये। अतः अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के अन्त समय के आधार पर कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत दो सम्पूर्ण दिनों तक प्रचलित हो सकता है। हिन्दु ग्रन्थ धर्मसिन्धु के अनुसार, जो श्रद्धालु-जन लगातार दो दिनों तक व्रत करने में समर्थ नहीं है, वो जन्माष्टमी के अगले दिन ही सूर्योदय के पश्चात व्रत को तोड़ सकते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी को कृष्णाष्टमी, गोकुलाष्टमी, अष्टमी रोहिणी, श्रीकृष्ण जयन्ती और श्री जयन्ती के नाम से भी जाना जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी के दो अलग-अलग दिनों के विषय में अधिकतर कृष्ण जन्माष्टमी दो अलग-अलग दिनों पर हो जाती है। जब-जब ऐसा होता है, तब पहले दिन वाली जन्माष्टमी स्मार्त सम्प्रदाय के लोगो के लिये और दूसरे दिन वाली जन्माष्टमी वैष्णव सम्प्रदाय के लोगो के लिये होती है। प्रायः उत्तर भारत में श्रद्धालु स्मार्त और वैष्णव जन्माष्टमी का भेद नहीं करते और दोनों सम्प्रदाय जन्माष्टमी एक ही दिन मनाते हैं। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के विचार में यह सर्वसम्मति इस्कॉन संस्थान की वजह से है। "कृष्ण चेतना के लिए अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय" संस्था, जिसे इस्कॉन के नाम से अच्छे से जाना जाता है, वैष्णव परम्पराओं और सिद्धान्तों के आधार पर निर्माणित की गयी है। अतः इस्कॉन के ज्यादातर अनुयायी वैष्णव सम्प्रदाय के लोग होते हैं। इस्कॉन संस्था सर्वाधिक व्यावसायिक और वैश्विक धार्मिक संस्थानों में से एक है जो इस्कॉन संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये अच्छा-खासा धन और संसाधन खर्च करती है। अतः इस्कॉन के व्यावसायिक प्रभाव और विज्ञापिता की वजह से अधिकतर श्रद्धालु-जन इस्कॉन द्वारा चयनित जन्माष्टमी को मनाते हैं। जो श्रद्धालु वैष्णव धर्म के अनुयायी नहीं हैं वो इस बात से अनभिज्ञ हैं कि इस्कॉन की परम्पराएँ भिन्न होती है और जन्माष्टमी उत्सव मनाने का सबसे उपयुक्त दिन इस्कॉन से अलग भी हो सकता है। स्मार्त अनुयायी, जो स्मार्त और वैष्णव सम्प्रदाय के अन्तर को जानते हैं, वे जन्माष्टमी व्रत के लिये इस्कॉन द्वारा निर्धारित दिन का अनुगमन नहीं करते हैं। दुर्भाग्यवश ब्रज क्षेत्र, मथुरा और वृन्दावन में, इस्कॉन द्वारा निर्धारित दिन का सर्वसम्मति से अनुगमन किया जाता है। श्रद्धालु जो दूसरों को देखकर जन्माष्टमी के दिन का अनुसरण करते हैं वो इस्कॉन द्वारा निर्धारित दिन को ही उपयुक्त मानते हैं। लोग जो वैष्णव धर्म के अनुयायी नहीं होते हैं, वो स्मार्त धर्म के अनुयायी होते हैं। स्मार्त अनुयायियों के लिये, हिन्दु ग्रन्थ धर्मसिन्धु और निर्णयसिन्धु में, जन्माष्टमी के दिन को निर्धारित करने के लिये स्पष्ट नियम हैं। श्रद्धालु जो वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायी नहीं हैं, उनको जन्माष्टमी के दिन का निर्णय हिन्दु ग्रन्थ में बताये गये नियमों के आधार पर करना चाहिये। इस अन्तर को समझने के लिए एकादशी उपवास एक अच्छा उदाहरण है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की एकादशी के व्रत को करने के लिये, स्मार्त और वैष्णव सम्प्रदायों के अलग-अलग नियम होते हैं। ज्यादातर श्रद्धालु एकादशी के अलग-अलग नियमों के बारे में जानते हैं परन्तु जन्माष्टमी के अलग-अलग नियमों से अनभिज्ञ होते हैं। अलग-अलग नियमों की वजह से, न केवल एकादशी के दिनों बल्कि जन्माष्टमी और राम नवमी के दिनों में एक दिन का अन्तर होता है। वैष्णव धर्म को मानने वाले लोग अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र को प्राथमिकता देते हैं और वे कभी सप्तमी तिथि के दिन जन्माष्टमी नहीं मनाते हैं। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की वैष्णव नियमों के अनुसार हिन्दु कैलेण्डर में जन्माष्टमी का दिन अष्टमी अथवा नवमी तिथि पर ही पड़ता है। जन्माष्टमी का दिन तय करने के लिये, स्मार्त धर्म द्वारा अनुगमन किये जाने वाले नियम अधिक जटिल होते हैं। इन नियमों में निशिता काल को, जो कि हिन्दु अर्धरात्रि का समय है, को प्राथमिकता दी जाती है। जिस दिन अष्टमी तिथि निशिता काल के समय व्याप्त होती है, उस दिन को प्राथमिकता दी जाती है। इन नियमों में रोहिणी नक्षत्र को सम्मिलित करने के लिये कुछ और नियम जोड़े जाते हैं। जन्माष्टमी के दिन का अन्तिम निर्धारण निशीथ काल के समय, अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के शुभ संयोजन, के आधार पर किया जाता है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की स्मार्त नियमों के अनुसार हिन्दु कैलेण्डर में जन्माष्टमी का दिन हमेशा सप्तमी अथवा अष्टमी तिथि के दिन पड़ता है। यह पृष्ठ स्मार्त सम्प्रदाय के लिये जन्माष्टमी का दिन दर्शाता है और अगर वैष्णव जन्माष्टमी का दिन स्मार्त जन्माष्टमी से पृथक होता है तो उसे स्पष्ट करने के लिये टिप्पणी संकलित कर दी जाती है। पंडित दयानन्द शास्त्री

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