राजस्थान के जन के देव —-बाबा रामदेव—रामसापीर Part 4

बोहिता को परचा व परचा बाबड़ी

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
कहते हैं कि रामदेवजी ने सेठ बोहिताराज से वादा किया कि जब कभी तुम पर कोई संकट आयेगा तब मैं तुम्हारी मदद करूगां | सेठ बोहितराज ने विदेश में व्यापार अपार धन- सम्पदा अर्जित की और उसने रामदेवजी के लिये हीरों का बहुमूल्य हार भी खरीद कर अपने नोकरों को आदेश दिया कि सारे हीरा पन्ना जेवरात सब कुछ नाव में भर दो , यकायक ही समुद्र में जोर का तुफान आया जिससे नाव का परदा भी फट गया है। अब नाव डूबने के कगार पर थी | सेठ बोहिताराज घबरा कर अधीर हो गये और उन्होंने अपने सारे देवी देवताओं से संकट से बचाने की प्राथनाएं की किन्तु किसी ने भी मदद नहीं की | मरता क्या नहीं करता इसलिये सेठजी को श्री रामदेवजी के वचन याद आये और वे रामदेवजी को करूणा भरी आवाज से पुकारने लगे। उधर श्री रामदेवजी रूणिचा में अपने भाई विरमदेव जी के साथ बैठे थे और उन्होंने बोहिताराज की पुकार सुनी। भगवान रामदेव जी ने अपनी भुजा पसारी और बोहिताराज सेठ की जो नाव डूब रही थी उसको किनारे पर ले आये। यह काम इतनी शीघ्रता से हुआ कि पास में बैठे भई वीरमदेव को भी पता तक नहीं पड़ने दिया। रामदेव जी के हाथ समुद्र के पानी से भीग गए थे। सेठ बोहिताराज अपनी नाव को सही सलामत किनारे पर पाकर खुशी से झूम कर बोले कि जिसकी रक्षा करने वाले भगवान श्री रामदेवजी है उसका कोई बाल बांका नहीं कर सकता। गांव पहुंचकर सेठ ने दरबार में जाकर श्री रामदेवजी से बोले कि मैं माया देखकर आपको भूल गया था मेरे मन में लालच आ गया था। मुझे क्षमा करें और आदेश करें कि मैं इस माया को कहाँ खर्च करूँ। तब श्री रामदेव जी ने कहा कि तुम रूणिचा में एक बावड़ी खुदवा दो और उस बावड़ी का पानी मीठा होगा तथा लोग इसे परचा बावड़ी के नाम से पुकारेंगे व इसका जल गंगा के समान पवित्र होगा। रामदेवरा (रूणिचा) मे आज भी यह परचा बावड़ी बनी हुयी है।
बाबा रामदेवजी का जीवित समाधी लेना

संवत् 1442 को रामदेव जी ने अपने हाथ से श्रीफल लेकर सब बड़े बुजुर्गों को प्रणाम किया, सभी उपस्थित भक्तों पत्र पुष्प् चढ़ाकर रामदेव जी का श्रद्धा से अन्तिम पूजन किया। रामदेव जी ने समाधी में खड़े होकर सब के प्रति अपने अन्तिम उपदेश देते हुए कहा “प्रति माह की शुक्ल पक्ष की दूज को पूजा पाठ, भजन कीर्तन करके पर्वोत्सव मनाना, रात्रि जागरण करना। प्रतिवर्ष मेरे जन्मोत्सव के उपलक्ष में तथा अन्तर्ध्यान समाधि होने की स्मृति में मेरे समाधि स्तर पर मेला लगेगा। मेरे समाधी पूजन में भेद भाव मत रखना। मैं सदैव अपने भक्तों के साथ रहुँगा” ऐसा कहकर रामदेवजी महाराज ने समाधी ले ली।
प्रस्तुतिकरण—-डा.जे.के.गर्ग
सन्दर्भ—– इतिहासकार मुंहता नैनसी का ग्रन्थ “मारवाड़ रा परगना री विगत”, मेरी डायरी के पन्ने,विभिन्न पत्र पत्रिकायें आदि
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