ब्यावर का प्रसिद्ध ‘तेजा-मेला’

वासुदेव मंगल
वासुदेव मंगल
भारत वर्ष दुनिया में ऐसा देश है जहां दुनिया भर के लोग अपने-अपने धर्म का स्वतंत्रय रूप से पालन करते हुए शांति, भाईचारे, सहआस्तित्व के साथ रहते हैं। ऐसा अनोखा उदारहरण दुनियां में भारत के सिवाय और कहीं भी देखने को नहीं मिलेगा। इसी परिप्रेक्ष्य में भिन्न-भिन्न प्रदेशों में भौगोलिक स्थिति के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार की संस्कृतियों अवस्थित है एक ‘ब्यावर’ नगर, जो श्री सीमेंट उद्योग, डी.एल.एफ. प्रीमियम सीमेंट, ऊन व तिल पपड़ी, बीड़ी, तंबाकू, कुटीर उद्योगों के साथ-साथ दो प्रसिद्ध मेंलों के लिए भी दुनिया भर में जाना जाता है। एक वीर तेजाजी का मेला जो प्रतिवर्ष भाद्रप्रद शुक्ल की नवमी की रात्रि से एकादशी की रात्रि तक भरता है और दूसरा है गुलाल की बादशाह मेला जो प्रतिवर्ष होली के तीसरे दिन सांयकाल छह घंटे के लिए 5 बजे से 11 बजे तक रहता हैं ।
तेजा मेला-तेजाजी के मंदिर व तेजा चैक से सुभाष उद्यान में, स्थानीय नगरीय प्रशासन के द्धारा आयेजित किया जाता है । इस मेले में मध्य राजस्थान की मूल ग्रामीण संस्कृति की झलक स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है, जहां असंख्य ग्रामीण आसपास के श्रेत्रों से भव्य मेले का आनंद प्राप्त करते हैं । प्रशासन के द्धारा इस मेले का भव्य आयोजन किया जाता है, जिसमें दूर-दूर से आकर कागज की लुगदी से संुदर-संुदर कलात्मक बनाए नऐ खिलौनों की दुकानें लगाई जाती हैं। मिट्टी के भिन्न-भिन्न प्रकार के घर में काम आने वाले पकाए हुए बर्तनों की दुकानें लगाई जाती हैं। भव्य रोशनी की सुचारू व्यवस्था की जाती है। नारियल की दुकानें, चाट-पकोड़ी की दुकानों के साथ-साथ विसायती के सामान की बहुत सी दुकानें लगाई जाती है। शहरी प्रशासन के द्वारा कई तरह के खेल प्रतिस्पद्र्धाऐं सांस्कृतिक कार्यक्रम रखे जाते हैं।
कई प्रकार के झूले-चकरियां, बच्चों की रेल गाडि़यां, कई प्रकार के जादू के खेल इत्यादि लगाए जाते हैं । सफाई की, पीने के ठण्डे व मीठे पानी की अनेक प्याऊ व मेलार्थियों के सुस्ताने व ठहरने के लिए अनेक स्थानों पर टेंट लगाए जाते हैं । ग्रामीण-लोग अपनी रंगीन पोशाकों में बडे़-बड़े रेश्मी झण्डे टेªक्अरों में लगाकर बैण्ड बाजों, ढोल नगाड़ों के साथ तेजाजी महाराज की जोत के साथ अलग-अलग टोलियों में तेजाजी के मंदिर पर नाचते गाते जुलूस के रूप में तेजा दशमी के रोज दिन भर आते रहते हैं जो तेजाजी के दरबार में मन्नत मंागते हैं और जिनकी मन्नत पूरी होती है वे मन्नत चढ़ाने आते हैं। प्रत्येक वर्ष भादप्रद शुक्ला नवमी की रात्री के जागरण के साथ यह मेला भादप्रद शुक्ला एकादशी रात्री तक यानि तीन दिन तक लगातार आयोजित किया जाता है। ब्यावर शहर राष्ट्रय राजमार्ग संख्या 8 पर अजमेर से दखिण-पश्चिम में 54 किलोमीटर पर स्थित हैं। दिल्ली-अहमदाबाद की ब्राॅड-गेज रेलवे लाइन का मध्यवर्ती स्टेशन है। अरावली पर्वत श्रंृखलाओं से घिरा हुआ 444 फीट की उुंचाई पर, पठार पर 5 किलोमीटर की गोलाकार परिधि वाली घाटी में बसा हुआ एक सुंदर, खुशनुमा शहर है। यह जिला मुख्यालय के समान समस्त सुविधाएं लिए हुए हैं।
मेले में जाट लोक देवता त्यागी, निर्भीक, वचनों के पक्के पर सेवी वीर तेजाजी महाराज के थान यानि मंदिर पर चढ़ाने के लिए कई रंगों में रेशमी पट्टी में गोटा किनारी से तैयार किए गए बड़े-बड़े झण्डे देश के दूर-दूर स्थानों से उनके अनुयायियों द्वारा जो विशेष ग्रामीण व श्रमिक वर्ग होते हैं, के द्वारा जुलूस के रूप में गाते-बजाते ढोल, बैंड, नगाड़ों के साथ लाए जाते हैं । जैसे जयपुर से जयपुर स्पिनिंग मिल्स, किशनगढ़ से आदित्य मिल्स, भीलवाड़ा सूटिंग्स, विजयनगर से, पाली से उम्मेद मिल्स, गुलाबपुरा से मयूर सूटिंग्स व ब्यावर अजमेर के लगभग सभी औद्योगिक इकाइयों द्वारा झंडे तेजाजी के थान पर लाए जाते हैं । मेलाथ्र्।ियों के ठहरने के लिए यहां पर सराय, धर्मशालाएं, होटल, रेस्टोरेंट इत्यादि का सुचारू प्रबंध है ।
इस मेले की लोकाक्ति यह है कि वीर तेजाजी जाति से जाट थे । वह बड़े शूरवीर, निर्भीक, सेवाभवी, त्यागी एवं तपस्वी थे । उन्होंने दूसरों की सेवा करना ही अपना परम धर्म समझा । निस्वार्थ सेवा ही उनके जीवन का लक्ष्य था । उनका विवाह बचपन में ही इनके माता-पिता ने कर दिया था । उनकी पत्नी पीहर गई हुई थी । भौजाई के बोल उनके मन में चुभ गए और उन्होंने अपने माता-पिता से अपने ससुराल का पता ठिकाना मालूम करके अपनी पत्नी को लाने, लीलन घौड़ी पर चल दिए । रास्ते में उनकी पत्नी की सहेली लाखा नाम की गूजरी की गायों को जंगल में चराते हुए चोर ले गया । लाखा ने तेजाजी को जो इस रास्ते से अपने ससुराल जा रहे थे, गायों को छुड़ाकर लाने की कहा । तेजाजी तुरंत चोरों से गायों को छुड़ाने लाने को कहा । तेजाजी तुरंत चोरों से गायों को छुड़ाने चल दिए । रास्ते में उनको एक सांप मिला जो उनका काटना चाहता था, परंतु तेजाजी ने सांप से लाखा की गायों को चोरों से छुड़ाकर उसे संभलाकर तुरंत लौटकर आने की प्रार्थना की जिसे सांप ने मान ली वादे के मुताबिक लाखा की गाएं चोरों से छुड़ाकर लाए और उसे लौटा दी और उल्टे पांव ही अपनी जान की परवाह किए बगैर सांप की बाम्बी पर जाकर अपने को डसने के लिए कहा । तेजाजी ने गायों को छुड़ाने के लिए चोरों से लड़ाई की थी जिससे उनके सारे शरीर पर घाव थे । अतः सांप ने तेजाजी को डसने से मना कर दिया । तब तेजाजी ने अपनी जीभ पर डसने के लिए सांप को कहा जिसने तुरंत लीलन घेाड़ी पर बैठना डालकर तेजाजी की जीभ डस ली । तेजाजी बेजान हो धरती माता की गोद में समा गए । यह बात उनकी पत्नी को मालूम पड़ी तो पतिव्रता के श्राप देने के भय से सांप ने पेमल को उसे श्राप ने देने की विनती की । तेजाजी का यह उत्सर्ग उनकी पत्नी को सहन नहीं हुआ । अतः वह भी उनके साथ ही सती हो गई । सती होते समय उसने ‘अमर वाणी’ की कि भादवा सुदी नवमी की रात जागरण करने तथा दशमी को तेजाजी महाराज के कच्चे दूध, पानी के कच्चे दूधिया नारियल व चूरमें का भेाग लगाने पर जातक की मनोकामना पूरी होगी । इसी प्रकार सांप ने भी उनको वरदान दिया कि आपके ‘अमर-पे्रम’ को आने वाली पीढ़ी जन्म जन्मांतर तक ‘युग-पुरूष देवता’ के रूप में सदा पूजा करती रहेगी ।
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