राजस्थान के जन के देव —-बाबा रामदेव—रामसापीर Part 5

रामदेवरा मन्दिर

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
रामदेवरा मन्दिर हिन्दू मुसलमान दोनों की आस्था का केन्द्र बिन्दु हैं । रामदेवजी के वर्तमान मंदिर का निर्माण सन् 1939 में बीकानेर के महाराजा श्री गंगासिंह जी ने करवाया था, इसके निर्माण पर उस समय 57 हजार रुपये व्यय हुए थे। रामदेवरा मन्दिर अपने आप में अनोखा है क्योंकि यहाँ बाबा रामदेव की मूर्ति भी है और मजार भी । कहा जाता है कि बाबा के पवित्रा राम सरोवर में स्नान से अनेक चर्मरोगों से मुक्ति मिलती है । रामदेवरा मन्दिर में आस पास के श्रद्धालुओं के साथ साथ राजस्थान के दूर दराज एवं गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश आदि प्रान्तों के हजारों श्रद्धालु भी आते हैं । पैदल यात्रियों के जत्थे हफ्तों पहले से बाबा की जय-जयकार करते हुए अथक परिश्रम और प्रयास से रूंणीचे पहुंचते हैं । पैदल यात्रा करने वाले सेकड़ों श्रद्धालु लोकगीतों की गुंजन और भजन कीर्तनों की झनकार देखते ही बनती है इन श्रद्धालुओं के चाय-पानी तथा खाने पीने के लिये रास्तों में अनेकों भंडारे स्थानीय भक्तों दुवारा लगाये जाते हैं | बाबा के लाखों भक्त, ऊँट लढ्ढे, बैलगाडयां, दुपहिये वाहन, कारों, टेक्सीयों से यात्रा करके बाबा के दरबार तक पहुंचाते हैं । यहां कोई न छोटा होता है न कोई बडा | सभी लोग आस्था, भक्ति और विश्वास से भरे, रामदेव जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करने पहुंचते हैं । यहां मंदिर में नारियल, पूजन सामग्री और प्रसाद की भेंट चढाई जाती है । मंदिर के बाहर और धर्मशालाओं में सैकडों यात्रियों के खाने-पीने का इंतजाम होता है । मेले के दौरान बाबा के मंदिर में दर्शन के लिए चार से पांच किलोमीटर लंबी कतारें लगती हैं | निसंतान दम्पत्ति कामना से अनेक अनुष्ठान करते हैं तो मनौती पूरी होने वाले बच्चों का झडूला उतारते हैं और सवामणी करते हैं । रोगी रोगमुक्त होने की आशा करते हैं तो दुखी आत्माएं सुख प्राप्ति की कामना । यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि सेकड़ो श्रद्धालु पहले जोधपुर में बाबा के गुरु के मसूरिया पहाड़ी स्थित मंदिर में भी दर्शन करना नहीं भूलते हैं और उसके बाद जैसलमेर की ओररामदेवरा मन्दिर की तरफ कूच करते हैं | बहुत से लोग रामदेवरा में मन्नत भी मांगते हैं और मुराद पूरी होने पर कपड़े का घोड़ा बनाकर मंदिर में चढ़ाते हैं |
प्रस्तुतिकरण—-डा.जे.के.गर्ग
सन्दर्भ—– इतिहासकार मुंहता नैनसी का ग्रन्थ “मारवाड़ रा परगना री विगत”, मेरी डायरी के पन्ने,विभिन्न पत्र पत्रिकायें आदि
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