जन जन के पूज्यनीय लोक देवता तेजाजी -Part 1

(माघ शुक्ला, चौदस संवत 1130 —- भाद्रपद शुक्ल 10 संवत 1160 यानि 29 जनवरी 1074– 28 अगस्त 1103)

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
तेजाजी के मंदिर राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, गजरात तथा हरियाणा के विभिन्न स्थानों में मोजूद हैं। तेजाजी के मंदिरों में साधरणतया निम्न वर्गों के लोग ही पुजारी का काम करते हैं जिन्हें भोपा भी कहा जाता है | आज भी भारत के अधिकांश भागों में वीर तेजाजी के नाम से सबसे ज्यादा मेले भरते है | आम आदमीयों विशेषतया ग्रामीणों में तेजाजी के बलिदान एवं उनकी सत्यनिष्ठा की वजह से हज़ार साल बाद भी उनमें अटूट आस्था और विश्वास बना हुआ है | अजमेर जिले के प्रत्येक गांव में तेजाजी के मंदिर अथवा चबूतरे बने हुए हैं | ब्यावर का तेजाजी का मेला तो पूरे देश में प्रसिद्ध | शाहबाद (बारां), प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, बून्दी, चितौडग़ढ़ के विभिन्न स्थानों पर तेजाजी के विशाल मेले भरते है जो जनमानस में तेजाजी के प्रति अगाध श्रद्धा व विश्वास के प्रतिक है | भीलवाड़ा में तेजाजी को सभी धर्मों के लोग मानते हैं | लोक देवता तेजाजी का जन्म नागौर जिले में खड़नाल गाँव के मुखिया ताहरजी (थिरराज) के यहाँ माघ शुक्ला, चौदस 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को हुआ था । तेजाजी के माता-पिता ताहरजी (थिरराज) और रामकुंवरी शंकर भगवान के भक्त थे | कहा जाता है कि शंकर भगवान के वरदान से तेजाजी की प्राप्ति हुई | तेजाजी का जन्म शिवभक्त रामकंवरी की पवित्र कोख से हुआ | कुछ लोग कलयुग में तेजाजी को शिव का अवतार मानते हैं | तेजा जब पैदा हुए तब उनके चेहरे पर विलक्षण तेज था जिसके कारण इनका नाम तेजा रखा गया | कहा जाता है किउनके जन्म के समय तेजा की माता को एक आवाज सुनाई दी – “कुंवर तेजा ईश्वर का अवतार है किन्तु यह तुम्हारे साथ अधिक समय तक नहीं रहेगा” | यहाँ ध्यान देने वाली बात है तेजाजी का निधन 33 वर्ष की अल्पायु में ही हो गया था | निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि आज भी वीर तेजाजी युवाओं के लिए आदर्श पुरुष ही हैं |

सम्पादन एवं प्रस्तुतिकरण—–डा.जे,के.गर्ग, सन्दर्भ—- विभिन्न पत्र- पत्रिकायें, मेरी डायरी के पन्ने, विभिन्न भोपाओं से बात चीत आदि

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