जन जन के पूज्यनीय लोक देवता तेजाजी -Part 5

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
आसू देवासी ने पनेर जाकर पेमल को बताया “तुम्हारा पति तेजा मरणासन्न हैं उसने तुम्हारें लिये यह रुमाल भेजा है | “तेजाजी के बलिदान का समाचार सुनकर पेमल की आँखें पथरा गई उसने मां से नारियल माँगा, सौलह श्रृंगार किये, परिवार जनों से विदाई ली और सुरसुरा जाकर तेजाजी के साथ सती हो गई | कहते हैं कि चिता की अग्नि स्वतः ही प्रज्वलित हो गई और पेमल सती हो गई | लोगों ने पूछा कि सती माता तुम्हारी पूजा कब करें तो पेमल ने बताया कि – “भादवा सुदी नवमी की रात्रि को तेजाजी धाम पर जागरण करना और दसमी को तेजाजी के धाम पर उनकी देवली को धौक लगाना, कच्चे दूध का भोग लगाना ऐसा करने से मनपसंद कार्य पूर्ण होंगे | लीलण घोड़ी भी अपने मालिक तेजाजी को सती माता पेमल के हवाले खरनाल चली गई | खरनाल गाँव में लीलण खाली पीठ पहुंची तो तेजाजी की भाभी को कोई बड़ी अनहोनी होने का डर लगा, तेजाजी की बहिन राजल बेहोश होकर गिर पड़ी और थोड़ी देर बाद अपने माँ-बाप, भाई भाभी और अन्य स्वजनों से आज्ञा लेकर खरनाल के पास ही पूर्वी जोहड़ में चिता बनवाकर भाई की मौत पर सती हो गई | भाई के पीछे सती होने का यह अनूठा एक मात्र उदहारण है | राजल बाई को बाघल बाई भी कहते हैं राजल बाई का मंदिर खरनाल में गाँव के पूर्वी जोहड़ में है जिसे बांगुरी माता का मंदिर कहते हैं | तेजाजी की प्रिय घोड़ी लीलण ने भी अपना शारीर छोड़ दिया | लीलणघोड़ी का मंदिर आज भी खरनाल के तालाब के किनारे पर बना हुआ है | तेजाजी के निर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है।
सम्पादन एवं प्रस्तुतिकरण—–डा.जे,के.गर्ग, सन्दर्भ—- विभिन्न पत्र- पत्रिकायें, मेरी डायरी के पन्ने, विभिन्न भोपाओं से बात चीत आदि

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