जीवन को आनन्दमय बनाये रखने का मन्त्र—-सामना करे कड़वी सच्चाइयों का Part 2

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
जो आप सोचते उसे क्रियान्वित करना बहुत ही जरूरी है क्योंकि सोचना और उसे मूर्तरूप देना बिल्कुल अलग होती हैं। सुखी जीवन के लिये योजनायें बनाना सही हो सकता है किन्तु इन योजनाओं को वास्तविकताओं में बदलने के लिए कड़ी मेहनत, लगन और सकारात्मक सोच रखना भी लाजमी होता है | थोथा चना बाजे घना मत बनिये, जो सोचते हे उसे मूर्त रूप दीजिये | बोलिये कम, काम ज्यादा कीजिये | अपने मित्रों, स्वजनों से झूठे वादे कर उन्हें छलावे में नहीं रक्खें क्योंकि सच्चाई तो देर सबेर सामने आयेगी ही और तब आपके वादों की कलई खुल ही जायेगी जिससे आपके पारस्परिक रिस्तों में कड़वाहट आ जायेगी और अविश्वास का जहरीला बीज पनपने लगेगा, इसका नतीजा होगा कि आपको मित्र अथवा स्वजन खोने पढ़ेगें |
आपको अगर किसी परिचित अथवा अपरिचित ने जानबुझ कर या अनजाने में नुकसान पहुंचाया है या आपको दर्द दिया है तो भी उसे दिल से माफ कीजिये, उसे सकारात्मक सोच की तरगें भेजिए और अपने जीवन पथ में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ते रहिये, उसे माफ़ करने के लिये इस बात का इंतजार नहीं करें कि उसने आप से माफी मागीं है अथवा नहीं |
जीवन में जाने-अनजाने में उन लोगों से सम्पर्क, मुलाकात अथवा जान पहिचान हो जाती हैं जिनकी सोच नकारात्मक,ईर्ष्यालु एवम् दुर्षित होती है, ऐसे लोगों से जितना जल्दी हो उतना जल्दी पीछा छुड़ायें क्योंकि कावत है “ जैसी संगत वैसी ही गत। सकारात्मक सोच वालों की संगत में रहे | व्यर्थ की टीकाटिप्णी करनेवाले वाले इंसानों से दूर ही रहें |
प्रस्तुती—डा. जे.के.गर्ग, सन्दर्भ—मेरी डायरी के पन्ने,विभिन्न पत्रिकायें आदि visit our blog—gargjugalvinod.blogspot.in

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