समाजवाद के प्रणेता एवं प्रथम वैश्य सम्राट कर्मयोगी महाराजा अग्रसेन Part 1

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
किसी भी राष्ट्र और समाज उन्नत तथा विकसित बनाने के लिये उसके आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक स्तम्भ मजबूत होने चाहिये | इन चारों स्तंभों को दृढ़ करके ही राष्ट्र को प्रगतिशील एवं विकसित देश बनाया जा सकता है | आज से लगभग 5141 साल पहिले महाराजा अग्रसेनजी ने इन्हीं चार स्तंभों को मजबूत कर समर्द्धशाली, कल्याणकारी एवं शक्तिशाली राज्य का निर्माण किया था | एक पौराणिक कर्मयोगी लोकनायक होने के साथ समाजवाद के प्रणेता महाराजा अग्रसेन तपस्वी, महान दानवीर युग पुरुष थे जिनका जन्म द्वापर युग के अंत वह कलयुग के प्रारंभ में लगभग 5141 वर्ष पूर्व अश्विनशुक्ल प्रतिपदा के दिन प्रताप नगर के सूर्यवंशी राजा वल्लभ के यहाँ हुआ था। ऐसा भी कहा जाता है की महाराजा अग्रसेन भगवान श्रीरामके पुत्र कुश की 34 व़ी पीढ़ी के थे | कहा जाता हे कि महाभारत के दसवें दिन राजा वल्लभसेन वीर गति को प्राप्त हुए |15 वर्ष की अल्प आयु मे ही अग्रसेनजी ने महाभारत के धर्मयुद्ध में पांडवो की तरफ से भाग लिया था| कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण भी उनकी बुद्धीमता,शोर्य,पराक्रम,समझबुझ से अत्यंत प्रभावित हुए और उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि युवा अग्रसेन भविष्य में एक पराक्रमी सम्राट एवं युग पुरुष होंगे |
विवाह —युवा अग्रसेन ने सर्पों के राजा नागराज की सुपत्री राजकुमारी माधवी के स्वयंवर में अनेकों राजाओं, राजकुमारों और स्वर्ग के सम्राट इंद्रदेव केसाथ भाग लिया था | इंद्र देवता राजकुमारी माधवी की सुंदरता पर मोहित थे एवं एन कैन प्रकारेण राजकुमारी माधवी से विवाह करना चाहते थे| स्वयंवर में राजकुमारी माधवी ने राजकुमार अग्रसेन का चयन कर उनका वरण किया | अग्रसेनमाधवी के विवाह से दो भिन्न भिन्न संस्कृतियोंएवं परिवारों का मिलन हुआ क्योंकि राजकुमार अग्रसेन जहाँ एक सूर्यवंशी थे वहीं राजकुमारी माधवी एक नागवंशी थी | राजकुमारी माधवी काविवाह अग्रसेनजी के साथ हो जाने से इंद्रदेव बहुत क्रोधित हुये और इन्द्र ने प्रताप नगर के निर्दोष स्त्री-पुरुषों,बालक-बालिकाओं कोप्रताड़ित करने हेतु प्रताप नगर पर कई वर्षा तक बारिश नहीं होने दी जिससे प्रताप नगर में भयानक अकाल पड गया | सम्राट अग्रसेन ने अपनीप्रजा एवं प्रताप नगर की सुरक्षा और राजधर्म के पालनार्थ इंद्र के खिलाफ धर्मयुद्ध प्रारम्भ कर दिया | युद्ध में इंद्र की पराजय हुई | पराजित इंद्रने नारदमुनि से अनुनय-विनय कर उनकी सम्राट अग्रसेन से सुलह करवाने का निवेदन किया | नारद मुनि ने दोनो के बीच मे मध्यस्थता करसुलह करवा दी |

प्रस्तुती— डा. जे. के. गर्ग, Visit our blog—-gargjugalvinod.blogspot.in

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