नवदुर्गा के नो रूप यानि नारी के नो स्वरूप

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
सच्चाई तो यही कि नवदुर्गा नारी के नो स्वरूप महिलाओं के पूरे जीवनचक्र का प्रतिबिम्ब ही है यानि “शैलपुत्री” जन्म ग्रहण करती हुई कन्या कास्वरूप है, “ब्रह्मचारिणी” नारी का कौमार्य अवस्था प्राप्त होने तक का रूप है, वहीं नारी शादी से पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल होने की वजह से “चंद्रघंटा” के समान है | जब महिला शिशु को जन्म देने के लिये गर्भवती बनती है तो वह “कूष्मांडा” का स्वरूप है वहीं नारी शिशु को जन्म दे देती है तो वह “स्कन्दमाता” बन जाती | संयम व साधना को धारण करने वाली नारी”कात्यायनी” का स्वरूप हो जाती है | सती सावत्री के समान अपने संकल्प से पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से नारी”कालरात्रि” जैसी बन जाती है | जीवन पर्यन्त अपने परिवार को संसार मानकर उसका उत्थान और उन्नयन करने वाली नारी “महागौरी” हो जाती है और अंत में नारी अपने सभी दायित्वों का निर्वाह करने के बाद धरती को छोड़कर स्वर्गारोहण करने से पहले संसार मे अपनी संतान को सिद्धि (समस्त सुख-संपदा) का आशीर्वाद देने वाली “सिद्धिदात्री” बन जाती है |
नवरात्र शब्द में छिपा हुआ है जीवन का हर पहलू
नवरात्र दो शब्दों से मिलकर बना है यानि नव और रात्र। नव का अर्थ है नौ है वहीं रात्र शब्द में पुनः दो शब्द शामिल हैं:– रा+त्रि। “रा” का अर्थ है रात और “त्रि” का अर्थ है जीवन के तीन पहलू- शरीर, मन और आत्मा।
जीवन में प्रतेयक मनुष्य को तीन तरह की विकट समस्याओं का सामना करना होता है, यथा भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक। इन समस्याओं से जो मनुष्य को जो छुटकारा दिलवाती है वह होती है “रात्रि”। रात्रि या रात मनुष्यों को दुख से मुक्ति दिलाकर उनके जीवन में यश-सुख-सम्पदा लाती है। मनुष्य कैसी भी परिस्थिति में हो उसे रात में ही आराम मिलता है। रात की गोद में हम सभी अपने सारे सुख-दुख को भुला कर निद्रा की गोद मे चले जाते हैं।
प्रस्तुती– डा. जे.के.गर्ग ,सन्दर्भ— मेरी डायरी के पन्ने, विभिन्न पत्रिकाएँ, भारत ज्ञान कोष, संतों के प्रवचन,जनसरोकार, आदि Visit my Blog—-gargjugalvinod.blogspot.in

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