सृष्टि के रचियता ब्रह्माजी—ब्रह्मा मन्दिर—–पुष्कर Part 1

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
पोराणिक मान्यताओं के मुताबिक आदिकाल में सृष्टि रचना के पूर्व संसार अंधकारमय था। सनातन परमब्रह्म्र परमात्मा ने सगुण रूप से सृष्टि की रचना की एवं समस्त ब्रम्हाण्ड का निर्माण हुआ। स्थूल सृष्टि की रचना पंच महाभूतों यथा आकाश, वायु, अग्नि, जल, एवं पृथ्वी से हुई। विराट पुरूष नारायण भगवान के संकल्प से ब्रम्हा जी की उत्पत्ति हुई। महाप्रलय के बाद भगवान नारायण दीर्घ काल तक योगनिद्रा में रहे, दीर्घनिद्रा से जगने के बाद भगवान नारायण की नाभि से एक दिव्य कमल प्रकट हुआ। जिसकी कर्णिकाओं पर स्वयम्भू ब्रह्मा प्रकट हुए। उन्होंने अपने नेत्रों को चारों ओर घुमाकर शून्य में देखा। इस चेष्टा से चारों दिशाओं में उनके चार मुख प्रकट हो गये। जब चारों ओर देखने से उन्हें कुछ भी दिखलायी नहीं पड़ा, तब उन्होंने सोचा कि इस कमल पर बैठा हुआ मैं कौन हूँ? मैं कहाँ से आया हूँ तथा यह कमल कहाँ से निकला है? ब्रह्माजी नें नारायण की तप-तपस्या की जिससे उन्हें शेषशय्या पर लेटे हुये भगवान विष्णु के दर्शन हुए। ब्राह्म पुराणों में ब्रह्मा का स्वरूप विष्णु के सदृश ही निरूपित किया गया है। ये ज्ञानस्वरूप, परमेश्वर,अज, महान तथा सम्पूर्ण प्राणियों के जन्मदाता और अन्तरात्मा बतलाये गये हैं। कार्य, कारण और चल,अचल सभी इनके अन्तर्गत हैं। समस्त कला और विद्या इन्होंने ही प्रकट की हैं। ये त्रिगुणात्मिका माया से अतीत ब्रह्म हैं। ये हिरण्यगर्भ हैं और सारा ब्रह्माण्ड इन्हीं से निकला है। परमपिता ब्रह्माजी मानसिक संकल्प से प्रजापतियों को उत्पन्न कर उनके द्वारा सम्पूर्ण प्रजा की सृष्टि करते हैं। इसलिये ब्रह्माजी को प्रजापतियों का पति भी कहा जाता है | स्मरणीय रहे कि दस प्रमुख प्रजापति मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, भृगु, वसिष्ठ, दक्ष तथा कर्दम हैं | मान्यताओं के अनुसार दक्ष ने माता प्रसूति से 16 कन्याओं कों जन्म दिया जिसमें स्वाहा नामक कन्या का अग्नि के साथ, स्वधा का पितृगण के साथ, सती जो शक्ति माता की अवतार थीं उनका भगवान शिव के साथ और तेरह कन्याओं(श्रद्धा, मैत्री, दया, शान्ति, तुष्टि, पुष्टि, क्रिया, उन्नति, बुद्धि, मेधा, तितिक्षा, द्वी और मूर्ति) का विवाह धर्म से कर दिया गया बाकी कन्याओं में भृगु का ख्याति से और मरीचि का सम्भूति से, अंगिरा का स्मृति से, पुलस्त्य का प्रीति से, पुलह का काक्षमा से, कृति का सन्नति से, अत्री का अनुसुइया से, वशिष्ट का उर्जा से विवाह किया गया जिनसे सारी सृष्टि विकसित हई है। सभी देवता ब्रह्मा जी के पौत्र माने गये हैं |
संकलनकर्ता—डा.जे.के.गर्ग

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