सृष्टि के रचियता ब्रह्माजी—ब्रह्मा मन्दिर–पुष्कर Part 2

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
ब्रह्माजी को देवताओं का पितामाह कहा जाता है वैसे ब्रह्माजी देवताओं के साथ दानवों और समस्त के पितामह हैं | ब्रह्माजी सदेव सत्य और धर्म का पक्ष लेते हैं | देवासुरादि संग्रामों में पराजित होकर देवता जब ब्रह्मा के पास गये तब ब्रह्माजी ने भगवान विष्णु से धर्म की स्थापना करने के लिये अनुरोध किया |अत: विष्णुजी के चौबीस अवतारों में अवतरित होने में ब्रम्हाजी ही निमित्त बनते हैं।
शैव और शाक्त आगमों की भाँति ब्रह्मा जी की उपासना का भी एक विशिष्ट सम्प्रदाय है, जो वैखानस सम्प्रदाय के नाम से प्रसिद्ध है। इस वैखानस सम्प्रदाय की सभी सम्प्रदायों में मान्यता है। पुराणादि सभी शास्त्रों के ये ही आदि वक्ता माने गये हैं। माध्व सम्प्रदाय के आदि आचार्य भगवान ब्रह्मा ही माने जाते हैं। इसलिये उडुपी आदि मुख्य मध्वपीठों में इनकी पूजा-आराधना की विशेष परम्परा है। देवताओं तथा असुरों की तपस्या में प्राय: सबसे अधिक आराधना ब्रम्हाजी की ही होती है। विप्रचित्ति, तारक, हिरण्यकशिपु, रावण, गजासुर तथा त्रिपुर आदि असुरों को ब्रम्हाजी ने ही वरदान देकर उन्हें अवध्य बना दिया था | देवता, ऋषि-मुनि, गन्धर्व, किन्नर तथा विद्याधर गण आदि भी ब्रम्हाजी की भक्तिआराधना में ही निरंतर तत्पर रहते हैं | ब्रह्माजी की प्राय : अमूर्त अपासना ही होती है। सर्वतोभद्र, लिंगतोभद्र आदि चक्रों में उनकी पूजा मुख्य रूप से होती है, किन्तु मूर्तरूप में मन्दिरों में इनकी पूजा पुष्कर में | है होती ही ब्रह्माजी की पत्नी सावित्रीजी हैं एवं सरस्वतीजी पुत्री हैं और हंस उनका वाहन है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु की प्रेरणा से सरस्वती देवी ने ब्रह्मा जी को सम्पूर्ण वेदों का ज्ञान कराया था।
संकलनकर्ता——-डा.जे.के. गर्ग

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