राजेन्द्र बाबू के जीवन के प्रेरणादायक एवं मनस्पर्शी अनछुए पहलू— Part 3

आजादी आन्दोलन में शामिल होने के लिये छोडी वकालत

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
उन दिनों डॉ. राजेन्द्र प्रसाद देश के गिने चुने नामी वकीलों में गिने जाते थे। उनके पास मान-सम्मान और पैसे की कोई कमी नहीं थी। लेकिन जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया तो राजेन्द्र बाबू ने वकालत छोड़ दी और अपना पूरा समय मातृभूमि की सेवा में लगाने लगे। अपने मित्र रायबहादुर हरिहर प्रसाद सिंह के मुकदमों की पैरवी के लिए उन्हें इंग्लैण्ड जाना पड़ा। वरिष्ट बैरिस्टर अपजौन इंग्लैण्ड में हरिहर प्रसाद सिंह का मुकदमा लड़ रहे थे इन्हीं के साथ राजेन्द्र बाबू को काम करना था। अपजौन राजेन्द्र बाबू की सादगी और विनम्रता से बहुत प्रभावित हुए। एक दिन किसी ने अपजौन को कहा कि राजेंद्र बाबू भारत के सफलतम वकीलों में से हैं किन्तु उन्होंने भारत को स्वतंत्र कराने हेतु अपनी वकालत त्याग दी है और वे असहयोग आन्दोलन में गांधीजी के निकटतम सहयोगी बन गये हैं।
बैरिस्टर अपजौन को आश्चर्य हुआ और वे सोचने लगे कि राजेन्द्र बाबू इतने दिनों से मेरे साथ काम कर रहे है पर अपने मुंह से आज तक अपने बारे में कुछ नहीं बताया। अपजौन एक दिन राजेन्द्र बाबू से बोले- लोग सफलता, पद और पैसे के पीछे भागते हैं और आप हैं कि इतनी चलती हुई वकालत को आपने ठोकर मार दी। आपने गलत किया। राजेन्द्र बाबू ने जवाब दिया “ एक सच्चे हिंदुस्तानी को अपने देश को आजाद कराने के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने के लिए तैयार रहना चाहिए, वकालत छोड़ना तो एक छोटी सी बात है”। अपजौन उनकी देश भक्ति की भावना के सम्मुख नत मष्तक हो गये।

देश रत्न राजेन्द्र बाबू के लिये राष्ट्रीय कर्तव्य था सर्वोच्च

भारतीय संविधान के लागू होने से एक दिन पहले 25 जनवरी 1950 को उनकी सगी बहन भगवती देवी का निधन हो गया, लेकिन वे भारतीय गणराज्य के स्थापना की रस्म के बाद ही दाह संस्कार में भाग लेने गये। सज्जनता एवं राष्ट्रपति बनने के बाद भी जनसेवा में समर्पित जीवन
राष्ट्रपति बनने पर भी उनका जनसाधारण एवं गरीब ग्रामीणों से निरंतर सम्पर्क बना रहा। वृद्ध और नाज़ुक स्वास्थ्य के बावजूद उन्होंने भारत की जनता के साथ अपना निजी सम्पर्क क़ायम रखा। वह वर्ष में से 150 दिन रेलगाड़ी द्वारा यात्रा करते और आमतौर पर छोटे-छोटे स्टेशनों पर रूककर सामान्य लोगों से मिलते और उनके दुःख दर्द दूर करने का प्रयास करते।
राष्ट्रपति ने मागीं अपने निजी सेवक से माफी
राजेन्द्र बाबू 12 वर्षों तक राष्ट्रपति भवन में रहे, उनके कार्यकाल में राष्ट्रपति भवन की राजसी भव्यता और शान सुरूचिपूर्ण सादगी में बदल गई थी। राष्ट्रपति भवन में कार्यरत कर्मचारी तुलसी से एक दिन सुबह उनके कमरे में झाड़पोंछ करते वक्त उसके हाथ से राजेन्द्र प्रसाद जी के डेस्क से एक हाथी दांत का पेन नीचे ज़मीन पर गिर गया और पेन टूट गया जिससे स्याही कालीन पर फैल गई। चुकिं यह पेन उन्हें किसी ने भेंट किया था और यह पेन उन्हें प्रिय भी था। राजेन्द्र बाबू ने अपना गुस्सा दिखाने के लिये तुलसी को तुरंत अपनी निजी सेवा से हटा दिया, उस दिन वे बहुत व्यस्त रहे, मगर सारा काम करते हुए उनके ह्रदय में एक कांटा चुभता रहा और वे सोचने लगे कि उन्होंने तुलसी के साथ न्याय नहीं किया है। शाम को राजेन्द्र बाबू ने तुलसी को अपने कमरे में बुलाया तब तुलसी ने राष्ट्रपति को सिर झुकाये और हाथ जोड़े खड़े देखा तो वह हक्का भक्का हो गया, राष्ट्रपति ने धीमे स्वर में कहा, “तुलसी मुझे माफ़ कर दो।” तुलसी इतना चकित हुआ कि उससे कुछ बोला ही नहीं गया। राष्ट्रपति ने फिर नम्र स्वर में दोहराया,”तुलसी, तुम क्षमा नहीं करोगे क्या?” इस बार सेवक और स्वामी दोनों की आंखों में आंसू आ गये। ऐसी थी उनकी मानवीयता और बड़प्पन |3 दिसम्बर 2017 को राजेन्द्र बाबु के 133 वें जन्म दिन पर हम भारतीय उनके श्रीचरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं |

संकलनकर्ता एवं प्रस्तुतिकरण—डा. जे.के.गर्ग

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