भारतियों के दिलों में रहने वाले राष्ट्र नायक अटल बिहारी वाजपेयी

(अटलजी के 93वें जन्म दिवस पर समस्त भारतियों दुवारा उनके शतायु होने एवं स्वस्थ रहने के कामना के साथ) Part 3

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
बचपन से ही अटल जी की सार्वजनिक कार्यों में विशेष रुचि थी। उन दिनों ग्वालियर रियासत दोहरी गुलामी में थी। राजतंत्र के प्रति जनमानस में आक्रोश था। सत्ता के विरुद्ध आंदोलन चलते रहते थे। सन् 1942 में जब गाँधी जी ने ‘अँग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा दिया तो ग्वालियर भी अगस्त क्रांति की लपटों में आ गया। छात्र वर्ग आंदोलन की अगुवाई कर रहा था। अटलजी तो सबके आगे ही रहते थे। जब आंदोलन ने उग्र रूप धारण कर लिया तो पकड़-धकड़ होने लगी। अटलजी पुलिस की लपेट में आ गए। उस समय वे नाबालिग थे। इसलिए उन्हें आगरा जेल की बच्चा बैरक में रखा गया। चौबीस दिनों की अपनी इस अल्प प्रथम जेलयात्रा के संस्मरण वे हँस-हँसकर सुनाते हैं। उन्होंने डॉ॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी , पण्डित दीनदयाल उपाध्याय और नानाजी देशमुख आदि नेताओं से राजनीति का पाठ पढ़ा था |

सन् 1955 में उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा जिसमे उन्हें पराजय मिली, लेकिन उन्होंने अपना आत्मविश्वास नहीं खोया एवं उन्होंने सन् 1957 में बलरामपुर (जिला गोण्डा, उत्तर प्रदेश से जनसंघ प्रत्याशी के रूप में पुनः चुनाव लड़ा जिसमें विजयी होकर लोकसभा में पहुँचे। जनता पार्टी की मोरारजी देसाई की सरकार में वाजपेयीजी सन् 1977 से 1979 तक विदेश मन्त्री रहे उन्होंने अपने दायित्व का निर्वाह सफलतापूर्वक किया । अटलजी पहले विदेश मंत्री थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देकर देश को एवं हिन्दी को गौरवान्वित किया था।
1980 में जनता पार्टी से दोहरी सदस्यता के मामले के कारण जनसंघ के सदस्य जनता पार्टी से अलग हो गये और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की। 6 अप्रैल 1980 में बनी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद का दायित्व भी वाजपेयी को सौंपा गया। दो बार राज्यसभा के लिये भी निर्वाचित हुए। सन् 2004 में अपने कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भयंकर गर्मी में वाजपेयीजी ने इण्डिया शाइनिंग के नारे के साथ लोकसभा के चुनाव करवाये जिसमें भा०ज०पा० के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन को विजय नहीं मिल सकी थी |

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