हां मैं 21वीं सदी का बालिग वर्ष हूं

mohan thanviअकस्मात मध्य रात्रि में वर्ष 2018 सामने आन खड़ा हुआ। मैं 2017 को विदाई देने अपने मकान की छत पर चढ़ा ही था कि 2018 धूमधड़ाम से कंगूरे पर उतर आया। आसमान में आतिशबाजी होने लगी और 2017 धड़ाम से नीचे गिरता-पड़ता 21वीं सदी की नींव में कहीं अंधेरे में जा दुबका। आतिशी रोशनी में नहाते 2018 के अट्टहास ने मुझे हक्काबक्का कर दिया, मैं खैरमकदम कर उससे दुआ-सलाम, राम-राम, खुशआमदीद कहता उससे पहले ही वह बोला – हाय, हैल्लो।
बेसाख्ता मेरे मुंह से बोल फूटे – अरे बच्चे, यह क्या! अभी जन्मे ही हो और हाय, हैल्लो! भाई हमें तो तुमसे बहुत-सी आशाएं हैं। अपेक्षाएं हैं। जो बीते वर्षों में नहीं हो सका वह तुम्हारे आने पर होगा, ऐसे आश्वासनों की भरमार भी हमारे पास है। हमारे शहर का ग्रेड बढ़ेगा, हमारे शहर के बेसहारा पशुओं को प्रशासन कहीं आश्रय देगा। बाजारों में वाहनों की रेलमपेल व्यवस्थित होगी। तुम्हारे आने पर तो हमें यह भी यकीन हो चला कि जल्द ही हम साफ-सुथरी सड़कांें पर चल सकेंगे। फुटपाथ भी हमें दिखेंगे। रेललाइनों में बंटे हम लोगों को जोड़ने के लिए आरयूबी, आरओबी बनेंगे। हमारे बच्चों को भी तुमसे बड़ी आशाएं हैं कि तुम ओवरऐज होने वालों में से कईयों को नौकरी, रोजगार के संसाधन उपलब्ध करवा दोगे। शिक्षा व्यवस्था में ऐसे परिवर्तन करवा सकोगे कि आने वाली पीढ़ी किसी जमाने में अपने सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत को अपनी आंखों से देखे।
उत्तर में उसके ठहाके गूंजने लगे। बच्चे… बच्चे… आपने मुझे बच्चा कहा, अंकल मैं इस सदी का पहला बालिग वर्ष हूं। बच्चा न समझना मुझे। वोट देने का अधिकार 18 वर्ष का होने पर मिलता है न! मैं तो चुनावी वर्ष ही हूं, मर्जी जितने, मर्जी जैसे चुनाव होंगे। तुम्हारी इनकम पर भी अब मेरा पहले से ज्यादा हक बनता है, बड़ा हो गया हूं न। और अब बैलगाड़ी, साइकिल, इक्के-रिक्शे, ऑटो-टैक्सी, बस-ट्रेन नहीं बल्कि बुलेट ट्रेन, प्लेन से यात्राएं होती है। पोस्टकार्ड को लाल डब्बे में डालने का जमाना नहीं रहा, आज तो 4जी से आगे 5जी 6जी की स्पीड की बात करो। दुनियाभर में आंखोंदेखी पलभर में सुनो-सुनाओ। युगपक्ष को समझो और मुझे, इस सदी के 18वें वर्ष को बच्चा समझने-कहने की गफलत मत पालो। याद करो इस सदी के मुझसे कहीं छोटी आयु के वर्षों की वे खबरें, छह-आठ साल की बच्ची से गैंगरेप हुए। निर्भया कांड हुए। परीक्षा स्थगित करने के लिए बचपन ने बचपन को कभी न खुलने वाली नींद में सुला दिया। मिसाइलें चली, तोप-गोले और मोर्टारें गूंजी, कितने ही बच्चे, युवक, महिलाएं और पुरुष मौत की आगोश में चले गए! बेटों ने दायित्व और फर्ज भुलाकर मां-बाप को वृद्धाश्रमों के हवाले किया तो बेटियों ने भाइयों के बेगैरत होने पर माता-पिता को न केवल सहारा दिया बल्कि उम्र पूरी होने पर उन्हें अपने कंधों पर अंतिम यात्रा तक करवाई! यह और ऐसे ही अन्यान्य दुर्दान्त वाकिये मुझसे छोटी आयु के वर्षों में तुमने देखे, सुने या पढ़े! और तुम हो कि मुझे बच्चा कह रहे हो!
मैंने उसकी बात की गंभीरता समझी और बालिग वर्ष से हाथ मिलाते हुए बोला – मुझसे भूल हुई सर, आप तो समय हो, समय बलवान होता है। और आप तो बालिग भी हो। आपको बच्चा कहना… समझना सरासर मेरी भूल है।
वह उदारता से बोला – कोई बात नहीं, आगे ध्यान रखना। मेरी पीड़ाएं भी समझो, मुझे केवल आज स्वागत का लुत्फ मिलेगा। फिर लोग कैलेंडर के पन्ने बदलेंगे, मेरे रहने, न रहने को किताबों में समेट दिया जाएगा। मेरी ताकत को भी मत भूलो। मैं अपने समय का समय हूं, बीता हुआ या आने वाला नहीं। इसलिए मुझमें क्षमा करने का भाव भी है और शक्ति भी। लेकिन तुमने या किसी ने गलती की तो सजा देने का अधिकार मैं अपने वारिस को देने की परम्परा भूलूंगा नहीं। याद रखना।
मैं अवाक! सीधी धमकी दे दी गई मुझे, अवाक न रहता तो क्या खुश होता! अपने बारे में न सही, अपने शहर, राज्य के बारे में न सही मगर अपने राष्ट्र के हालात के बारे में बीते 70 वर्षों के हालचाल पिछले चार साल से खूब सुने हैं। यह बालिग वर्ष सच ही कह रहा है। गलती की सजा समय का वारिस देता ही है । इस सदी का बालिग वर्ष मेरे सामने मजबूती से खड़ा है और मैं हूं कि अभी भी अपने समय के बीते बचपन को खोज रहा हूं। मैंने अपनी आंखों को मसला, कानों से मैल निकालने का प्रयास किया। खुमारी टूटी, नींद खुली। अरे…! यह तो सचमुच बालिग समय है! बचपन तो कहीं खो गया! इस सदी के आगमन से पहले ही गलियों में न आइसपाइस, न कबड्डी न कंचों के खेल। बीते समय के मुकाबले पतंगें भी डोर से बंधने से वंचित दिखने लगी। बीते दो तीन दशकों में अमन-ओ-चैन को ढूंढ़ते लोग भी पहले से ज्यादा संख्या में आतंकवाद के धमाकों से जख्मी होने लगे।
मेरी नकारात्मक सोच और बढ़ती, उससे पहले ही बालिग 18वें वर्ष ने मुझे झकझोरा, बोला – अरे अंकल जी, यह क्या! मेरी सजा देने की बात को धमकी समझ सहम क्यों गए! अंकल जी, जरा सकारात्मक नजरिया भी तो रखो। विचार करो, इस सदी के बीते हुए मेरे से आयु में छोटे वर्षों ने अपने आपको नहीं तो अपने समय के लोगों को, अपने समय के परिवेश को तो विकसित किया है न। राजनीति, धर्म, विज्ञान, समाज, सामाजिक विज्ञान को और अधिक परिपक्वता दी है न। और अंधविश्वास, कुरीतियों को मिटाया, कितने ही रोगों के उपचार खोजे, कितने ही रोगों को समूल खत्म किया। कितने ही आदिवासी क्षेत्रों में लोगों की अशिक्षा के अंधेरे युग से शिक्षा के उजाले युग में प्रविष्टियां करवाई। राजे-महाराजे भुलाए गए तो बादशाहत भी कहां कायम रही! मेरे से पहले बीते समय ने ही भाषा, साहित्य, कला, संस्कृति को पल्लवित किया।
मेरी आशाएं अब पुनः बलवती होने लगी, मैंने बालिग 18वें वर्ष की ओर विश्वास से देखा तो वह मुस्कुराता दिखा। वह बोला – देखो अंकल, अंधेरी रात बीत गई, पूरब में लालिमा दिखने लगी है। सुबह होने को है। अब जागे हुए ही हो तो जुट जाओ अपने संकल्पों को पूरा करने में। आपके संकल्प अवश्य ही पूरे करने में मुझे खुशी होगी क्योंकि मुझसे पहले के वर्षों ने भी दुनिया को आगे बढ़ाया है तो फिर मैं इस सदी का पहला बालिग वर्ष हूं। मेरे संग आगे-आगे कदम बढ़ाओ, हां मैं 21वीं सदी का बालिग वर्ष हूं।
– मोहन थानवी, स्वतंत्र पत्रकार/साहित्यकार, मो 9460001255
82, शार्दूल कॉलोनी, बीकानेर 334001

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