प्रेरणा स्त्रोत एवं युगप्रवर्तक स्वामी विवेकानन्द Part 3

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
स्वामी विवेकानन्द कहा करते थे, “जिसके जीवन में ध्येय नहीं वह तो खेलती -गाती, हँसती-बोलती लाश ही है। ”जब तक व्यक्ति अपने जीवन के विशिष्ट ध्येय को नहीं पहचान लेता तब तक तो उसका जीवन व्यर्थ ही है। युवको अपने जीवन में क्या करना है इसका निर्णय उन्हें ही करना चाहिये। स्वामी विवेकानन्द परमात्मा में विश्वास से अधिक अपने आप पर विश्वास करने को अधिक महत्व देते थे।

स्वामीजी कहा करते थे कि ” रुढीवादी धर्मावलम्बी कहते है कि ईश्वर में विश्वास ना करने वाला नास्तिक है किन्तु मै कहता हूँ कि जिस मनुष्य का अपने आप पर विश्वास नहीं है वो ही नास्तिक है” | स्वामीजी ने कहा कि जीवन में हमारे चारो ओर घटने वाली छोटी या बड़ी, सकारात्मक या नकारात्मक सभी घटनायें हमें अपनी असीम शक्ति को प्रगट करने का अवसर प्रदान करती है।
आज भी स्वामीजी का साहित्य किसी अग्निमन्त्र की भाँति पढ़नेवाले के मन में कुछ कर गुजरने का भाव संचारित करता है। किसी ने ठीक ही कहा है – यदि आप स्वामीजी की पुस्तक को लेटकर पढ़ोगे तो सहज ही उठकर बैठ जाओगे। बैठकर पढ़ोगे तो उठ खड़े हो जाओगे और जो खड़े होकर पढ़ेगा वो व्यक्ति सहज ही सात्विक कर्म में लग कर अपने लक्ष्य पूर्ति हेतु ध्येयमार्ग पर चल पड़ेगा। स्वामीजी की शिष्या अमेरीका की लेखक लीसा मिलर “ वी आर आल हिन्दूज नाऊ” शीर्षक के लेख में बताती है वैदऋग“ सबसे प्राचीन ग्रंथ कहता है कि सत्य एक ही है | विवेकानन्दजी के शिष्यों के अनुसार जीवन के अन्तिम दिन यानि 4 जुलाई 1902 को भी उन्होंने अपनी ध्यान करने की दिनचर्या को नहीं बदला था और प्रात: दो तीन घण्टे ध्यान किया और ध्यानावस्था में ही अपने ब्रह्मरन्ध्र को भेद कर महासमाधि ले ली। बेलूर में गंगा तट पर चन्दन की चिता पर उनकी अंत्येष्टिकी गयी। इसी गंगा तट के दूसरी ओर उनके गुरुरामकृष्ण परमहंसका सोलह वर्ष पूर्व अन्तिम संस्कार हुआ था। उनके शिष्यों और अनुयायियों ने उनकी स्मृति में वहाँ एक मन्दिर बनवाया और समूचे विश्व में विवेकानन्द तथा उनके गुरु रामकृष्ण के सन्देशों के प्रचार के लिये 130 से अधिक केन्द्रों की स्थापना की। परम पूजनीय स्वामीजी के 154वें जन्म दिन के पावन अवसर पर उनके दूवारा बतलाये गये मार्ग का अनुसरण करने का संकल्प लेते हैं |

प्रस्तुतिकरण एवं सकलंकर्ता—डा जे. के. गर्ग

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