क्रिसमस में कैंडिल का भी है महत्व

वाराणसी। क्रिसमस के मौके पर क्रिसमस ट्री, क्रिसमस कार्ड, क्रिसमस स्टार, क्रिसमस फादर आदि की शुरुआत कैसे हुई। लोगों में इसकी जिज्ञासा है। क्रिसमस में कैंडिल का भी काफी महत्व है। महमूरगंज स्थित बेतेल फुल गॉस्पल चर्च के अरविंद थॉमस ने रविवार को क्रिसमस कैंडल के विषय में बताया कि एक हजार वर्ष पहले ऑस्ट्रेलिया के एक गांव में छोटा परिवार रहता था। पति और पत्‍‌नी रात के अंधेरे में आने जाने वालों के लिए बाहर दरवाजे पर प्रतिदिन एक कैंडिल जलाकर रख देते थे। दूसरे देश से युद्ध छिड़ा और समाप्त होने के बाद किसी ने गांव में सूचना दी कि युद्ध समाप्त हो गया। पूरे गांव में लोगों ने अपने घरों के बाहर कैंडिल जलाया। उस दिन 24 दिसंबर की रात थी। इसको क्रिसमस से जोड़ दिया गया। क्रिसमस ट्री के विषय में बताया कि सदियों पहले एक प्रचारक दल अफ्रीका के घने जंगल में रहने वाले लोगों को प्रभु यीशु का शुभ संदेश सुनाने पहुंचा। 24 दिसंबर की रात में जंगल का नजारा ही दूसरा था। जंगलियों ने एक पेड़ में बच्चे बांध दिया था। जल्लाद उस बच्चे की बलि चढ़ाने जा रहा था। उस जाति के लोगों को विश्वास था कि बच्चे की बलि से बिजली देवता प्रसन्न होकर वर्षा करेंगे और हम सबको सूखे से निजात मिल जाएगी। प्रचारक दल के मुखिया ने जल्लाद को बलि करने से रोक दिया। कबीले के सरदार को क्रोध आ गया। उसने कहा कि आप लोगों की प्रार्थना से बिजली नहीं चमकी और वर्षा नहीं हुई तो सभी को तलवार से कत्ल कर दिया जाएगा। प्रचारक दल ने प्रार्थना किया, बिजली चमकी और वर्षा भी हुई। तभी से प्रभु यीशु के जन्मोत्सव पर क्त्रिसमस ट्री अनिवार्य रुप से दर्शाया जाता है।

अरविंद थॉमस ने क्रिसमस कार्ड के संबंध में बताया कि लंदन के जॉन कालकोट होर्सली नामक एक चित्रकार थे। 1843 में सर हेरी कोल के लिए सबसे पहला क्रिसमस कार्ड पेंट किया।
जागरण से साभार

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