संघनायक गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि व्यक्ति को पाप से मुक्ति की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए।व्यक्ति को चाहिए कि दूसरों को झुकाने के बजाय अपने पापों को दोषों को और कर्मों को झुकाने का प्रयास करें।आज व्यक्ति कर्मों के आगे घुटने टेक कर उनके अधीन होकर जीवन जीता है। अब अपने आप से संकल्प करें कि मैं अपने आप को इतना शौर्यवान बनाऊंगा की पाप या दोष स्वयं मेरे आगे आकर घुटने टेकेंगे। 18 पापों में बारहवां पाप है कलह।कुत्ते,बंदर या अन्य कोई जानवर जब आपस में झगड़ते हैं तो हमें अच्छा नहीं लगता है, तो फिर आपको भी आपस में झगड़ना नहीं चाहिए।आज घर, परिवार,समाज आदि में जो कलह है , देखा जाता है कि यह बड़ी बात को लेकर कम और छोटी-छोटी बात या फालतू बात को लेकर ज्यादा हो रहा है।
विचार करें पति-पत्नी आपस में झगड़ते हैं तो घर का विनाश होता है।नौकर और सेठ जब आपस में झगड़ा करे तो दुकान का विनाश होता है।और दो देश आपस में लड़े तो राष्ट्रों को खतरा उत्पन्न हो जाता है ।आप देख रहे हैं रूस और यूक्रेन को आपस में संघर्ष करते लगभग 600 दिन के आसपास हो गए।ईरान और हमास देशों में भी संघर्ष की स्थितिया पैदा हो गई है।इन सब स्थितियों को देखकर लगता है कि कहीं फिर से विश्व युद्ध की स्थिति उत्पन्न नहीं हो जाए। यह सब गहरी चिंता के विषय हैं, क्योंकि कलह सदा दानवीयता को ही पैदा करता है।
हिरोशिमा व नागासाकी पर फेंके गए बमों का परिणाम आज भी वहां की संतानों को भुगतना पड़ता है वहा की संताने आज भी विकलांग पैदा होती है। अत:जहां तक हो सके विवादों से दूर रहने का प्रयास करें।
विवादों को बढ़ाना तो साधुत्व व श्रावकत्व से भी नीचे गिराने वाला होता है।बहुत कम ही लोग होते हैं जो समझाने का प्रयास करते हो,जो प्रेम, समन्वय व शांति में विश्वास करते हो।ज्यादातर लोगों का रस विवादों को बढ़ाकर मजे लेने का होता है।
विवाद क्यों होते हैं इसके भी कुछ कारण होते हैं भाषा का असंयम विवाद को पैदा करता है। द्रोपदी का एक वचन की अंधे की संतान अंधी ही होती है, यह महाभारत के युद्ध का कारण बन गया।अतः भाषा का संयम जरूरी है।
जब दो व्यक्तियों के अहंकार आपस में टकराते हैं तब भी विवाद की स्थितियां पैदा हो जाती है रिश्तों में शंका संदेह और अविश्वास भी कलह को पैदा करता है। और जब व्यक्ति की बात नहीं मानी जाती है, तब भी व्यक्ति विवाद के लिए तैयार हो जाता है।
अत:कोई भी कारण क्यों नहीं हो, इस अनमोल और कीमती मनुष्य जीवन को हमें विवाद में पड़कर खराब नहीं करना है। आज दिन तक और पूर्व में भी कलह संबंधी समस्त पापों का परमात्मा की साक्षी से, गुरुदेव की साक्षी से,और अपनी आत्मा की साक्षी से मिच्छामि दुकडम देते हुए प्रायश्चित करने का प्रयास करें। अगर ऐसा प्रयास और पुरुषार्थ रहा तो यत्र, तत्र, सर्वत्र आनंद ही आनंद होगा ।
कल से होने वाली आयम्बिल ओली तप की आराधना में सभी व्यक्ति अपना योगदान सुनिश्चित करें।
धर्म सभा का संचालन हंसराज नाबेड़ा ने किया ।
पदमचंद जैन
*मनीष पाटनी,अजमेर*