डॉ विनोद सोमानी ‘हंस’ का नया निबंध-संग्रह ‘अर्चना के स्वर’ लोकार्पित

युवा जीवन साधने को थोड़े शब्दों में दिया बड़ा संदेश — लोक बंधु
अजमेर जिला कलक्टर लोकबंधु ने युवा पाठकों को किया समर्पित

अजमेर, 1 नवम्बर (.)। अमृत सम्मान से सम्मानित, राजस्थानी मायण एवं हिंदी भाषा के वयोवृद्ध साहित्यकार, कवि व लेखक डॉ विनोद सोमानी ‘हंस’ के नवीन निबंध-संग्रह ‘अर्चना के स्वर’ का लोकार्पण शुक्रवार को अजमेर जिला कलक्टर लोक बंधु के कर-कमलों द्वारा किया गया।
डॉ हंस के पुत्र, सीए डॉ श्याम कुमार सोमानी ने कलेक्ट्रेट कक्ष में पहुंचकर पुस्तक की प्रति जिला कलक्टर को सौंपते हुए पाठकों को समर्पित करने का आग्रह किया।

कलक्टर लोकबंधु ने संग्रह में शामिल 40 निबंधों पर रुझान व्यक्त करते हुए कहा कि यह कृति युवा पीढ़ी को जीवन की दिशा देने वाली है—
“डॉ हंस ने बहुत सरल भाषा में जीवन के गूढ़ सत्य समझाए हैं। इस संग्रह में लेखक का आजीवन अनुभव झलकता है। यह निबंध बताते हैं कि व्यक्तित्व को कैसे संस्कारित किया जाए, अहं को सरल सत्य से कैसे जीतें और जीवन के अंधकार से प्रकाश की ओर कैसे बढ़ें। युवा पाठकों के लिए यह संग्रह मार्गदर्शक सिद्ध होगा।”

साहित्यिक उपलब्धियाँ
डॉ विनोद सोमानी ‘हंस’ राजस्थान के उन चुनिंदा साहित्यकारों में शामिल हैं जिन्हें वर्ष 2023-24 में राजस्थान साहित्य अकादमी का अमृत सम्मान प्राप्त हुआ है।
अब तक उनकी 42 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें कहानी, कविता-संग्रह, अनुवाद एवं चिंतनात्मक निबंध शामिल हैं।
हाल ही में उनका लघु कविता-संग्रह ‘महर के मोती’ प्रकाशित हुआ था।

‘अर्चना के स्वर’ को डॉ सोमानी ने अपने परम पूज्य गुरु हरदयाल जी को समर्पित किया है—
जिनके संकल्प, उनके अनुसार, “अध्यात्म की रसधार को जन-जन में आल्हादित करते हैं।”

समीक्षा
राजस्थान लेखिका साहित्य संस्थान, जयपुर की सचिव डॉ सुषमा शर्मा ने इस कृति की समीक्षा में लिखा—
“यह संग्रह चेतना की अलख जगाने वाला है। इसमें ऐसे प्रसंग हैं जो सत्य और विश्वास को गुणातीत करते हैं। विषय ज्ञानपरक हैं— ‘सद्गुरु के बिन कुछ नाहिं’, ‘प्रेम जगत का सार’, ‘इच्छा दुःख का मूल’ जैसे प्रसंग पाठक को आत्मबोध कराते हैं।”

संपादकीय लेख
इस संग्रह का संपादकीय डॉ हंस के पुत्र सीए डॉ श्याम सोमानी ने लिखा है। उन्होंने गुरु-भक्ति पर केंद्रित पंक्तियों के साथ उल्लेख किया—
“जब शिष्य पूर्ण समर्पण करता है तो सद्गुरु कृपा कर उसे चौरासी के बंधन से मुक्त करते हैं। गुरु कुम्हार की तरह शिष्यों के दोष निकालकर उन्हें दृढ़, टिकाऊ और सुंदर घड़ा बनाते हैं—चोट भी वही देते हैं और सहारा भी वही देते हैं।”

उन्होंने प्रकाशक हिमांशु वर्मा एवं उनकी टीम को सहयोग के लिए आभार जताया और शुभचिंतकों का धन्यवाद किया।

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