दरवाज़े की ओट से …
बहुत बार ध्यान से देखा है तुम्हें दरवाज़े की ओट से … तुम रोती हो ,चुपचाप आँसू बहाती हो बिन किसी शोर के….पर क्यों? क्या दुःख है तुम्हें ? अभिव्यक्ति ,प्रकृति व जीवनक्रम के साथ अंतरद्वंद में डूबी, जिसे तुम बाँट नहीं सकती क्या बात है दिल में तुम्हारे, जिसे तुम ,बतला नहीं सकती सिसकती … Read more