नारी तुम स्वयमसिद्धा बनो
पंख तो दे दिए उड़ने को मुझे, गगन का भी तो विस्तार करना था, कैसे भरूँ मैं उन्मुक्त उड़ान अपनी, भाती नही है,बंधनों से बंधी उड़ान मुझे, देख सकूँ सपने,हक़ तो दे दिया मुझे, अपनी सोच को भी तो बदलना था, क्यों चलूँ नज़रें झुकाकर मैं ही, नज़र से नज़र मिला कर, चलने का सलीका … Read more