पैसे कमाना पड़ता है

पर्दादारी में हो या बेपर्दा क्या फर्क पड़ता है क्या है इंसाँ की कीमत यहाँ ज़िंदा रहने के लिए पैसे कमाना पड़ता है। कौन कैसा है ये जान के नहीं मिलता राशन क्या कोई ख़रीददार का चरित्र पूछा करता है। अच्छाई-बुराई की होती है चाय पे चर्चा जरूरतों के लिए तो पैसा ही ख़र्चना पड़ता … Read more

तभी भारत आयुष्मान बन सकेगा!

आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा की धरती रांची से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘आयुष्मान भारत’ के नाम से जिस आरोग्य योजना को शुरु किया है, वह निश्चय ही दुनिया की सबसे बड़ी योजना है। 50 करोड़ लोगों को पांच लाख तक का स्वास्थ्य बीमा देने वाली यह दुनिया की अपनी तरह की सबसे बड़ी योजना है। … Read more

यकीं का यूँ बारबां टूटना

यकीं का यूँ बारबां टूटना आबो-हवा ख़राब है मरसिम निभाता रहूँगा यही मिरा जवाब है मुनाफ़िक़ों की भीड़ में कुछ नया न मिलेगा ग़ैरतमन्दों में नाम गिना जाए यही ख़्वाब है दफ़्तरों की खाक छानी बाज़ारों में लुटा पिटा रिवायतों में फँसा ज़िंदगी का यही हिसाब है हार कर जुदा, जीत कर भी कोई तड़पता … Read more

उम्र भर सवालों में उलझते रहे

उम्र भर सवालों में उलझते रहे, स्नेह के स्पर्श को तरसते रहे फिर भी सुकूँ दे जाती हैं तन्हाईयाँ आख़िर किश्तोंमें हँसते रहे आँखों में मौजूद शर्म से पानी, बेमतलब घर से निकलते रहे दफ़्तर से लौटते लगता है डर यूँ ही कहीं बे-रब्त टहलते रहे ख़ाली घर में बातें करतीं दीवारों में ही क़ुर्बत-ए-जाँ1 … Read more

संघ की दस्तक सुनें

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का तीन का ‘भविष्य का भारत’ विषयक विचार अनुष्ठान अनेक दृष्टियों से उपयोगी एवं प्रासंगिक बना। दिल्ली के विज्ञान भवन में देश के प्रमुख बुद्धिजीवियों और लगभग सभी दलों के प्रमुख नेताओं को आमंत्रित कर उन्हें न केवल संघ के दृष्टिकोण से अवगत कराया गया बल्कि एक सशक्त भारत के निर्माण में … Read more

न रख इतना नाज़ुक दिल

इश्क़ किया तो फिर न रख इतना नाज़ुक दिल माशूक़ से मिलना नहीं आसां ये राहे मुस्तक़िल तैयार मुसीबत को न कर सकूंगा दिल मुंतकिल क़ुर्बान इस ग़म को तिरि ख़्वाहिश मिरि मंज़िल मुक़द्दर यूँ सही महबूब तिरि उल्फ़त में बिस्मिल तसव्वुर में तिरा छूना हक़ीक़त में हुआ दाख़िल कोई हद नहीं बेसब्र दिल जो … Read more

मतदाता को मुखर होना होगा

भारतीय राजनीति की अनेक विसंगतियों एवं विषमता में एक बड़ी विसंगति यह है कि राजनेताओं सुविधानुसार अपनी ही परिभाषा गढ़ता रहा है। अपने स्वार्थ हेतु, प्रतिष्ठा हेतु, आंकड़ों की ओट में नेतृत्व झूठा श्रेय लेता रहा और भीड़ आरती उतारती रही। भारतीय लोकतंत्र की इस बड़ी विसंगति के कारण मतदाता या आम जनता बार-बार ठगी … Read more

संघ की बुनियादी सोच का अनुष्ठान

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का आज से दिल्ली के विज्ञान भवन में तीन दिन का विचार अनुष्ठान शुरू हो रहा है। ‘भविष्य का भारतः राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का दृष्टिकोण’ विषयक इस अनुष्ठान में राष्ट्रीय मुद्दों पर संघ के विचारों, उसके नजरिये एवं कार्यक्रमों को प्रकट किया जायेगा। जिसमें उससे वैचारिक मतभेद रखने वाले चिन्तकों, … Read more

कुछ ख़्वाब बुन लेना जीना आसान हो जायेगा

कुछ ख़्वाब बुन लेना जीना आसान हो जायेगा दिल की सुनलेना मिज़ाज शादमान हो जायेगा मुद्दत लगती है दिलकश फ़साना बन जाने को हिम्मत रख वक़्त पे इश्क़ मेहरबान हो जायेगा टूटना और फिर बिखर जाना आदत है शीशे की हो मुस्तक़िल अंदाज़ ज़माना क़द्रदान हो जायेगा लर्ज़िश-ए-ख़याल में ज़र्द किस काम का है बशर … Read more

बदहाल अर्थ व्यवस्था में आखिर क्या करे आदमी ….!!

तारकेश कुमार ओझा कहां राजपथों पर कुलांचे भरने वाले हाई प्रोफोइल राजनेता और कहां बाल विवाह की विभीषिका का शिकार बना बेबस – असहाय मासूम। दूर – दूर तक कोई तुलना ही नहीं। लेकिन यथार्थ की पथरीली जमीन दोनों को एक जगह ला खड़ी करती है। 80 के दशक तक जबरन बाल विवाह की सूली … Read more

बीजेपी की दुविधा

विभिन्न रिपोर्ट और अनेक लेखों के अध्यन के बाद अनुमानतः देश के १३२ करोड़ की आबादी में विभन्न वर्गों का प्रतिशत कुछ यूँ होता है ब्राह्मण ४% क्षत्रिय ७% वैश्य ५% मुश्लिम १७% ईसाई २% ये सब मिलकर हुए ३५%,१३२ करोड़ में से ४६.२ करोड़ निकले तो बचे ८५.८ करोड़ जो दलित पिछड़ा औ बी … Read more

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