दादा पंडित राम नारायण उपाध्याय : स्वर्णिम स्मृतियों से

ये उस समय की बात है जब कंप्यूटर को वातानुकूल में ही रखा जाता था और उसे छुने के लिए भी पहले हतेलियों से धूल झटकनी पड़ती थी। सदी बदल रही थी इक्कीसवीं सदी का प्रारम्भ था बात होगी सन 1999 – 2000 की अब मैं भावनाओं को बहुत अच्छे से समझने लग चुका था। … Read more

बचपन को लीलता होमवर्क का बोझ

छुट्टियां यानी बच्चों के मौज-मस्ती और सीखने का मौसम होता है, जो अब स्कूलों से मिलने वाले होमवर्क के बोझ तले मुरझा रहा है। बेहतर व आधुनिक शिक्षा के नाम पर बच्चों पर आवश्यकता से अधिक होकवर्क का बोझ उनके कोमल मन मस्तिष्क के लिए हानिकारक एवं विडम्बनापूर्ण साबित होता जा रहा है। खिलता बचपन … Read more

लोकतंत्र में हिंसा की संस्कृति के दाग

भारत का लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, इसको सशक्त बनाने की बात सभी राजनैतिक दल करते हैं, सभी ऊंचे मूल्यों को स्थापित करने की, आदर्श की बातों के साथ आते हैं पर सत्ता प्राप्ति की होड़ में सभी एक ही संस्कृति-हिंसा एवं अराजकता की संस्कृति को अपना लेते हैं। मूल्यों की जगह कीमत … Read more

भिक्षावृत्ति और शिक्षावृत्ति

गुरुजी की धर्म पत्नी बोली-‘‘ तुम हमेशा स्कूल से विलम्ब से आते हो , ओव्हर टाईम करते हो पर निश्चित वेतन के अतिरिक्त ओव्हर टाईम कभी नहीं लाते।‘‘ गुरुजी बोले-‘‘शासन ने ओव्हर टाईम का काम तो जारी रखा है, परन्तु ओव्हर टाईम का भुगतान प्रतिबंधित कर रखा है। ‘‘ कुछ सेवा निवृत्त हो गए , … Read more

वाह कोलकाता. आह कोलकाता .!!

तारकेश कुमार ओझा देश की संस्कारधानी कोलकाता पर गर्व करने लायक चीजों में शामिल है फुटपाथ पर मिलने वाला इसका बेहद सस्ता खाना। बचपन से यह आश्चर्यजनक अनुभव हासिल करने का सिलसिला अब भी बदस्तूर जारी है । देश के दूसरे महानगरों के विपरीत यहां आप चाय – पानी लायक पैसों में खिचड़ी से लेकर … Read more

भारतीय न्यायपालिका

आज समाचारों में माननीय उच्चतम न्यायालय से दो ख़बरें एक बार फिर न्यायपालिका की विश्वशनियता की और एक दृढ़ कदम की ओर इशारा करती हुई दिखाई दी ! पहली उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्य मंत्रियों को मुफ़्त आवास से वंचित करने का आदेश दू जिसके द्वारा 6 पूर्व मुख्य मंत्रियों को सरकारी बंगलों से बेदखल … Read more

“प्रेस स्वतंत्रता” -शोषक भी और शोषित भी

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस–वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अमित टंडन अजमेर। मैं कभी कभी सोचता हूँ के “स्वतंत्रता” शब्द को भी क्यों न हम उसी तरह मानें, जैसे भारत को माँ मान कर उसे एक शक्ल दे दी गई और उसके चित्र बना कर पूजा की जाती है। यकीन मानिये के “स्वतंत्रता” का असल रूप इतना मोहक … Read more

नक्सलवाद को हराती सरकारी नीतियाँ

24 अप्रैल 2017 को जब “नक्सली हमले में देश के 25 जवानों की शहादत को व्यर्थ नहीं जाने देंगे” यह वाक्य देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था, तो देशवासियों के जहन में सेना द्वारा 2016 में की गई सर्जिकल स्ट्राइक की यादें ताजा हो गई थीं। लेकिन नक्सलियों का कोई एक ठिकाना नहीं … Read more

बदल जाएगा जल्द नफरत का जो माहौल हो गया है

“अभी बैठे हुए ख्यालों में, मुझे एक ख्याल आया, कि एक अर्सा गुजर गया है, मगर, वो नजर नहीं आया। अभी कल ही कि तो बात थी, वो इन्सान हुआ करता था, पर अचानक मुझे पता चला, मैं हिन्दु और वो मुसलमान हो गया है। दिलों में मुहब्बतें हुआ करती थी, अभी कुछ साल पहले … Read more

आओ . आंदोलन – आंदोलन खेलें.!!

आपका सोचना लाजिमी है कि भला आंदोलन से खेल का क्या वास्ता। देश ही नहीं बल्कि दुनिया में जनांदोलनों ने बड़े बड़े तानाशाहों को धूल में मिला दिया। लेकिन जब आंदोलन भी खेल भावना से किया जाने लगे तो ऐसी कुढ़न स्वाभाविक ही कही जा सकती है। दरअसल मेरे गृहराज्य में कुछ दिन पहले एक … Read more

खुले बाळ , शोक और अशुद्दि की निशानी

आजकल माताये बहने फैशन के चलते कैसा अनर्थ कर रही है पुरा पढें। रामायण में बताया गया है, जब देवी सीता का श्रीराम से विवाह होने वाला था, उस समय उनकी माता सुनयना ने उनके बाल बांधते हुए उनसे कहा था, विवाह उपरांत सदा अपने केश बांध कर रखना। बंधे हुए लंबे बाल आभूषण सिंगार … Read more

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