जब सरबजीत ने लिखा, मेरी लाश वी तैनूं नसीब नहीं होणी
तरनतारन। मेरी प्यारी सुखप्रीत। तैनूं की दस्सां, जदों दा मैनूं फांसी लगाऊण दा हुकम होया उदों तों मेरी तड़फ आउण लई वद्ध गई है। मैं आपणीआं धीआं नूं प्यार नहीं दे सकदा। लगदा है कि जिवें मेरी लाश वी तैनूं नसीब नहीं होणी..। [मेरी प्यारी सुखप्रीत, तुझे क्या बताऊं। जबसे मुझे फांसी देने का हुक्म … Read more