आम आदमी को नहीं खींच पाया गुलशा बेगम का जलवा

डिवाइन अबोड संस्था की ओर से आयोजित इंटरनेशल सूफी फेस्टिवल कहने को यूं तो कामयाब रहा, मगर मिस मैनेजमेंट अथवा कदाचित दरगाही राजनीति के कारण यह दर्शकों को तरस गया। नतीजतन इसकी कर्ताधर्ता गुलशा बेगम के खाते में तो एक बड़ा आयोजन करने की उपलब्धि दर्ज हो गई, मगर आज जनता इसका लाभ नहीं उठा पाई। हिंदलवली के नाम से विख्यात महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के शहर में इसका जो हश्र हुआ, वह बेहद अफसोसनाक ही कहा जाएगा।
बेशक आज जिस दौर से दुनिया और भारत गुजर रहे हैं, उसमें सूफीज्म बेहद जरूरी है। संस्था का भी यही मकसद था कि ख्वाजा साहब की शिक्षा और सूफीज्म का संदेश आमजन तक पहुंचे। अफसोस कि वह हो न सका। ऐसा प्रतीत होता है कि इस फेस्टिवल का ठीक से प्रचार-प्रसार ही नहीं किया गया और न ही बड़े पैमाने पर लोगों को जोडऩे की कोशिश हुई, इस कारण आम आदमी इससे जुड़ नहीं पाया। इन्विटेशन कार्ड जितना खूबसूरत था और जितनी मेहनत उसको बनाने पर हुई, उतनी मेहनत भी इसके ठीक से वितरण पर नहीं की गई। आयोजन को लेकर हवाई बातें ज्यादा हुईं, मगर धरातल पर कुछ ठोस प्रयास हुए ही नहीं। शहर के गिने-चुने लोगों ने ही इसका आनंद लिया। आम आदमी महरूम रह गया। अखबारों में जरूर खबरें छपीं, मगर उसके पीछे था केवल मीडिया मैनेजमेंट। यानि कि जितना कामयाब नहीं था, उससे कहीं ज्यादा कवरेज हासिल कर लिया। इस लिहाज से भले ही कागजों में इसे कामयाब करार दे दिया जाए, मगर सच ये है कि आम आदमी इसके प्रति कत्तई आकर्षित नहीं हुआ। ऐसे में अगर कहा जाए कि जिस सूफीज्म को आम जन तक पहुंचाने के मकसद से यह अर्थ साध्य व श्रम साध्य कार्यक्रम हुआ, वह तो कत्तई पूरा नहीं हुआ। कार्यक्रम की गुणवत्ता पर नजर डालें तो शिड्यूल के हिसाब से इसमें भरपूर विविधता थी, मगर यह वह ऊंचाइयां नहीं छू पाया, जिसकी कि उम्मीद थी। कलाकार अपने पूरे फन को नहीं खोल पाए। संभव इसकी वजह ये रही हो कि उन्हें देखने वाले इतने कम थे कि वे किसके सामने पूरे दिल से प्रस्तुति देते। अलबत्ता तेज तर्रार आयोजिका गुलशा बेगम ने शहर के लगभग सारे वीआईपी को कार्यक्रम में ला कर जता दिया कि उनके व्यक्तित्व में कुछ तो खास है। इससे उनके हाई प्रोफाइल होने का भी सबूत मिलता है, जिसकी चमक से हर वीआईपी, राजनेता हो या अफसर, की आंखें चुंधिया गई।
एक बड़ी और रेखांकित करने वाली बात ये भी नजर आई कि दरगाह शरीफ से गहरे जुड़ा खुद्दाम साहेबान का तबका इस आयोजन से लगभग कटा ही रहा। अजमेर शरीफ में सूफीज्म पर कोई जलसा हो और उसमें ख्वाजा साहब के खिदमतगार गैर मौजूद रहें, तो चौंकना स्वाभाविक ही है। ऐसा लगता है कि आयोजकों का दरगाह दीवान जेनुअल आबेदीन से जुड़ाव होना इसकी प्रमुख वजह रही है। दीवान व खुद्दाम हजरात के बीच कैसे ताल्लुक हैं, इसे सब जानते हैं। यानि कि दरगाही सियासत के चलते एक शानदार सूफी जलसा अपने उरोज पर नहीं आ पाया। यह न केवल सूफीज्म के मिशन के लिए अफसोसनाक है, अपितु अजमेर वासियों के लिए भी दुखद। उम्मीद है कि आयोजन की समीक्षा करने पर बहुमुखी प्रतिभा की धनी गुलशा बेगम भविष्य में इस बात पर पूरा ध्यान देंगी कि कार्यक्रम जिस मकसद से हो रहा है, कम से कम से वह तो पूरा होना ही चाहिए। कार्यक्रम महज एक उपलब्धि का तमगा बन कर न रह जाए। और इसके लिए उन्हें अपने जैसे करंट वाली टीम भी बनानी होगी।
-तेजवानी गिरधर

2 thoughts on “आम आदमी को नहीं खींच पाया गुलशा बेगम का जलवा”

  1. Mr. T Girdhar… u r absolutely right… i give 3 “S” of News .. “Ajmer Se Sidhi-Sacchi-Saaf Bat— Girdhar ke Sath”

  2. आपकी बात से मै भी सहमत हु..कार्यक्रम लाजवाब थे लेकिन दर्शको को तरस गए .

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