परिवादी क्यों नहीं पंहुच पाते पुलिस अधीक्षक तक ?

राजेश टंडन एडवोकेट
राजेश टंडन एडवोकेट
अजमेर पुलिस अधीक्षक कार्यालय में एक कमरा नं. 5 है जहां पर कोई भी परिवादी अगर पुलिस अधीक्षक से मिलने अपनी शिकायत लेकर आए तो उसे पहले उस शिकायत को कमरा नं. 5 में बैठे हुए पुलिस अधिकारियों के पास दर्ज कराना पड़ता है और वो ये देखते हैं कि किस पुुलिस थाने से संबंधित है और इसमें क्या-क्या कार्यवाही हो चुकी है और पहले भी यह परिवादी कहीं आया हुआ तो नहीं है और इस संबंध में पुलिस थाने में क्या कार्यवाही हुई है ? परिवादी पहले पुलिस थाने गया है या नहीं या सीधा ही पुलिस अधीक्षक के कार्यालय में आया है और उसमें खिलाफ पार्टी कौन है और पुलिस थाने से वो पूछते हैं कि इस केस में अब तक क्या-क्या हुआ है ? जब यह सारा विश्लेषण वो कर लेते हैं तब वह परिवादी को पुलिस अधीक्षक साहब के सामने पेश करते हैं और जो भी अधिकारी कमरा नं. 5 का परिवादी को ले जाता है वो ही एस.पी. साहब के सामने पहले सारे तथ्य बताता है और फिर पुलिस अधीक्षक महोदय अगर चाहें तो परिवादी से कुछ पूछते हैं नहीं तो अपनी तरफ से जो चाहंे नोटिंग कर देते हैं, परिवादी को कुछ समझ नहीं आता कि मेरे परिवाद पर क्या हुआ, उसे तो बाद में ही पता लगता है कि मुकामी पुलिस के पास भेजा है या परिवाद दफ्तर ही दाखिल हो गया है, यह हुआ प्रक्रिया का एक अंग।
अब जैसे ही परिवादी कमरा नं. 5 में पहुंचता है वहां बैठे पुलिस वाले उसे पढ़ते हैं और अगर वो किसी पुलिस थाने के खिलाफ होता है कि उस परिवाद में पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं की है या बावजूद पुलिस उच्च अधिकारियों के निर्देशों के कुछ भी नहीं किया है या एफ.आई.आर ही दर्ज नहीं की है वह तुरन्त उस पुलिस थाने को फोन करते हैं कि तुम्हारे खिलाफ शिकायत लेकर फलां परिवादी आया है, तुरन्त आ जाओ और इसे राजी भाजी करके ले जाओ नही ंतो तुम्हारे खिलाफ कार्यवाही होगी। शहर के थानेदार तो तुरन्त अपने अधीनस्थों को भेज कर परिवादी को पटा पुटुकर ले जाते हैं और बाहर जिले के थानेदारों से कमरा नं. 5 वाले पूछताछ कर उनका पक्ष परिवाद के साथ जोड़ देते हैं और परिवादी के मोबाइल नं. पर संबंधित पुलिस थाने वालों की बात करा देते हैं और उसे ठण्डा छींटा लगवा देते हैं और उसे बिना मिलाए ही रुखसत कर देते हैं कि तुम्हारे लिए पुलिस थाने में कह दिया है वहीं जाओ तुम्हारा सब काम हो जाएगा, इस एवज में थाने वाले कमरा नं. 5 वालों की मिजाजपुर्सी करते रहते हैं, मौसम के अनुसार सामान सट्टा भेजते रहते हैं, इसलिए जब वहां से कोई समस्या का समाधान नहीं होता तो वो परिवादी अन्य लोगों को भी अपने साथ हुए व्यवहार की दास्तान बताता है तो अन्य लोग भी उससे नसीहत लेकर पुलिस अधीक्षक कार्यालय में नहीं आते हैं यह सोचकर कि वहां जाने से भी क्या फायदा होगा सिवाय समय खराब होने के ? इस तरह की प्रक्रिया से माननीय पुलिस अधीक्षक महोदय सच्चाई से महरूम रह जाते हैं और उनको वास्तविकता का पता ही नहीं लगता कि जिले में क्या हो रहा है ? क्यों कि जब तक परिवादी से सीधा सम्पर्क ना हो तो ठकुर सुहाती बात ही पुलिस अधीक्षक तक जाती है और वास्तविकता सामने नहीं आ पाती, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षकों को परिवादियों को मिलने नहीं दिया जाता है और पुलिस अधीक्षक महोदय के पास गैर हाज़िर रहे पुलिसकर्मियों की आमद को लेकर इतनी भीड़ होती है कि ओ.आर. में वो पुलिस वाले और आमद करवाने के लिए पूरे जिले के गैर-हाज़िरशुदा पुलिसकर्मी कलंगी लगाए खड़े रहते हैं, जब उनसे फुर्सत मिलती है तब ही परिवादियों का नम्बर आता है, इस व्यवस्था में सुधार होना चाहिए ताकि शिकायतकर्ता को राहत के साथ संतुष्टि भी जरूरी रूप से मिलनी चाहिए और उसको तसल्ली हो कि उसकी शिकायत पर कार्यवाही होगी।
महज़ शराबियों को पकड़ने से शहर की कानून व्यवस्था में सुधार नहीं आ सकता, जब तक शहर की दुकानें समय पर खुलें और समय पर ही बन्द ना हों तो शराब पीने वालों को पकड़ कर तो आंकड़ों का मायाजाल ही पुलिस ही रच सकती है जबकि शराब तो रात 12.00 बजे तक आसानी से शहर में हर दुकान पर उपलब्ध होती है आदमी जब खरीद कर निकलता है तो पुलिस उसका सब कुछ संूघकर उसे पकड़ लेती है और अपना टारगेट पूरा कर लेती है और माॅर्निंग रिपोर्ट में अपनी पीठ थपथपवा लेती है शराब के दुकानों से मिजाजपुर्सी भी करवालेती है और लक्ष्य भी पूरा कर लेती है अगर दुकानें सही समय पर बन्द हो जाएं तो इस सब की नौबत ही ना आएगी।
आपका अपना राजेश टंडन, एडवोकेट, अजमेर।

2 thoughts on “परिवादी क्यों नहीं पंहुच पाते पुलिस अधीक्षक तक ?”

  1. आप की बात सच है मैं खुद भुक्तभोगी हूँ पोलिसेवाले की शिकायत की उसने किस तरह मुझसे 12 लाख रूपये ठग लिए लेकर गया था मुझे ही डरा दिया की पुलिस पुलिस के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करेगी बल्कि तुम्हे ही फसा देगी

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