आत्म निर्भर

हेमंत उपाध्याय
कामना के अच्छे नंम्बरों से कालेज का दुसरा साल पास करते ही बाबूजी ने उसे आगे पढ़ाने के बजाय उसका विवाह कर दिया और एकलोती बेटी पराई हो गई।
कामना का ससुराल गाँव में था । सास -ससुर व जेठ- जेठानी भी थे पर नयी घोड़ी नया दाम की प्रथा होने से चूल्हा फूँकने,चौका बर्तन करने की नैतिक जिम्मेदारी उसी की थी । इस सबके बाद वो समय निकाल कर कपड़े सिलाई का काम करने लगी।जिसकी आधी कमाई से वो घर के ऊपरी खर्च वहन करती व बचे पैसे पोस्ट आफिस से लिए छोटी बचत के सुरक्षा कोष के बाक्स में डाल देती थी । जो दादाजी ने दहेज में अन्य सामान के अतिरिक्त उसे भेंट में दिया था ।
जब दादा जी शांत हुऐ तो कामना सुरक्षा कोष का डब्बा लेकर गई । पिताजी को सहायतार्थ सुरक्षा कोष के पैसे देने की पेशकश की । पिताजी बोले- ये पैसे तुम्हारे भविष्य को सुरक्षित करने के लिए काम आएंगे। ये ही दादाजी की इच्छा थी। उसने किसी को बताये बिना अंतिम वर्ष की कालेज की व परीक्षा की फीस सुरक्षा कोष के डिब्बे के पैसे से भर दी। दादाजी के पन्द्रह दिन के श्राद्ध के कार्यक्रम के बाद कामना पति के साथ ससुराल चली गई व घर गृहस्थी के काम के अलावा गुप्तरुप से पढ़ाई भी करने लगी ।
सौभाग्य से उसकी गोद भर गई और विधिवत गोद भराई रश्म के साथ प्रथम जचकी हेतु भूवा- फूफा व पापा के साथ वो शहर चली गई । जहाँ पिता अकेले ही रहते थे, क्योंकि माँ तो बचपन में ही चल बसी थी।
पहली जचकी का परिणाम सुनकर ससुराल वाले स्तब्ध रह गये । बहू को ससुराल लाना तो दूर कोई सुंदर कन्या को देखने तक नहीं आया। सबकी उम्मीदों पर पानी फिर गया था । क्योंकि सास ससुर की इच्छा पोते का मुह देखने की थी।
इसका भी लाभ भगवान की कृपा से उसे ये मिला कि परीक्षा का टाईम टेबल आ गया । कामना पुत्री रत्ना को गोद में ही लेकर परीक्षा देती थी। अच्छी मेहनत के कारण वे अच्छे नंम्बरों से पास हुई और सरकारी नौकरी पाने में भी सफल हुई। शहर में पिता का घर होने व सरकारी नौकरी होने से उसे पति की कमी के अलावा कोई कमी नहीं थी। आत्म निर्भर होने से अच्छी आय और बचत की खबर सुनकर पति ने एक दिन शहर जाकर पत्नी से भेंट कर इच्छा जाहिर की कि मैं भी शहर में कोई छोटी मोठी नौकरी कर लूँगा । तुम मुझे अपना लो । कामना बोली -आप तो मेरे ही हो । मैंने आपके साथ फेरे फिरे पर बेटी की खबर सुनकर आपने अपना मुँह फेरा। पति अपनी गलती स्वीकारते हुए कान पकड़ने लगा तो पत्नी ने पाँव पड़कर उन्हे हिम्मत व मान दिया और तीनों मिलजुलकर पापा की सेवा कराने लगे।

जो पत्नी आत्म निर्भर होती है तो उसे बेटी पालने में भी परेशानी नहीं होती और न ही गलत बात के लिए किसी के आगे झुकना या हाथ फैलाना नहीं पड़ता ।

हेमंत उपाध्याय.
साहित्य कुटीर
पं.राम नारायण उपाध्याय वार्ड क्र 43 खण्डवा म.प्र. 450001 7999749125
9425086246

error: Content is protected !!