
शलोनी का ससुराल गाँव में होने से चूल्हा फूँकने,चौका बर्तन करने के बाद वो समय निकाल कर कपड़े सिलाई का काम करने लगी। पर वो अपनी कमाई के आधे पैसे ही पति को देती।
उसने किसी को बताये बिना अंतिम वर्ष की स्कूल व परीक्षा फीस सिलाई की बची हुई आय से भर दी।
अंतिम साल की परीक्षा के पहले शादी का पहला परिणाम आ गया व वैवाहिक जीवन में सफल होने के प्रमाण स्वरूप उसे पुत्र रत्न प्राप्त हुआ। जिसका नाम रत्नदीप रखा गया।
रत्नदीप तीन माह का ही था और परीक्षा की तारीख आ गई। पहली जचकी पिता के घर कराने के लिए पहले ही सलोनी को पिता के यहाँ शहर भेज दिया था । जहाँ पिता अकेले ही रहते थे। क्योंकि माँ तो बचपन में ही चल बसी थी।
पहली जचकी के लिए पिता घर शहर आने से कालेज की परीक्षा की जानकारी भी किसी ससुराल वाले को नहीं थी। सलोनी पुत्र रत्नदीप को गोद में ही लेकर परीक्षा देती थी। अच्छी मेहनत के कारण वे अच्छे नंम्बरों से पास हुई और सरकारी नौकरी पाने में भी सफल हुई।
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
हेमंत उपाध्याय.
साहित्य कुटीर
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