सबसे पहले भगवानगणेश की ही पूजा आराधना करते हैं

मैनेजमेंट के सर्वश्रेष्ट आदि गुरु विघ्नहर्ता देवों के देव विनायकसनातनी हिन्दू भगवान गणेश को अनेक नामों से पुकारते हैं कोई इन्हें विघ्नहर्ता कहता है तो कोई इन्हें सिद्धिविनायक। |असंख्य हिन्दू चाहे दुनिया केकिसी भी भाग में निवास करते हों कोई भी नया काम शुरू करते हों. सबसे पहले भगवानगणेश की ही पूजा आराधना करते हैं । गणेशजी दुनिया में तिब्बत-सिंध-जापान-श्रीलंकासहित समस्त भारत की संस्क्रती के अन्दर समाये है | सच्चाई तो यही है कि गणेशजी जैन धर्म मेंज्ञान-बुद्धि-सम्पन्नता का संकलन करने वाले गणों के प्रमुख के रूप में स्थापित है |

dr. j k garg
बोद्ध धर्म कीवज्रयान शाखा का मानना है कि गणेशजी की स्तुति-आराधना के बिना मन्त्र सिद्धिमुमकिन नहीं है | तिब्बत और नेपाल केवज्रयानी सम्प्रदाय के बोद्ध अपने आराध्यदेव भगवान बुद्ध की मूर्ति के समीप गणेशजीकी मूर्ति भी स्थापित करते हैं | निसंदेह गणेश जी विघ्नहर्ता,सम्रद्धि, रिद्धि-सिद्धि, आनन्द, वैभव और ज्ञान केदेवता के रूप में जाने जाते हैं | शिव-पार्वती के पुत्र के रूप मेंभाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेशजी का जन्म हुआ था | गणेशजी के जन्म केसमय समस्त देवी देवता उन्हें आशीर्वाद देने को आये थे | भगवान विष्णु ने उन्हें ज्ञान का वहीं ब्रह्माजी ने उनको यश औरपूजन का आशीर्वाद दिया | धर्मराज ने गणेशजी को धर्म एवं दया का आशीर्वाद दिया | भगवान शिव नेउन्हें उदारता, बुद्धी,शक्ति और आत्म संयम का आशीर्वाद दिया | माता लक्ष्मी नेकहा जहाँ गणेश रहेगें वहीं मै रहूगीं | माता सरस्वती ने उन्हें स्म्रति,वाकपटुता-वक्तव्य शक्ति और वाणीका आशीर्वाद दिया | सावित्री ने गणेशजी को बुद्धी दी | ब्रम्हा-विष्णु-महेशने गणेश को अग्र पूज्य, प्रथम देव और रिद्धि-सिद्धि प्रदाता का वरदान दिया | विभिन्नदेवी-देवताओं के आशीर्वचन और वरदान से ही गणेशजी सार्वभोमिक, सार्वकालिक,सात्विक और सार्वदेशिक लोकप्रियदेव है | गणेश में गण का अर्थ है “वर्ग और समूह”और ईश का अर्थ है “स्वामी” अर्थात जो समस्तजीव जगत के ईश हैं वहीं देवों के देव भगवान गणेश ही है | इसलिए उन्हेंगणाध्यक्ष, लोकनायक गणपति के नाम से भी जाना जाता है | गणेशजी की चारभुजाएं चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक हैं। शिव मानस पूजा में श्री गणेशको प्रणव (ॐ) कहा गया है। इस एकाक्षर “(ॐ ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डूऔर मात्रा सूँड है)। विघ्नहर्ता गणेशजी की व्याख्या करने से स्पष्ट होता है कि गजदो व्यंजनों से यानि ग एवं ज से बना हैं, यहाँ अक्षर ज जन्म और उद्दगम का परिचायक है वहीं ग गति और गन्तव्यका प्रतीक है | निसंदेह हमें गज से जीवन की उत्पति और अंत का संदेश मिलता है यानिहमारे नश्वर शरीर को जहाँ से आया है वहीं पर वापस जाना है | निसंदेह जहाँ जन्महै वहां म्रत्यु भी है | सच्चाई तो यही है कि विनायक गणेशजी के शरीर की शारीरिक रचना के भीतरभोले शंकर शिवजी की सूक्ष्म सोच निहित है, भगवान शिव ने गणेशजी के अंदर न्यायप्रिय,योग्य, कुशल एवं सशक्तशासक के समस्त गुणों के साथ उनके अंदर देवों के सम्पूर्ण गुण भी समाहित किये हैं | गणेशजीकी मूर्ति का विसर्जन क्यों किया जाता है ?भाद्र शुक्ल चतुर्थी को गणेशजी कीमूर्ति की स्थापना ढोल नगाड़े के साथ घरों में जाती है | भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से अगले 10 दिन के बाद देश के विभिन्नप्रान्तों में गणपति बप्पा मोरिया, मंगल मूर्ति मोरिया, अगले बरस तू जल्दी आना के नारों के साथ गणपति की मूर्ति का विसर्जनहर्षोल्लास के साथ सरोवरों में किया जाता है | धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से अगले 10 दिन तक गणपति को वेद व्यास जी ने भागवत कथा सुनाई थी।गणेश जी की शर्त थी कि महर्षि एक क्षण के लिए भी कथावाचन में विश्रामना लेंगे। यदि वे एक क्षण भी रूके, तो गणेश जी वहीं लिखना छोड़ देंगे। महर्षि ने उनकी बात मान ली और साथमें अपनी भी एक शर्त रख दी कि गणेश जी बिना समझे कुछ ना लिखेंगे। हर पंक्ति लिखनेसे पहले उन्हें उसका मर्म समझना होगा। गणेश जी ने उनकी बात मान ली। इस कथा को गणपति जी ने अपने दाँत से लिखा था।दस दिन तक लगातार कथा सुनाने के बाद वेद व्यास जी ने जब आंखें खोली तो पाया किलगातार लिखते-लिखते गणेश जी के शरीर का तापमान काफी बढ़ गया है। महर्षि वेद व्यासजी ने गणेश जी को आदेश दिया कि वो तुरंत पास के कुंड में डुबकी लगा कर अपने आप कोले ठंडा कर लें । अत: इसी मान्यता के अनुसार गणेशजी की मूर्ति का विसर्जन कियाजाता हैहाथ में अंकुश: गणेशजी का अंकुश हमें अपने लक्ष्य की और केन्द्रित रहते हुए हमेशाआगे बड़ने का पाट पढ़ाता है | | मनुष्य को अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिये सतत प्रयास करते हुवेनिरंतर आगे बड़ना ही होगा | गणेशजी के हाथ में अंकुश हम सभी को भोतिकता से आध्यात्मिकता की तरफचलने की शिक्केषा भी देता है | आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ : निर्सविवाद रूप से जीवन में हमेशाजीत उन व्यक्तियों की होती है जो परिस्थतियों के अनुसार अपने आप को परिवर्तित करकेआगे बड़ते हैं | गणेशजी केआशीर्वाद की मुद्रा में हाथ हमें परिस्थतीयों के अनुसार खुद को ढालने की क्षमताविकसीत करने की सीख देता है | अत: भगवान गणेशजी का आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ हमको उच्चकार्यक्षमता और अनुकूलन क्षमता प्काराप्त करने की प्रेरणा देता है |चूहे की सवारी: सभी देवी-देवता गणेशजी की बुद्धिमता के कायल हैं, तर्क-वितर्क में हर देवी-देवतागणेशजी से हार जाते थे | प्रत्येक समस्या के मूल में जाकर उसकी मीमांसा एवं विवेचना कर उसकातर्कसंगत हल खोजना उनकी विशेषता है इसलिए हर एक के मन में यह सवाल उठना लाजमी हैकि भगवान गणेशजी ने निकृष्ट माने जाने वाले चूहे (मूषक) को ही अपना वाहन क्योंचुना ? इसी सन्दर्भ में यह भी उल्लेखनीय हैकि चूहा भी तर्क-वितर्क में किसी से पिछे नहीं रहता है, चूहे का काम हर किसी भी वस्तु कोकुतर डालना है | जो भी वस्तुया चीज चूहे को दिखाई देती है, चूहे महाराज उसकी चीर फाड़ करके उसके प्रत्येक अंगो का विस्तृतविश्लेष्ण सा कर देते है,अत: संभवत गणेशजी ने चूहे के इन्हीं गुणों को देख कर चूहे को अपनावाहन चुना होगा | गणेशजी की चूहे की सवारी के बारे में यह भी कहा जाता है कि जैसेचूहे की इच्छा कभी पुरी नहीं होती, उसे कितना मिले हमेशा खाता रहता है वैसे ही मनुष्य की इच्छायें भीकितना भी मिले कभी पुरी नहीं होती क्योंकि लोभी आदमी का लालच कभी भी नहीं खत्महोता है | गणेश हमेशा चूहे की सवारी करते हैंइसका अर्थ है कि बेकाबू इच्छायें हमेशा विध्वंस का कारण बनती है | इनको काबू में रखते हुए इन पर राजकरो, न कि इन इच्छाओं के मुताबिक खुद कोउनमें लिप्त हो जा हो क्योंकि मनुष्य की इच्छायें और कामनाएं कभी भी पूरी नहींहोती है वरन आदमी इच्छाओं के मकड जाल में फसं कर असंतुष्ट तनावग्रस्त और दुखी रहकर रह कर अपने जीवन को बर्बादी के कगार पर ले आता है | अत: निसंदेह गणेशजी की चूहे की सवारीइन्सान की कभी भी पूरी नहीं होने वाली इच्छाओं का परिचायक है |खड़े होने का भाव: गणेशजी की यह अवस्था बताती है कि दुनिया में रहते हुए मनुष्य कोसांसारिक कर्म भी करने जरूरी है | वस्तुतः इन सबमें एक संतुलन बनाये रखते हुए उसे अपने सभी अनुभवोंको परे रखते हुए अपनी आत्मा से जुड़े रखना चाहिए और अपने जीवन को आध्यात्मिकतासेजोड़ कर अंतर मुखी बनना चाहिए | हाथी का सिर : इस कहावत से हम सभी परिचित हैं कि “ बड़ा सिर सरदार और बड़ा पांव गवांरका “ गणपति का बड़ा सिर खुशहाल जीवन जीनेके लिये इंसान के अन्दर मौजूद असीमित बुद्धिमत्ता का प्रतीक है, वहीं विनायक के बड़े कान अधिकग्राह्यशक्ति के प्रतीक हैं | गजानन लंबोदर हैं क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में हीविचरती है। हम लोगों यह भी जानना चाहिए कि गणपति के बड़े कान उनकी सर्वाधिक ग्राह्यशक्ति को दर्शाती है गजकर्णक की लंबी नाक (सूंड) महा बुद्धित्व का प्रतीक है।विनायक का एक दंत: विनायक का एक दंत: यह बतलाता है किअच्छाई और अच्छों को अपने पास रक्खो वहीं बुराई और बुरों का साथ तुरंत छोड़ दो | गणेशजी के बाई तरफ का दांत टूटा है | इसका एक अर्थ यह भी है कि मनुष्य कादिल बाई और होता है, इसलिए बाई और भावनओं का उफान अधिक होता है, जबकि दाई और बुद्धीपरक होता है | बाई और का टूटा दांत इस बात काप्रतीक है कि मनुष्य को हमेशा अपनी भावनओं पर बुद्धी और विवेक से नियन्त्रण रखनाचाहिए | छोटी आँखें: गणेशजी की छोटी-पैनीआँखें हमें सिखाती है कि हमें सूक्ष्म एवं तीक्ष्ण दृष्टि वाला बनना चाहिये। सफलताप्राप्ति के लिये आदमी को एकाग्र चित्त बन कर अपना ध्यान हमेशा अपने लक्ष्य परकेंद्रित रखते हुए अपने मन पर नियंत्रण रखना चाहिए और मन को इधर उधर भटकने सेरोकना चाहिये | बड़ा पेट:विघ्ननाशक गणेश जी का बड़ा पेट हमें सिखाता है कि मनुष्य को अच्छी बुरी सभीबातों-भावों को समान भाव से ग्रहण करना चाहिए, उन्हें समान भाव से लेना चाहिये | दूसरे शब्दों में गणेशजी का बड़ा पेट मनुष्य को उदार आदतों का धनीबनने की सीख देता है | जीवन में कुछ बातों को पेट में पचा लेना चाहिये | धीर और गम्भीर पुरुषों का समाज मेंसम्मान होता है |क्यों सिर्फ माता पिता के चरणों मेंही बसता है समस्त संसार ? एक बार देवता अनेकों आपदाओं में घिरे हुए थे, तब वे मदद मांगने भगवान शिव के पासआए। देवताओं की बात सुनकर शिवजी के दोनों पुत्रों कार्तिकेय व गणेशजी ने शिवजी सेदेवताओं की मदद करने आज्ञा मांगी तब भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहाकि तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा वही देवताओं कीमदद करने जा सकेगा । भगवान शिव के मुख से यह वचन सुनते ही कार्तिकेय तो अपने वाहनमोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए। किन्तु गणेशजी सोच में पड़ गए किवह चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो इस कार्य में उन्हें बहुतसमय लग जाएगा। तभी गणेशजी को एक उपाय सूझा। गणेश अपने स्थान से उठें और अपनेमाता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए। परिक्रमा करके लौटने परकार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे। तब शिवजी ने श्रीगणेश से पृथ्वी की परिक्रमाना करने का कारण पूछा। तब गणेश ने कहा – ‘माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं। हैं।’ भगवान शिव ने गणेश को विजेता घोषितकरके कहा कि वास्तविकता में ‘माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक वास करते हैं।भगवान गणेशजी के 12 स्वरूपमहागणेश (श्रीगणेश के इस स्वरूप की पूजा करने से जीवन में आने वाली हर परेशानी का समाधान होता है।
द्विज गणपति(गणेश के स्वरूप की व्याख्या की जाए तो उनके दो सिर और चार हाथ होते हैं। एक हाथ में उन्होंने माला, एक में मटकी, एक में किताब और एक में छड़ी पकड़ी है इस स्वरूप में पूजा करने से उत्तम स्वास्थ्य सुखद भविष्य मिलता है )हेरंब गणपति (इस स्वरूप में गणेशजी शेर पर सवार रहते हैं और इनके पांच सिर और दस हाथ होते हहेरंब गणपति आपकेधन और संपत्ति की रक्षा करते हैं )वीर गणपति (यह गणेश जीके पराक्रमी स्वरूप का नाम है, इस स्वरूप में उनकी सोलहभुजाओं में सोलह भिन्न-भिन्न प्रकार के हथियार होते हैं,वीर गणपति महिलाओं को बीमारियों से बचाते हैं)।करपग विनायगर
(अर्ध पद्मासन में बैठे दो हाथ वाले ये गणपति हमारी हर मनोकामनापूर्ण करते हैं और हम पर धन की वर्षा करते हैं)गणेशनी
(गणेशनी अधि-विनायक, भगवानगणेश का प्राचीनतम स्वरूप हैं। इनका सिर हाथी का नहीं वरन एक मनुष्य का ही है येहमारी मार्ग में आने वाली हर बाधा, हर परेशानीको खत्म करते हैं)सिद्धि-बुद्धि गणपति
(भगवान गणेश अपने इस स्वरूप में अपनी दोनों पत्नियों के साथविराजमान हैं। सिद्धि हमें सहजज्ञान प्रदान करती हैं और बुद्धि हमें व्यवहारिकज्ञान की प्राप्ति करवाती हैं)।नृत्य गणपति (मनोकामनापूर्ति करने वाले वृक्ष के नीचे नृत्य करते भगवान गणेश जी हमें खुशहाली औरपूर्वजों का आशीर्वाद प्रदान करते हैं)।विघ्नहर्ता (आठ हाथों वाले गणेश जी के इस स्वरूपकी पूजा करने से आपकी हर समस्या और हर रुकावट का समाधान होता हैअलिंग नर्तन गणपति (अपने इसस्वरूप में भगवान गणेश कलिंग नामक सांप के फन के ऊपर नृत्य कर रहे हैं। यह बुराईपर अच्छाई की जीत दर्शाता हैं।समस्या (अपने इस स्वरूप में भगवान गणेशकलियुग के उन लोगों की सहायता करते हैं जो अपने अच्छे कर्मों के बावजूद, समस्याओं को झेल रहे हैं),और अलिंग नर्तन गणपति (अपने इस स्वरूप मेंभगवान गणेश कलिंग नामक सांप के फन के ऊपर नृत्य कर रहे हैं। यह बुराई पर अच्छाई कीविजय को दर्शाता हैं) 31 अगस्त 2022 को देश प्रथम पूज्य भगवान विनायक का जन्मोत्सव हर्ष उल्लास के साथ मना रहा है | बुद्धी ऋधी सिद्धि सुख सुस्वास्थ्य सम्पन्नता को देने वाले देवदेवों गणपति भगवान के श्री चरणों मे कोटि कोटि प्रणाम |

डॉ जे के गर्गपूर्व संयुक्त निदेशक कालेज शिक्षाजयपुर

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