बिहार में नीतीश का जादू बरकरार

बिहार में मुकाबला मुख्य रूप से जदयू के नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ एनडीए और राजद के तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले विपक्षी महागठबंधन के बीच था। इस बार प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी को भी बड़ा झटका लगा है। बिहार विधानसभा चुनाव-2025 के एक्जिट पोल नतीजे के बाद जो आश्चर्यकारी परिणाम आये हैं, उसकी गूंज आने वाले पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में स्पष्ट रूप से दिखायी देगी। लोकतंत्र के इस मंदिर की चैखट पर विराजमान दृश्य कुछ ऐसा है जिसमें हालात किसी एक पार्टी तक ही सीमित नहीं, बल्कि सभी प्रमुख दलों में टिकटों की दावेदारी में राजद व कांग्रेस और जदयु व भाजपा, लोजपा और इसके साथ ही कोई भी अन्य दल इनसे अछूता नहीं है। 10,000 रुपये महिलाओं के खाते में भेजने के कारण महिला मतदाताओं का प्रतिशत बढ़ा और उन्होंने नीतीश सरकार के लिए जमकर मतदान किया जो आज के चुनाव परिणाम में दिखाई दे रहे हैं, इस चुनाव परिणाम ने सारे एग्जिट पोल को झुठला दिया। इस चुनाव परिणाम ने जदयु, भाजपा एनडीए गठबंधन की सत्ता को बरकरार रखा बल्कि उनकी ताकत एवं सीटों में इजाफा पहले से बहुत ही बेहतर हुआ है। चुनाव परिणाम ने साबित कर दिया कि नीतीश का जादू अभी भी बिहार में बरकार है।
बिहार विधानसभा चुनावों के नतीजों ने जनता के बदलते मन-मिजाज की एक झलक पेश की है। ताजा चुनाव परिणाम शायद इसी ओर इशारा कर रही है कि कुल मिलाकर जदयु, बीजेपी एवं एनडीए के लिए एक बड़ी सफलता है। क्या पीएम मोदी बिहार की अर्थव्यवस्था को लेकर कोई बड़ा फैसला करेंगे और इसके साथ ही अब वह क्या रणनीति अपनाएंगे, यह आनेवाले दिनों में पता चलेगा। विधानसभा चुनाव में जनता स्थानीय मुद्दों को ज्यादा तवज्जो देती है। बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तिगत करिश्मे के सहारे चुनाव दर चुनाव जीत रही है और मोदी का वह करिश्मा बिहार में भी आश्चर्यकारी परिणाम लाये हैं क्योंकि बिहार में सुशील मोदी के निधन के बाद उनके स्तर का नेता आज भी नहीं है। ताजा चुनाव नतीजों को नीतीश भाजपा की गठबंधन सरकार के कामकाज पर टिप्पणी की तरह ही देखा जाएगा।
प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की दर्जनों रैलियां बताती हैं कि एनडीए इस चुनाव को लेकर कितना संवेदनशील है। क्योंकि इसका असर पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी असर देखने को मिलेगा। नीतीश कुमार का प्रदर्शन पहले से बेहतर हुआ है, खास तौर पर महिलाओं की वजह से, लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर उनका नाम औपचारिक रूप से घोषित नहीं किया गया। इससे उनका वोटर कुछ असहज रहा। राजद महागठबंधन का स्तर बहुत मुश्किल भरा रहा है, आरजेडी अपने पिछले प्रदर्शन को भी कायम नहीं रख सकी 1 नंबर से वह 3 नंबर पर पहंुच गई, इस बार का उसका प्रदर्शन बेहद ही निराशाजनक रहा, उसके मुद्दे और वायदे जनता को पिछली बार की तरह नहीं आकर्षित कर पाई। सत्ता में उसकी आने की कोशिश और पीछे चली गई। पिछली बार आरजेडी ने 75 सीटें जीती थीं, जो आज 28 सीटों पर सिमट कर रह गई। सरकारी नौकरियां, माई बहन योजना, 30000 रुपये महिलाओं को सरकार बनते ही एकमुश्त देने की घोषणा एवं आजीविका दीदी को पक्की नौकरी और उनकी वेतन 30000 रुपये तक करने का वायदा भी कुछ खास असर नहीं कर पाया।
बरुण कुमार सिंह

जनसुराज पार्टी की स्थिति मोटे तौर पर निराशाजनक ही कही जाएगी, क्योंकि वह पार्टी अपना खाता तक नहीं खोल पाया। प्रशांत किशोर खुद कहते रहे हैं कि या तो अर्श पर होंगे या फर्श पर। अगर नतीजे उनके पक्ष में नहीं आए वे इसे अपने बयान की पुष्टि ही मानेंगे। प्रशांत किशोर ने शुरुआत में कहा था कि वे राघोपुर से चुनाव लड़ेंगे, लेकिन बाद में पीछे हट गए, इससे उनके कार्यकर्ता निराश हुए, जब नेता ही मैदान छोड़ दे, तो कैडर का मनोबल गिरना स्वाभाविक है। महागठबंधन में भी तालमेल की कमी दिखी। चुनाव से दस दिन पहले तक पार्टियों में बातचीत नहीं हो रही थी।

पिछली बार के मुकाबले नीतीश कुमार की सीटें बढ़ी, एनडीए के भाजपा सहित सभी दलों ने अपना स्ट्राइक रेट बेहतर किया है। पहले के चुनाव में चिराग पासवान नीतीश के विरोध में लड़े थे, लेकिन इस बार वह नीतिश के साथ थे, इससे दोनों दलों एवं एनडीए गठबंधन को इसका फायदा मिला। बिहार के लोगों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रति भरोसा अभी भी बना हुआ है। चुनाव परिणाम ने पूर्व के सारे अनुमान को गलत साबित कर दिया क्योंकि एंटी-इनकंबेंसी का असर घोषित चुनाव परिणाम में स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं पड़ रहा है। बिहार में कुल 67.13 फीसदी का रिकॉर्ड मतदान हुआ। लेकिन महिलाओं ने इससे भी आगे बढ़कर 71.78 फीसदी मतदान किया, जबकि पुरुषों का मतदान फीसदी 62.98 प्रतिशत रहा। कई जिलों में महिलाओं ने पुरुषों से 10 से 15 फीसदी ज्यादा वोटिंग की। महिलाएं पिछले 15 सालों से लगातार ज्यादा संख्या में वोट कर रही थीं, लेकिन 2025 में उनकी भारी भागीदारी ने सबको चैंका दिया।
नीतीश कुमार की 10वीं पारी सुनिश्चित करने में महिलाओं के खाते में 10 हजार रुपये का कैश ट्रांसफर टर्न अराउंड का सबसे बड़ा फैक्टर साबित हुआ। महिला वोटरों का भरोसा उनके पक्ष में मजबूत हुआ और विपक्ष की रणनीति कमजोर पड़ गई। नीतीश की ये स्कीम चुनाव में गेम चेंजर साबित हुई। इस योजना के तहत 1.5 करोड़ महिलाओं के खाते में 10 हजार रुपये ट्रांसफर किए गए। इसका अप्रत्यक्ष असर लगभग 4 से 5 करोड़ परिवारों पर पड़ा। कहा जा सकता है कि इस स्कीम ने नीतीश और बीजेपी को तगड़ा वोट हासिल करने में मदद की है।
महिलाओं के पक्ष में स्कीम डिलीवरी का नीतीश कुमार का लंबा इतिहास रहा है। इसमें मुफ्त साइकिल, शराबबंदी, छात्रवृति, पंचायत में 50 प्रतिशत सीटों का आरक्षण, सरकारी नौकरी में 35 फीसदी आरक्षण अहम हैं। इस बार नीतीश कुमार ने 10 हजार नगदी देने का न सिर्फ वादा किया बल्कि इसे डिलीवर भी किया। इसका नतीजा उन्हें महिलाओं के बंपर वोटों के रूप में मिला।
-बरुण कुमार सिंह
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लेखक परिचय:
ऽ     स्वतंत्र लेखक, विभिन्न समाचार पत्र/पत्रिका व वेबपोर्टल के लिए लेखन।
शिक्षा:
ऽ     ‘विभिन्न सम्प्रदायवाद एवं राष्ट्रवाद पर शोध’: काशी प्रसाद जयसवाल शोध संस्थान, पटना
ऽ     स्नातकोत्तर (इतिहास): बी. आर. अम्बेदकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफरपुर
ऽ     पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर डिप्लोमा: महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा

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