डॉ. हाड़ा की खुजली मिटी थोड़े ही है

नगर निगम चुनाव में मेयर पद के भाजपा प्रत्याशी डॉ. प्रियशील हाड़ा इन दिनों सुर्खियों में हैं। वजह है उनका अपनी माताजी की स्मृति में अजमेर दक्षिण इलाके में स्वास्थ्य शिविर लगाना। अब तक तो लोगों की फुसफसाहटों में ही उनका नाम तैर रहा था, मगर अब मीडिया की नजर भी उन पर पड़ गई है। उनके इस सेवा कार्य से जाहिर है लोगों का लाभ हो रहा है, मगर कुछ लोग इसे उनकी आगामी विधानसभा चुनाव की दावेदारी से जोड़ कर देख रहे हैं।
बेशक, मेयर का चुनाव हारने के बाद वे फुस्स टोटा थोड़े ही रह गए हैं। उनमें आज भी उतनी ही ऊर्जा है। उनके मुकाबले पढ़े-लिखे अनुसूचित जाति नेता कम ही हैं। वैसे भी राजनीति चीज ही ऐसी है कि इसकी खुजली आसानी से मिटती नहीं। विशेष रूप से डॉ. हाड़ा की खुजली की बात करें तो वह वाकई मिट नहीं पाई थी। सच तो ये है कि वे जिस तरह से हारे, उसका उन्हें भारी मलाल है। और कसक भी बाकी है। कांग्रेस के कमल बाकोलिया के मुकाबले वे बेहतरीन प्रत्याशी होने के बाद भी इसी कारण हारे कि भाजपाइयों ने ही साथ नहीं दिया। तब विधायक श्रीमती अनिता भदेल पर भी संदेह किया गया था कि वे अपने इलाके में एक और कोली नेता को उभरने नहीं देना चाहती थीं। संयोग से उनके कुछ खास नजदीकी नेता कमल बाकोलिया के पुराने दोस्त निकले। एक वजह ये भी रही कि सारे प्रमुख नेता अपने-अपने खेमे के पार्षद प्रत्याशियों के साथ लग गए। नतीजा ये निकला कि अपेक्षाकृत कमजोर बाकोलिया जीत गए। ऐसे में डॉ. हाड़ा को अफसोस होना ही था। कदाचित उनकी यह मान्यता हो कि वे कमजोर केंडीडेचर की वजह से नहीं, बल्कि भाजपा की रणनीतिक कमजोरी के कारण हारे, जो कि शत-प्रतिशत सही है।
खैर, माना यही जा रहा है कि डॉ. हाड़ा एक बार फिर भाग्य आजमाना चाहते हैं। टिकट मिले या न मिले, मगर चुनाव तक श्रीमती भदेल की नींद तो हराम रहेगी। वैसे बताया जाता है कि अनुसूचित जाति के एक और डाक्टर भी गुपचुप तैयारी कर रहे हैं, जिनका नाम भी जल्द ही सामने आ जाएगा।
इस बार अनिता भदेल की नींद वैसे भी उड़ी हुई है। अकेले अन्य दावेदारियों से नहीं, बल्कि इस वजह से कि जरा सी चूक से मंत्री पद से वंचित रह जाएंगी। ये तय है कि इस बार यदि वे जीतीं और भाजपा की सरकार बनी तो उनको मंत्री बनने से कोई रोक नहीं पाएगा। अनुसूचित जाति व महिला कोटा के साथ लगातार तीन बार जीतना उनके काम आएगा। मंत्री तो वे पहली बार चुने जाने पर ही लगभग बन चुकी थीं, मगर प्रो. वासुदेव देवनानी को सिंधी कोटे से मंत्री बनाने की वजह से वंचित रह गईं। तभी से दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा है।

4 thoughts on “डॉ. हाड़ा की खुजली मिटी थोड़े ही है”

  1. वाह राजनीति वाह……
    किसी की योग्यता के आधार पर उस का मंत्री बनाना तय नहीं होता….
    महिला कोटा,दलित कोटा,सिन्धी कोटा…..????
    हमें शर्म भी नहीं आती अपना इस प्रकार चयन करवा कर…..
    हम सब पढ़े लिखे भी तो हैं….
    क्यों हम स्वार्थों में डूब कर ,अपनी योग्यता को दरकिनार कर, येन केन प्रकारेण बस पद हासिल करना चाहते हैं…..
    लानत है ऐसी राजनीति पर…….
    काश हम अभी भी संभल पायें………
    इस राजनीति को सुधार पायें ………
    जो हम में अलगाव पैदा करती है……
    हमें एक दूसरे से अलग करती है…..

  2. फिर तो अन्ना जी को भी राज्नीति मै नहि आना चहिये …………. अरे वहा भी तो सत्ता कै लाल्चि नजर आने लगे है ,

    • वनिता जी आप ने शायद ध्यान से नहीं पढ़ी हमारी बात…हम जातिवाद पर प्रहार कर रहे थे….आप शायद राजनीति में हैं तो जातिवाद का समर्थन कर रही हैं या हमारे कमेन्ट को इग्नोर कर के सिर्फ अपनी बात रख रही हैं …..हम इंडिया अगेंस्ट करप्शन के कार्यकर्ता जातिवाद और साम्प्रदायिकता में अपना वोट नहीं ढूंढते, हम देश की एकजुटता चाहते हैं और अपने जन आन्दोलन पर भरोसा रखते हैं…….आप राजनीतिज्ञों को वोट की चिंता होगी,हमें नहीं है……..यदि जनता सोचती है कि कांग्रेस उसे भ्रष्टाचार मुक्त भारत दे सकती है तो वे कांग्रेस को वोट दें और यदि जनता ऐसा सोचती है कि भाजपा या सपा या बसपा उन्हें एक भ्रष्टाचारमुक्त भारत दे सकती है तो वे उसे वोट दें…..जनता यदि ये चाहेगी और मानेगी कि इंडिया अगेंस्ट करप्शन उन को एक भ्रष्टाचार मुक्त भारत दे सकता है तो वे उस को ही वोट देंगे……जनता की आँखें खुली हैं……वे अपना फैसला स्वयं करेंगे……हम ने तो सिर्फ विकल्प उपलब्ध कराया है……सत्ता का लोभ नहीं है…..हम वोट मांगने नहीं जायेंगे…यदि जनता को भरोसा है तो जनता स्वयं अपने चुने हुए प्रत्याशियों को वोट देगी………

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