आस-पास बहते जीवन का अक्स समेटे हुए है शिवानी शर्मा का कहानी संग्रह

जयपुर । शिवानी जयपुर बहुआयामी व्यक्तित्व की स्वामिनी हैं । वे एक सजग लेखिका हैं, आकाशवाणी में कार्यक्रम प्रस्तुत करती हैं, बहुत सधा हुआ मंच संचालन करती हैं और सबसे बढ़कर उनका जिंदादिल स्वभाव उनके दोस्तों की संख्या द्विगुणित करता जाता है ।यह कहना है वरिष्ठ लेखिका रश्मि रविजा, मुंबई (महाराष्ट्र) का। “कबीर जग में जस रहे ” शिवानी शर्मा के संग्रहित सोलह कहानियाँ के संग्रह पर ।
“कबीर जग में जस रहे ” शिवानी का पहला कहानी संग्रह है । इस संग्रह में संग्रहित सोलह कहानियाँ, आस-पास बहते जीवन का अक्स समेटे हुए है । कमो-बेश समाज के हर तबके का जीवन कहानियों में झलक जाता है ।शिवानी की लेखनी, समाज की उन दबी-ढकी सच्चाइयों से भी रूबरू करवा देती है, जहाँ आम-दृष्टि नहीं पहुँच पाती । विविध विषयों पर लिखी कहानियाँ, संग्रह को पठनीय बनाती हैं । लेखन का सहज-सरल प्रवाह पाठकों को अपने संग बहा ले जाता है । कहानियों का परिवेश भी बहुत ध्यान से बुना है, जिससे कहानियाँ जीवंत हो उठती हैं ।
शीर्षक कहानी ‘कबीर जग में जस रहे ‘ में गाँव से काम की तलाश में शहर आये युवा की परेशानियाँ बयां हुई हैं । हाथों में हुनर होने के बावजूद उसे दर दर की ठोकरें खानी पड़ती हैं । साथ ही पत्नी की भी चिंता करनी पड़ती जो न गाँव में रिश्तेदारों के बीच सुरक्षित है ना शहर के भूखे भेड़ियों के बीच ।
गाँव के परिवेश से आये युवाओं को शहरों का खुला रहन-सहन किस तरह विचलित करता है, यह ‘मन का मनका फेर’ कहानी में नजर आता है । कहानी का मुख्य पात्र तो अंत में सम्भल जाता है पर कितने ही युवक इस विचलन का शिकार हो जाते हैं और कुछ अघटित घट जाता है ।
‘पौ फटी पगरा भया’ बिलकुल एक अछूते विषय पर लिखी कहानी है । जाने कब तक पुरूष अविश्वास के शिकार होते रहेंगे और स्त्रियाँ अग्नि -परीक्षा देती रहेंगी । कहानी में भी नायिका अग्नि परीक्षा तो दे देती है पर सीता की तरह ही पति को माफ़ नहीं करती और उनसे दूर चली जाती है ।
“काहे कलपै कोय ” का विषय भी बहुत अलहदा है । एक मंदबुद्धि बच्चे की देखरेख करना एक माँ के लिए बहुत बड़ी चुनौती होती है । कुछ मांएं अतिरिक्त लाड लडाती हैं तो कुछ मांयें निराशा में बेरूखी अख्तियार कर लेती हैं पर माँ की ममता आखिर विजयी होती है । बच्चे को सिर्फ बड़ा करना ही नहीं होता उसकी सारी जरूरतों के प्रति भी जागरूक रहना पड़ता है । लेखिका ने बड़ी सूक्ष्मता से इस जटिल विषय के हर पहलू पर प्रकाश डाला है ।
‘स्टेशन ‘ कहानी आज के समाज का आईना है । युवाओं में परस्पर आकर्षण स्वाभाविक है पर कुछ युवा प्यार को मंजिल नहीं, एक पड़ाव समझते हैं और सिर्फ सुविधा के लिए इस्तेमाल करते हैं ।
वहीं “सोच करे अब होत कहाँ है” सच्चे प्रेम और समर्पण की कहानी ऐसी है जहाँ एक युवा अपनी सारी जिंदगी प्यार की यादों को समर्पित कर देता है और बदले में कोई भी अपेक्षा नहीं रखता । समाज में दोनों तरह के उदाहरण मौजूद हैं, जिन पर लेखिका ने समान रूप से कलम चलाई है ।
“धोये बास न जाए ” और “पासे अपने हाथ में दाँव न अपने हाथ ” राजनितिक पृष्ठभूमि पर आधरित कहानियाँ हैं । इन कहानियों में राजनीति के अंदर के दाँव-पेंच और लोगों को इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति का बहुत ही प्रभावपूर्ण चित्रण है ।
यह संग्रह कोरोना काल के बाद आया है तो उस काल पर आधारित कहानी का शामिल होना लाजमी है । ‘क्वारंटाइन” कहानी में परिवार के सभी सदस्यों द्वारा फॉर ग्रांटेड ली जाने वाली गृहणी की क्या अहमियत है, यह अच्छे से बयां हुई है ।
“फरीदा मैं जाण्या” कहानी बड़े-बूढों की उपयोगिता रेखांकित करती है । बच्चों को कहानियाँ सुनाने वाले, उनके साथ समय बिताने, उनमें संस्कार भरने वाले बुजुर्ग अपने ही बच्चों द्वारा उपेक्षा के शिकार होते हैं ।
शिवानी ने कहानियों के शीर्षक बहुत ही अनूठे चुने हैं, करीब करीब सभी शीर्षक संतों के दोहे के अंश हैं पर वे कुछ दार्शनिक भाव लिए हुए हैं जिनसे आम पाठक को जुड़ने में थोड़ी कठिनाई होगी । उन्हें याद रखना भी कठिन होता है । जबकि कहानियाँ बहुत ही सहज-सरल शैली में लिखी गईं हैं । शिवानी का यह पहला कहानी संग्रह है, हो सकता है उन्होंने प्रयोग स्वरूप रखा हो और उनका यह चयन सफल भी हो ।
शिवानी को उनके प्रथम कहानी संग्रह की बहुत बधाई एवं आगामी संग्रहों के लिए ढेरों शुभकामनाएं ।

वरिष्ठ लेखिका रश्मि रविजा, मुंबई (महाराष्ट्र)

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