
राजपूत जब भी युद्ध करने हेतु युद्ध स्थल पर जाते थे तब राजपूत महिलाएँ अपने पतियों के ललाट पर कुमकुम से तिलक लगाने के साथ साथ उनके हाथ की कलाई पर रेशमी धागा भी बाँधती थी। राजपूत महिलाओं एवं राजपूत रानीयों को यह अटल विश्वास था कि रेशम का धागा उनके पति को युद्ध में विजयश्री दिलवायेगा और उनके पति विजयी होकर सकुशल घर वापस लोटगें |
मुगलकालीन काल में हिन्दू राजपूत राजा महाराजाओं की पत्नियाँ मुसलमान बादशाहों को राखी बांधती थी,जिससे एक दूसरे समुदाय में प्रेमभाव एवं स्नेह बना रहे तथा एक राज्य का दूसरे राज्य के साथ सोहार्द पूर्ण सम्बंध भी बना रहें। यहाँ यह उल्लेखनीय होगा कि आज भी बहुत से मुसलमान भाई हिन्दू बहनों से राखी वाले दिन राखी बंधवाने उनके घर जाते हैं।
राखी के साथ एक और ऐतिहासिक प्रसंग जुड़ा हुआ है। मुग़ल काल के दौर में जब मुग़ल बादशाह हुमायूँ चितौड़ पर आक्रमण करने बढ़ा तो राणा सांगा की विधवा रानी कर्मवती ने हुमायूँ को राखी भेजकर हुमायूँ से चितौड़ की रक्षा का वचन ले लिया। हुमायूँ ने इसे स्वीकार करके चितौड़ पर आक्रमण का ख़्याल दिल से निकाल दिया और कालांतर में मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज निभाने के लिए चितौड़ की रक्षा हेतु मुग़ल बादशाह हुमायूँ ने बहादुरशाह के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए रानी कर्मवती और मेवाड़ राज्य की रक्षा की ।
एक रोचक घटनाक्रम में हरियाणाराज्य में अवस्थित कैथल जनपद के फतेहपुर गाँव में सन्1857में एक युवक गिरधर लाल को रक्षाबन्धन के दिन अंग्रेज़ों ने तोप से बाँधकर उड़ा दिया, इसके बाद से गाँव के लोगों ने गिरधर लाल को शहीद का दर्जा देते हुए रक्षाबन्धन पर्व मनाना ही बंद कर दिया।प्रथम स्वतंत्रता संग्रामके 150 वर्ष पूरे होने पर सन् 2006 में जाकर इस गाँव के लोगों ने इस पर्व को पुन: मनाने का संकल्प लिया।
प्रस्तुतिकरण—–जे. के. गर्ग
सन्दर्भ—विभिन्न पत्र पत्रिकायें,मेरी डायरी के पन्ने आदि, Visit our blog—gargjugalvinod.blogspot.in