अजमेर। जब तक हम अपनी जड़ों को नहीं जानेगे, भारत स्वाभिमान से खड़ा नहीं हो सकता है। भारत की कालगणना सृष्टि के प्रारम्भ से शुरू होती है, हमने विश्व को समय मापना सिखाया है, यह हमें जानना होगा। यह उद्गार शिक्षाविद् डॉ0 दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने रूक्टा (रा) द्वारा राजकीय महाविद्यालय, अजमेर में ‘भारतीय कालगणना का महत्व’’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए व्यक्त किये।
डॉ0 अग्रवाल ने भारतीय कालगणना के इतिहास को रेखांकित करते हुए कहा कि आज नासा के वैज्ञानिकों ने भी माना है कि भारतीय पंचांग के अनुसार पृथ्वी की आयु ठीक वहीं आती है, जो आधुनिक विज्ञान शोध से प्राप्त हुई है । उन्होंने कहा कि भारतीय कालगणना पूरणतः पंथ निरपेक्ष एवं प्रकृति के साथ समन्वय रखने वाली है। पंचांग के सभी महीनों के नाम नक्षत्रों के अनुसार रखे गये हैं जो खगोल शास्त्रीय सिद्धांतों पर आधारित है। नवसंवत्सर के साथ राष्ट्रीय गौरव को पुष्ट करने वाली कई घटनाएं जुड़ी है, जिनमें बह्मा द्वारा सुष्टि का निर्माण, भगवान राम एवं युधिष्ठिर का राज्याभिषेक, भगवान झूलेलाल का जन्मदिन, विक्रमादित्य द्वारा शकों पर विजय, आर्य समाज की स्थापना । इसके अतिरिक्त प्रकृति में भी बसंत के आगमन के साथ नवसंवत्सर पर उल्लास दिखाई देता है।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि इतिहासविद् डॉ0 नवल किशोर उपाध्याय ने कहा कि भारतीय कालगणना में चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र एवं आकाशगंगाओं की गति को शामिल किया गया है । उन्होंने कहा कि अजमेर की स्थापना भी नवसंवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही हुई थी, यह हमारे लिये गौरव की बात है। उन्होंने आह्वान किया कि हम अपने सभी वार, त्यौहार, मुहूर्त आदि भारतीय पंचांग से ही मनाते हैं, तो नव वर्ष क्यों नहीं ?
रूक्टा (रा0) के अध्यक्ष एवं महाविद्यालय प्राचार्य डॉ0 मधुर मोहन रंगा ने कहा कि हमारे यहां पर काल को चक्र रूप में माना है रैखिक नहीं। अतः सृजन और प्रलय का चक्र दिन व रात्रि की भांति चलता रहा है। रूक्टा (रा0) ने महामंत्री डॉ0 नारायण लाल गुप्ता ने विषय की प्रस्तावना रखी। कार्यक्रम का संचालन इकाई सचिव डॉ0 एस.के. बिस्सु ने किया।
(डॉ0 नारायणलाल गुप्ता)
महामंत्री – रूक्टा (रा0)