जस्ट हास्यम् में जमकर लगे ठहाके

abcd)eअजमेर। नगर के विजय लक्ष्मी पार्क के प्रांगण में देश के नामचीन कवियों ने श्रोताओं को हास्य व्यंग्य से सरोबार करते हुए ठहाकों का महोत्सव खड़ा कर दिया। सृजन को समर्पित संस्था आनन्दम् के तत्वाधान में आयोजित ‘जस्ट हास्यम्’ सीजन-4 के अवसर पर अपनी विशिष्ठ परम्पराओं के साथ हंसी की महफिल जो एक वार शुरू हुई तो थमने का नाम ही नहीं ले रही थी। टी-20 किक्रेट मैच के फाइनल के बावजुद अपने निश्चित समय पर श्रोताओं से खचाखच भरे पांडाल में कवि रासबिहारी गौड़ के चुटिले संचालन के साथ कार्यक्रम का आगाज करते हुए स्थानीय राजनीति, चुनावी मौसम, किक्रेट व कवियों के परिचय से श्रोताओं को सीधे जोड़कर हास्यम् वातावरण का निर्माण किया। सबसे पहले आगरा से पधारे रमेश मुस्कान ने अपनी छोट-छोटी तात्कालिक टिप्पणियों से लोगों की राजनैतिक चेतना को जाग्रत करते हुए खिलखिलाहट बिखेरी सहज अन्दाज में चुनावी मौसम पर कटाक्ष किया।
जली चुनाव की भट्टियाँ ईधन है अरमान
वादों की खिचड़ी पकी भूखा हिन्दुस्तान
इनके बाद सरदार मंजीत ंिसंह ने अपने सरदार होने पर असरदार तरीके से आनन्द बिखेरा। उन्होने कहा कि एक सरदार ही इतना समझदार होता है। जो एम.पी. बने बिना पी.एम. बन सकता है। उन्होने शुद्ध हिन्दी  बोलने से उत्पन्न हास्य को केन्द्र में रखकर कविता ‘शुद्ध हिन्दी के चक्कर में’ सुनाई तो पांडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
फालना से पधारी कवियत्री कविता किरण से संचालक की छीटा कसीं में जहाँ श्रोताओं ने जमकर मजा लिया वहीं गठबंधन राजनीति पर उनके गीत की लय में बहने लगें –
शेर और बकरी पी रहे पानी एक ही घाट
बंदर जो के राज में बिल्ली के है ठाट
गजब का ये गठबन्धन
कुर्सी तेरा अभिनन्दन……….
अपने क्रम में लाफ्टर चैम्पियन रास बिहारी गौड़ ने जहाँ अपनी छोटी-छोटी फुलझड़ियों ने श्रोताओं को हँसने पर मजबूर किया वही ‘मुफ्त की सलाह’ कविता
अपनी परेशानी आँसू गम सब भूल जाते है
चिता की एक एक लकड़ी पर वीस सजाहकर भूल जाते है
मरने वाला समझ नहीं पाता है
यार आदमी को आग लगाने में मजा क्यूँ आता है।
सुनकर जमकर दाद वटोरी।
कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण दिल्ली से पधारे अरूण जैमनी ने जब अपने हरियाणवी अंदान में बोलना शुरू किया तो ठहाकों का विस्फोट सा होने लगा। हरियाणवी प्रेम प्रदर्शन पर कन्डेक्टर अपनी पत्नी से कहता है उधर खिसक एक सवारी ओर बैठेगी इस प्रकार कि क्रमवार किस्सो से श्रोता हँस-हँस कर लोट पोट हो गए। इसी क्रम में उनकी कविता पुलिस वाले से सवाल पर सेव को प्रतीक मानकर व्यवस्था और समाज पर हँसते-हँसते प्रहार किया। ‘ढूँढते रह जाओगे’ शीर्षक पर बहुचर्चित कविता –
आपस में प्यार, भरा पूरा परिवार
परोपकारी बंदे अर्थी को कंधे
21वीं सदी में ढूँढते रह जाओगे।
सुनाकर श्रोताओं को सोचने पर मजबूर किया।
कार्यक्रम में कवियों का स्वागत संस्था के सदस्य सर्वश्री हेमन्त शारदा, रमेश ब्रह्यवर, नवीन सोगानी, सोमरत्न आर्य, श्रीमती प्रीति तोषनीवाल, डॉ. सुभाष माहेश्वरी, अतुल माहेश्वरी, संजय सोनी, कंवल प्रकाश किशनानी, सुनील मूंदड़ा, अशोक पंसारी, भवानी शंकर, निरंजन महावर, संजय अरोड़ा, जगदीश गर्ग, शंकर फतेहपुरिया, राजेन्द्र रांका, विनोद शर्मा, संजय जैन, श्रीमती रेखा गोयल ने किया।
नवीन सोगानी
संयोजक
मो. 9829073528
error: Content is protected !!