मदनगंज-किशनगढ़। दिगंबर जैन समाज का सुगंध दशमी पर्व गुरूावार को हर्षोल्लास पूर्वक आयोजित हुआ। जैन श्रद्धालुओं ने आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर, मुनि सुव्रतनाथ दिगंबर जैन मंदिर, चन्द्रप्रभु मंदिर, आदिनाथ कॉलोनी स्थित आदिनाथ दिगंबर मंदिर, इंद्रा नगर स्थित दिगंबर जैन शांतिनाथ जिनालय, शिवाजी नगर स्थित पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर, पुराना शहर स्थित नेमीनाथ दिगंबर जैन मंदिर, चंद्रप्रभु मंदिर, पाश्र्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर, नया शहर स्थित ऋषभदेव दिगंबर जैन मंदिर, हाऊसिंग बोर्ड कॉलोनी स्थित, अग्रसेन विहार कॉलोनी व छोटा तेली मोहल्ला स्थित पाश्र्वनाथ जिनालय सहित अन्य दिगंबर जैन मंदिरो में सपरिवार जाकर धूप कर जिनेन्द्र भगवान के दर्शन किए। इस अवसर पर विभिन्न मंदिरो में आकर्षक झांकियां सुसज्जित करने के कारण श्रद्धालुओं की भीड़ दर्शन करने उमड़ पड़ी।
शांतिनाथ जिनायल-इंद्रा कॉलोनी स्थित शांतिनाथ जिनालय में भगवान आदिनाथ का मोक्ष स्थल, कैलाश पर्वत, अष्टापद पर्वत पर बर्फ की झांकी लाइट व साउंड के साथ प्रस्तुतिकरण करना साथ ही नाभीराय का दरबार आकर्षण का केंद्र रहा। झांकी में निलंजनाओ का नृत्य, आदिनाथभगवान का इक्षुरस द्वारा प्रथम आहार, कानन वन आदि झांकिया भी आकर्षण का केंद्र रही। दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं का तांता देर रात्रि तक लगा रहा।
पर्युषण पर्व उत्तम संयम धर्म – आचार्य वर्धमान सागर महाराज ने जैन भवन में पर गुरूवार को पर्युषण महापर्व के उत्तम संयम धर्म पर प्रवचन देते हुए कहा कि हमारे परम सौभाग्य से दशलक्षण पर्व में धर्म की वर्षा के साथ जल की वर्षा भी हो रही है। हमे दशलक्षण रूपी उद्यान में स्वयं को उन्नत करेगें तो उसका फल भी सुंदर होगा। जगत के प्राणियों के पास शरीर, ऊर्जा व बल है। हम सभी शरीर के बल की बात करते है लेकिन शरीर रूपी देवाय में बसे प्रभु की ओर कोई ध्यान नहीं देता। आत्मा अनंत बल शाली है। अपनी चर्या से शरीर के पोषण करने के लिए पुरूषार्थ किया आत्मा का नही इसलिए वह ऊपर उठने का कार्य नही हो रहा है। आत्मा की उन्नती की ओर ले जाने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता है। ऊर्जा की कमी का कारण भोग है। संयम ऊर्जा को बचा सकता है। आंतरिक प्रवृति को नियंत्रण करना ही संयम धर्म होता है। जीवन यात्रा रूपी नदी बह रही है उसे नियंत्रण इन्द्रीय संयम एवं प्राणी संयम दो किनारो के माध्यम से संयम रूपी ब्रेक लगाने होगें। भोगों से रोग आते है। भोगों से बचने का उपाय संयम है। जो दूसरो को देख कर चलता है वह कभी सुखी नही होता। भोग नीचे की ओर ले जाते है और योग ऊपर की ओर। अपनी आत्मा को स्वस्थ करने के लिए वीतराग व तीर्थंकरो की वाणी को अपनाना होगा। संयम के बिना जीवन कोई काम का नही है। जहां स्वयं पर नियंत्रण होता है वहां संयम होता है। मन, वचन, काय यदि अनियंत्रित या असंयमित हो जाए तो स्वयं के लिए कष्टदायी होते है। मानव जीवन में संयम धर्म अनिवार्य है। इन्द्रीयों को वश में किए बिना आत्मा की ओर हमारी दृष्टि नही जाएगी। हमें अहिंसक, रक्षात्मक एवं सहअस्तित्वगत दृष्टि नही बनी तो भी संयम का पालन नही हो सकता। जीवन में संयम धर्म को धारण कर अपनी आत्मा का कल्याण करे। आर्यिका पूर्णमति माताजी ने उत्तम संयम धर्म पर धर्मोपदेश दिया। इससे पूर्व प्रात: श्रीजी का अभिषेक, शांतिधारा सामूहिक विधान पूजन किया गया। दोपहर में सरस्वती पूजन एवं तत्वात सूत्र वाचन चल रहा है। सायं 4 बजे से श्रद्धालुओं ने आचार्य श्री के सान्निध्य में जैन मंदिरो में धूप क्षेपण कर धर्म लाभ प्राप्त किया। इस अवसर पर विभिन्न मंदिरो में सुन्दर एवं मनमोहक रंगाल्ेाी एवं झांकिया सजाई। सायं आरती के पश्चात प्रश्रमंच का आयोजन किया गया।
-राजकुमार शर्मा