गीतों से सजी शाम-गीत गुलजार

DSC_5003DSC_5036अजमेर। संस्था आनन्दम् के तत्वावधान व कवि रास बिहारी गौड़ के संयोजन में आयोजित गीत गुलजार सीजन 4 का नजारा किसी सूफी की गायकी या कैनवास पर बिखरे रंगों का आनन्द सा नजर आ रहा था। वसीम बरेलवी, बनज कुमार, श्रीमती सुमन सोलंकी, वरूण चतुर्वेदी सरीखे गीतकारों को सुनकर लगा जैसे शरद पूर्णिमा पर शब्द चांदनी बनकर बरस रहे हैं, आनासागर झील में संगमरमर का अक्ष शायराना होकर शायरी को भिगो रहा है और सुधि श्रोताओं का जन-समूह मंत्र मुग्ध सा कविता रसपान में डूबा है।
अपनी परम्पराओं का वहन करते हुए ठीक 7 ़10 बजे शुरू हुआ कार्यक्रम 9 ़25 तक ऐसे चलता रहा मानो समय को पंख लग गए हो।
सबसे पहले जयपुर के बनज कुमार ने दोहे-गीतों से युगबोध का परिचय करवाया।उजियारे की कापियां जांच रहा आंधीयार/डाल दिए हैं वक्त के सूरज ने हथियार। गांव-शहरों की विसंगति को दर्शाते हुए बनज ने कहा-‘बढते हैं जिस ओर भी निगल रहे है छांव/ कोई तो रोको जरा इन शहरों के पांव। ़
अनेक बाद भरतपुर से आए श्री वरूण चतुर्वेदी ने गीत और प्रतिगीत से वातावरण को उल्लासित किया। हास-परिहास के साथ प्यार मनुहार को इन पंक्तियों में कहा -प्यार के नाम को इस तरह बदनाम ना कर /मेरा कत्ल कर पर सरे आम ना कर। तत्पश्चात श्रंृगार को गीतों में ढालकर आगरा से आई कवियत्री सुमन सौलंकी ने इस अंदाज में कहा-जैसे फूलों में रंग गंध रहे/काव्य में ज्यो श्रंृगार-छंद रहे/तुझ को दिल में रखूं वैसे ही/जैसे भॅंवरा कमल में बंद रहे/ उनका यह गीत दीप उम्मीद के जलाएं हैं/नैन भी राह में बिछाएं हैं/अब तो आ जा तुझे कसम है/सब्र के पांव डगमगाए हैं। भी बहुत सराया गया।
संचालन करते हुए रास बिहारी गौड़ ने अपनी मूल पहचान से इतर गम्भीर कविता ‘मां गढती है ईश्वर हर पल/ ढकती है धरती का विस्तार/ सुनाकर श्रोताओं को आश्चर्यचकित रोमांचित किया।
वसीम बरेलवी के आते ही शेरों की ऐसी झड़ी लगी कि श्रोता वाह! वाह! इरशाद, बहुत खूब कहते ही रह गए।जहां भी रहेगा रोशनी लुटाएगा/ किसी चिराग का अपना मकां नहीं होता। मुखतलिफ शेरों की श्रंृखला में शायर बरेलवी ने एक के बाद एक शेर पढे़।गरीब लहरों पे पहरे वैठाए जाते हैं/समन्दरों की तलाशी कोई नहीं लेता/वो झूठ बोल रहा है बड़े सलीके से/ मैं एतवार ना करता तो क्या करता/मैं ही था बचा के सबको ले आया किनारे तक/ समन्दर ने बहुत मौका दिया था डूब जाने का /क्या बताऊ कैसे खुद को दर बदर किया मैने/ उम्र भर किस-किस के हिस्से का सफर किया मैने/ चला सिलसिला कैसा ये रातों को मनाने का/ तुम्हें हक दे दिया किसने दिलो का दिल दुखाने का/
कार्यक्रम से पूर्व कवियों का स्वागत व परिचय संस्था सदस्यों सर्वश्री सीताराम गोयल हेमंत शारदा, रमेश ब्रह्मवर, श्रीमती प्रीती तोषनीवाल, श्रीमती रेखा गोयल, सोमरत्न आर्य, जगदीश गर्ग, शिव शंकर फतेपुरिया, कंवल प्रकाश किशनानी, अनिल जैन , अतुल माहेश्वरी, नवीन सोगानी, संजय सोनी, भवानी शंकर, संजय अरोड़ा, अशोक पंसारी, निरंजन महावर, सुनील मूंदड़ा, संजय जैन व विनोद शर्मा ने किया।
नवीन सोगानी
9829073528
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