आपसी भाईचारे का प्रतीक है रंगों का यह त्यौंहार, केकड़ी में पंचमी पर रंग खेलने की है परम्परा !
(पी. राठी–केकड़ी)
भगवान श्रीकृष्ण रंगों से होली मनाते थे, इसलिए होली का त्यौहार रंगों के रूप में लोकप्रिय हुआ। वे वृंदावन और गोकुल में अपने साथियों के साथ होली मनाते थे। आज भी वृंदावन जैसी मस्ती भरी होली कहीं नहीं मनाई जाती। होली वसंत का त्यौहार है और इसके आने पर सर्दियां खत्म होती हैं। कुछ हिस्सों में इस त्यौहार का संबंध वसंत की फसल पकने से भी है। किसान अच्छी फसल पैदा होने की खुशी में होली मनाते हैं। होली को ‘वसंत महोत्सव’ या ‘काम महोत्सव’ भी कहते हैं। होली प्राचीन हिंदू त्यौहारों में से एक है और यह ईसा मसीह के जन्म के कई सदियों पहले से मनाया जा रहा है। होली का वर्णन जैमिनि के पूर्वमिमांसा सूत्र और कथक ग्रहय सूत्र में भी है। प्राचीन भारत के मंदिरों की दीवारों पर भी होली की मूर्तियां बनी हैं। ऐसा ही 16वीं सदी का एक मंदिर विजयनगर की राजधानी हंपी में है। इस मंदिर में होली के कई दृश्य हैं जिसमें राजकुमार, राजकुमारी अपने दासों सहित एक दूसरे पर रंग लगा रहे हैं। कई मध्ययुगीन चित्र, जैसे 16वीं सदी के अहमदनगर चित्र, मेवाड़ पेंटिंग, बूंदी के लघु चित्र, सब में अलग अलग तरह होली मनाते देखा जा सकता है। रंगों, भाईचारे का यह त्योंहार कई स्थानों पर आज भी सात दिनों तक रंग खेलने की परंपरा है। अधिकांश जगह होली के दूसरे दिन धुलण्डी के दिन रंग खेला जाता है वहीं कई स्थानों पर पंचमी व सप्तमी के दिन रंग खेलने की परंपरा है। केकड़ी में बरसों से पंचमी के दिन रंग खेलने की परंपरा चली आ रही है। रंगपंचमी होली के 5 दिन बाद मनाई जाती है। चैत्रमास की कृष्णपक्ष की पंचमी को खेली जाने वाली रंगपंचमी देवी देवताओं को समर्पित होती है। यह सात्विक पूजा आराधना का दिन होता है। श्री रंगपंचमी को धनदायक माना जाता है। ये पर्व महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में खासतौर पर मनाया जाता है। रंगपंचमी में होली की तरह रंग खेले जाते हैं। इसमें राधा कृष्ण जी को भी अबीर गुलाल लगाया जाता है। मान्यता है कि रंगपंचमी पर पवित्र मन से पूजा पाठ करने से देवी देवता स्वयं अपने भक्तों को आशीर्वाद देने आते हैं। कुंडली के बड़े से बड़े दोष को इस दिन पूजा पाठ से काफी हद तक कम किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि त्रेता युग के प्रारंभ में श्री विष्णु ने धूलि वंदन किया, इसका अर्थ यह है कि ‘उस युग में श्री विष्णु ने अलग-अलग तेजोमय रंगों से अवतार कार्य का आरंभ किया। त्रेता युग में अवतार निर्मित होने पर उसे तेजोमय, अर्थात विविध रंगों की सहायता से दर्शन रूप में वर्णित किया गया है। होली ब्रह्मांड का एक तेजोत्सव है। तेजोत्सव से, अर्थात विविध तेजोत्सव तरंगों के भ्रमण से ब्रह्मांड में अनेक रंग आवश्यकता के अनुसार साकार होते हैं तथा संबंधित घटक के कार्य के लिए पूरक व पोषक वातावरण की निर्मित करते हैं। नारियल के माध्यम से वायुमंडल के कष्टदायक स्पंदनों को खींचकर, उसके बाद उसे होली के पांचवें दिन (रंगपंचमी) की अग्नि में डाला जाता है। इस कारण नारियल में संक्रमित हुए कष्टदायक स्पंदन होली की तेजोमय शक्ति की सहायता से नष्ट होते हैं व वायुमंडल की शुद्धि होती है। रंगपंचमी के दिन कई स्थानों पर एक-दूसरे पर रंग व गुलाल डालकर पर्व मनाया जाता है। होली के दिन प्रदीप्त हुई अग्नि को पांच दिन निरंतर जलाने से वायुमंडल के रज-तम कणों का विघटन होता है।