केकड़ी। स्थानीय दाधीच समाज द्वारा शुक्रवार को यहां महर्षि दधीची ऋषि की जयन्ति धूमधाम से मनाई गई। इस अवसर पर शाम को शहर में शोभा यात्रा निकाली गई जिसमें समाज के कई महिला-पुरूष सम्मिलित हुए। जूनिया गेट के पास स्थित दाधीच शिव बगीची से प्रारम्भ हुई इस शोभा यात्रा में महर्षि दधीची ऋषि के चित्र की झांकी सम्मिलित थी, जिसके आगे-आगे समाज के महिला-पुरूष व युवक-युवतियों सहित कई बालक-बालिकाएं महर्षि दधीची ऋषि की जय घोष करते हुए चल रहे थे। शोभा यात्रा शहर के प्रमुख मार्गो पर होकर वापस दाधीच बगीची पहुंच कर सम्पन्न हुई। इससे पहले सुबह बगीची में हवन पूजन के कार्यक्रम हुए तथा बाद में समाज के अध्यक्ष कृष्णगोपाल शर्मा की अध्यक्षता में समाज की महा समिति का अधिवेशन हुआ जिसमें कई मुद्दो पर आवश्यक विचार विमर्श करने के साथ ही समाज के प्रतिभावान छात्र-छात्राओ व जयन्ति महोत्सव के दौरान आयोजित होने वाली प्रतियोगिताओ में भाग लेने वाले समाज के बालक-बालिकाओ को पुरस्कृत कर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समाज के संरक्षक छीतरमल शर्मा, वरिष्ठ सदस्य रामनारायण दाधीच ने महर्षि दधीची ऋषि की जयन्ति पर प्रकाश डालते हुए उन्हे त्याग, तपस्या व दान की प्रतिमूर्ति बताया। अधिवेशन के दौरान समिति के सचिव शिवप्रकाश मिश्रा द्वारा अपने पद से त्याग पत्र दिये जाने के कारण हरिप्रसाद शर्मा को सचिव बनाया गया। अधिवेशन में समिति के कोषाध्यक्ष कैलाशचन्द्र शर्मा ने आय-व्यय का ब्यौरा प्रस्तुत किया। इस अवसर पर समाज के वरिष्ठ सदस्य मुरलीधर तिवाडी, जटाशंकर आचार्य, पूर्व अध्यक्ष हरिशचन्द्र जोशी, पूर्व अध्यक्ष राधेश्याम दाधीच सहित समाज के कई महिला-पुरूष मौजूद थे।
दुख में भी न करें धर्म का त्याग-स्वामी जगदीशपुरी महाराज
शहर के गीता भवन में चल रहे श्रीमद भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन महामण्डलेश्वर स्वामी जगदीशपुरी महाराज ने श्रीमद् भागवत के मर्म पर प्रकाश डालते हुये कहा कि श्रीमद् भागवत मानवीय मूल्यों को प्रेरित करने वाली नारी उत्कर्ष की कथा है । उन्होने कहा कि श्रीमद् भागवत में चार स्त्रियों द्रौपदी, कुंती, उत्तरा और सुभद्रा की कथा आती है। सबका संबंध भगवान श्रीकृष्ण से सीधा होता है लेकिन उनकी प्रेरणा सारे समाज के लिए हितकारी व प्रेरक होती है, अर्थात दुख में भी धर्म का त्याग नहीं करना चाहिए। ईश्वर प्रत्यक्ष दर्शन देकर सहायता करते हैं, जिस तरह द्रौपदी का किया। उन्होने कहा कि कि भारतीय नारियों ने सदैव ईश्वर का स्मरण कर देश और समाज दोनों का कल्याण किया है लेकिन दुर्भाग्य यह है कि आज उनकी सुरक्षा संसद से सडक तक उस तरह की नहीं रह गई है, जिस तरह की होनी चाहिए। उन्होने कहा कि हर समय कोई न कोई सर्वश्रेष्ठ कार्य करने वाला होता है और वही अवतारिक माना जाता है। भगवान के चौबीसो अवतार उसी संदर्भ में हुए और सराहे गए। वैसे भी हर भारतीय भगवान का पुत्र अंश ही होता है क्योंकि उसमें ईश्वरत्व को जीने की क्षमता होती है। उन्होने कहा कि श्रीमद् भागवत के प्रत्येक अक्षर, पद, वाक्य, श्लोक, अध्याय, प्रकरण, स्कंध और समस्त श्रीमद् भागवत शास्त्र में भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूपों व लीलाओं का वर्णन है। श्रीमद् भागवत साक्षात भगवान श्रीकृष्ण है। उन्होंने बताया कि प्रत्येक मतों व पंथों के समर्थ विद्वानों की श्रीमद् भागवत के प्रति अनन्य भक्ति भाव मन में स्थापित है। श्रीमद् भागवत की कथा का आयोजन आयोजक एवं श्रोताओं को अनेक शुभ फलों की प्राप्ति कराता है जैसे धन, पुत्र सुख, पति सुख, पत्नी सुख, वाहन सुख, यश वैभव में वृद्धि, घर-परिवार में सुख शांति, शत्रुविहीन राज्य एवं समस्त रोगो व संकटों से मुक्ति मिलती है। उन्होंने कहा कि भागवत कथा का श्रवण करने से मोक्ष मिलता है लेकिन मनुष्य इस बात को समझता नहीं है। मनुष्य ईश्वर को तभी स्मरण करता है, जब वह संकट में होता है। यदि वह सुख में भी प्रभु की आराधना करता रहे तो उसे दुख का सामना ही नहीं करना पड़ेगा। कथा के प्रारम्भ में सभी यजमानो सहित कई गणमान्य नागरिको द्वारा स्वामी जी का माला पहना कर स्वागत किया गया।
-पीयूष राठी