गंदगी और अवेध पार्किंग से जूझ रहा है पवित्र घाट
पुष्कर / पुष्कर सरोवर के बावन घाटों का सभी का अपने आप में एक अलग महत्व है । इन्ही बावन घाटों में से ऐतिहासिक तरणी घाट ना केवल राजनीति का शिकार रहा है बल्कि लगातार इसकी महत्वता के साथ खिलवाड़ होता आया है । सरकारी योजनाओं की तरह देश में जब जब सरकारे बदली इस घाट का नाम भी बदला गया । कभी इसे इंदिरा घाट तो कभी इसे हेडग्वायर घाट नाम से पहचान देने की कोशिश की गयी लेकिन फिर भी जानने वाले लोग आज भी इसे केवल तरणी घाट के नाम से ही जानते है । इसके पीछे मान्यता है की पुष्कर में जब व्यक्ति की मौत के बाद उसे शमशान घाट ले जाया जाता है तो उससे पहले इस घाट में स्नान करवाया जाता है । इतना ही नही मरने के बाद प्राणी की अस्थिया भी इसी घाट में प्रवाहित होती आई है यह बात दूसरी है की आजकल स्वार्थ के चलते दुसरे घाटो में भी अस्थिया विसर्जित करवाकर इस घाट के महत्व को कम करने की कोशिशे जारी है । सरकार ने भी इस घाट की आजतक उपेक्षा ही की है । इस पवित्र घाट के अंदर और बाहरी परिसर को लगातार गंदगी से जूझना पड़ता है । हाल ही में यात्रियों की सुविधा के लिए एडीए की और से बनाया जा रहा सुलभ काम्प्लेक्स ना जाने यात्रियों को कब सुविधा देगा लेकिन इसके निर्माण के चलते पिछले 6 महीनों से आसपास में गंदगी का माहोल बना रहता है । गत 18 नवम्बर को विधायक सुरेश सिंह रावत ने इसकी आधारशिला रखी थी लेकिन आज भी इसका निर्माण कार्य कछवा चाल से चल रहा है । इसको लेकर पुरोहितो में खासा आक्रोश है । इससे भी बड़ी परेशानी इस घाट को अवेध पार्किंग की है । अपने यजमानो को ज्यादा कष्ट ना हो इसके लिए कुछ पुरोहित उनकी गाडियों को सरोवर के बिलकुल करीब ले आते है । कई बार तो इस घाट में प्रवेश के लिए एक इंच जगह भी उपलब्ध नही हो पाती जिससे शव को आगे ले जाकर स्नान करवाया जाता है । सबसे बड़ा सवाल यही है की आखिर इतने महत्व वाले घाट को क्यों उपेक्षित किया जा रहा है । अब लोगो के मन में सवाल उठने लगा है की क्या इस घाट को कोई तारणहार मिलेगा और क्या इस घाट के अच्छे दिन वापस लोटेंगे ।
सीताराम पाराशर
