कहां खो गया शिक्षा कर्मी का आत्महत्या प्रकरण?

शिव शंकर शर्मा
शिव शंकर शर्मा
जयपुर जिले के कोटपुतली के प्रागपुरा इलाके की राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, दांतिल में कार्यरत कार्यालय सहायक दिनेश शर्मा के कार्यस्थल पर ही फांसी का फंदा लगा कर आत्महत्या कर लेने के मामले में क्या हुआ, कुछ नहीं पता। उसके फॉलोअप में पुलिस ने क्या कार्यवाही की, किसी को कोई जानकारी नहीं है।
ज्ञातव्य है कि मामले में प्रमुख आरोपी शिव शंकर शर्मा शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी का पीए होने की वजह से यह मामला सुर्खियों में था। पहले तो देवनानी ने उसे अपना पीए मानने से इंकार कर दिया, फिर दबाव बना तो स्वीकार कर लिया कि पीए तो है और वे खुद गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया को पत्र लिख कर मामले की त्वरित और गहन जांच का आग्रह कर रहे हैं। आश्चर्यजनक है कि एक मंत्री के दूसरे मंत्री को पत्र लिखे जाने के बाद भी उस क्या कार्यवाही हुई, कुछ पता नहीं लग रहा है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पुलिस का तंत्र आम मामलों में किस प्रकार कार्यवाही करता होगा। दूसरा ये कि चूंकि ये एक मंत्री से जुड़ा हुआ है, इस कारण राजनीति भी आड़े आ रही है।
असल में इस मामले के कारण कांग्रेस ही नहीं, बल्कि स्थानीय भाजपा का एक धड़ा यह चाहता था कि देवनानी का इस्तीफा हो जाए, मगर संघ के दम पर मंत्री बने देवनानी का कुछ नहीं बिगड़ा। इसी जगह कोई मंत्री होता तो उसकी अब छुट्टी हो चुकी होती, मगर चूंकि देवनानी संघ कोटे से हैं और उसमें भी चंद महत्वपूर्ण नेताओं में शुमार हैं, इस कारण मुख्यमंत्री वसुंधरा चाह कर भी कुछ नहीं कर पायीं। हालांकि यह सही है कि इस मामले से देवनानी का सीधा संबंध नहीं, मगर नैतिकता के आधार पर उनका इस्तीफा अपेक्षित माना जा रहा था। और कुछ नहीं तो उनके विभाग को बदले जाने की संभावना तो थी ही, मगर चूंकि देवनानी शिक्षा में संघ के एजेंडे को गंभीरता से लागू कर रहे हैं, इस कारण वह भी नहीं हुआ।
बड़ा सवाल ये है कि भले ही देवनानी इस प्रकरण के सीधे जिम्मेदार नहीं, मगर उनके पीए और अन्य आरोपियों पर तो कानूने के हिसाब से कार्यवाही होनी ही चाहिए थी। विशेष रूप से जिस मामले में एक मंत्री की संबद्धता मानी जा रही हो और जिससे सरकार की साख जुड़ी हुई हो, उसका निस्तारण तो जल्द से जल्द होना चाहिए था। आरोपियों पर उपलब्ध सबूतों के आधार पर कार्यवाही तो शुरू होनी ही चाहिए थी। वो तो कोर्ट तय करता कि वे दोषी हैं या नहीं।
होना तो यह चाहिए था कि पारदर्शी व जवाबदेह सरकार का दावा करने वाले देवनानी ही खुद दबाव बनाते कि मामले का वास्तविक खुलासा जल्द से जल्द हो। चाहे आरोपियों के खिलाफ सबूत न होने के आधार पर एफ आर लगाई जाती या सबूतों के आधार पर कम से कम मुकदमा तो शुरू किया जाता।

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