भले ही हम जोरों शोरों से कौशल भारत की तैयारी करते हों,छात्र छात्राओं को कई रोजगार पूरक जानकारियां प्रदान कराते है,परंतु क्या हर विद्यार्थी को सही व सार्थक राह मिल पाती है?
कौशल और रोजगार को गति प्रदान करने वाले प्रधानमंत्री जी शायद अनभिज्ञ हैं आज के शिक्षा तंत्र से! कक्षा दस पास करते ही माता पिता बच्चे को इंजीनियर या डॉक्टर बनाने में कोहलू के बैल की तरह हांकते रहते है। दो साल बाद रो पिट कर किसी अच्छे प्लेसमेंट बुलाने वाले कॉलेज में उस बच्चे को भर्ती भी करा देते हैं या फिर किसी ख्यातिनाम कॉलेज में! कॉलेज में दाखिला होने के बाद चैन की नींद सोने को मिलती है,समाज में प्रतिष्ठा का विषय साबित करने का मौका भी मिल जाता है! दूसरी ओर नींद उडती है उस बच्चे की जिसके ऊँचे सपने उसे टूटते नज़र आने लगते हैं।उसे पढ़ाने वाली फैकल्टी ही ऐसी मिलती है, जिसे कंही ओर नौकरी नहीं मिली तो सस्ते में ये फैकल्टी की नौकरी ही करली। यह हाल है देश के अधिकांश तकनीकी कॉलेजों का।ईमानदारी से विश्लेषण करें तो ज्ञात होगा कि शिक्षा का स्तर दिन प्रति दिन गिरता चला जा रहा है,जिसका जिम्मेदार केवल प्रशासन ही नहीं आज का विद्यार्थी भी है।आज का विद्यार्थी केवल पेपर जुगाड़ तकनीकी पे मेहनत ज्यादा करता है वनिस्पत पढ़ाई के!
समझ नहीं आता कि दोष किसे दें?वो दिन भी दूर नहीं जब हम पुनः गुलामी की ओर अग्रेषित होते नज़र आयेंगें!क्योंकि देश का बुनियादी पत्थर ये युवा ही डावां ढोल होते नज़र आ रहे हैं।हाल ही में मेरी मुलाकात इंजीनियरिंग करने वाले दो युवाओं से हुई,एक तो भरपूर कॉलेज को कोसता रहा और बैक पेपर के बारे में बताता रहा वहीं दूसरे महानुभव तो पेपर मिलजाता है पर व्याख्यान देते रहे। माता पिता इस बात से अनभिज्ञ रहतें हैं कि पुत्रदेव क्या गुल खिला रहे हैं,और सम्मान के साथ इंजीनियर साहब की तारीफों के पूल बांधते रहते है।इनका तो केवल गाड़ी,फोन और शानदार कपडे उपलब्ध कराना दायित्व रहता है। अधिकांश कॉलेजों का हाल ये है कि उनका रिजल्ट तो ये युवा वैसे ही पेपर जुगाड़ू तकनीक के भरोसे सुधारते रहे हैं अब इन्हें पढ़ाने की क्या जरूरत?क्यों रखें अच्छी और महंगी फैकल्टी?यह हाल केवल इंजीनियरिंग कॉलेजों का ही नहीं अपितु आईटीआई, पॉलिटेक्निक व अन्य कॉलेजों का भी है।पिछले दिनों अख़बारों में तो तकनीकी कॉलेजों के पेपर आउट होना आम बात सी हो गयी थी। फिर भला वो क्यों मेहनत से ये कोर्स करेंगें! औधोगिक इकाइयों से इन इंजीनियरों तथा टेक्नीशियनों की असलियत का पता लगाया जा सकता है। दूसरी और कुछ नर्सिंग और पैरामेडिकल संस्थानों की बात करें तो ऐसा लगता है कि इन संस्थानों के लिए जीवन की कोई कीमत नहीं!यहाँ से पास आउट से तो इंजेक्शन लगवाना भी खरनाक साबित हो जाता है।
जरूरत है इन संस्थानों/कॉलेजों की मान्यता पर प्रतिबन्ध की,जरूरत है इनके ईमानदारी से नियमित निरीक्षण की,जरूरत है धड़ल्ले से खुल रहे इन व्यवसायिक कॉलेजों पर पाबन्दी की और विशेष जरूरत है ऐसे संस्थानों के प्रति अपने बच्चों को आगाह करने की!
वंही आये दिन ये दृष्टिगत होता है कि मध्यमवर्गीय परिवार के औसतन युवा भेड़ चाल वाली राह चुनते है,जो उनका स्टेट्स सिम्बल होता है।भले वो कोर्स सही ढंग से चले अथवा नहीं,भले ही बेरोजगारों की लाइन में खड़े रहें,परन्तु हाथ का हुनर प्राप्त कर स्वरोजगार की राह नहीं चुनेंगे! आवश्यक है की वर्तमान युग में डिग्रियों का ढेर लगाने की बजाय कौशल विकास की सुगम राह उचित माध्यम से चुनकर रोजगार व स्वरोजगार के क्षेत्र में अग्रेषित होने की।
–शबनम उदावत,अजमेर।