23 साल पहले मेडिकल एडमिशन में हुए फर्जीवाड़े के मामले में कांग्रेस सांसद रशीद मसूद को दिल्ली की तीस हजारी अदालत ने चार साल कैद की सजा सुनाई है। ‘चार-सौ-बीसी’ और ‘फर्जीवाड़े’ के दम पर योग्य छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करके अपने रिश्तेदारों और अयोग्य उम्मीदवारों को एडमिशन दिलवाने करने वाले रशीद मसूद पिछले 23 साल से देश की संसद में बैठकर हमारे लिए कानून भी बनाते रहे। वह संसद सदस्य सहित कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे। और तो और 2007 में समाजवादी पार्टी ने उन्हें उप-राष्ट्रपति जैसे गरिमापूर्ण पद का उम्मीदवार तक बना दिया था। अगर वह चुनाव जीत गए होते तो राज्यसभा का संचालन भी करते क्योंकि उप-राष्ट्रपति ही राज्यसभा का सभापति होता है। यही नहीं संभव है राष्ट्रपति पद के लिए भी उनकी दावेदारी बन सकती थी क्योंकि हमारे देश में कई उप-राष्ट्रपति बाद में राष्ट्रपति की कुर्सी पर पहुंचे हैं। खैर, इस दुर्भाग्य से तो हम बच गए लेकिन वास्तव में जनता के साथ न्याय हुआ है, ये बहस का विषय है।
सच तो यह है कि न्याय तो तब माना जाता जब इस दौरान उप-राष्ट्रपति तो बहुत दूर की बात है उन्हें ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ने की अनुमति न दी जाती। खुले आम भ्रष्टाचार करने वाला नेता राजनीति में इतनी अहमियत क्यों पाता रहा, इसका जवाब राजनीतिक दलों को देना चाहिए। धीमी न्यायिक प्रक्रिया के चलते भले ही फैसला आने में देरी हुई लेकिन उनके ऊपर लगे आरोप गंभीर थे और विभिन्न पार्टियां अगर अपने तुच्छ राजनीतिक स्वार्थों को तवज्जो न देती तो न जाने कब उनका राजनीतिक अवसान हो चुका होता। पिछले 23 साल के दौरान वह संसद में रहे। नीति-निर्धारण में उनकी अहम भूमिका रही, यह हमारे लोकतंत्र के लिए शर्मनाक नहीं, तो और क्या है। तकरीबन 40 साल के अपने राजनीतिक करियर में उन्हें कई बार दल बदले। इस तरह वह कांग्रेस, जनता पार्टी, लोकदल और समाजवादी पार्टी में सक्रिय रहे।
एक दिन पहले ही बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव भी चारा घोटाले के मामले में दोषी ठहराये गए। इस घोटाले में 1996 में प्राथमिकी दर्ज की गई थी जिसके 17 साल बाद यह फैसला आया। अफसोसजनक बात यह है कि लालू, जयप्रकाश नारायण के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की उपज हैं। इन सब हालातों के बीच एक अहम सवाल यह भी खड़ा हुआ है कि रशीद मसूद और लालू यादव जैसे सांसद जिस संसद में बैठे हों वह भला भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे का सख्त लोकपाल कानून कैसे पास कर सकती है. सवाल यह भी है कि अगर आज लालू प्रसाद यादव की राजनीतिक हैसियत बड़ी होती, मसलन उनके 10-15 सांसद होते तो क्या मामले को दबाने के लिए केंद्र सरकार पर उनका दबाव काम नहीं करता? वैसे भी सीबीआई के पूर्व महानिदेशक जोगिंदर सिंह ने माना ही है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल ने उनसे चारा घोटाले के मामले को धीमा रखने के लिए कहा था।
इन दो फैसलों को अभूतपूर्व कहकर हमें चुप हो जाने की जरूरत नहीं है। इन दोनों मामलों में देखें तो लालू और रशीद को कोई राजनीतिक नुकसान नहीं हुआ। हालात का फायदा उठाकर दोनों ने जमकर सत्ता की मलाई काटी है। भ्रष्टाचार से कमाई गई संपत्ति अब भी इनके पास है और अभी इन्हें अंतिम रूप से सजा मिलने में हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट में 10-15 साल और लग सकते हैं. मामला सामने आने के बाद से ही अगर ये लोग जेल जाते, इनकी संपत्ति जब्त होती तो वह असली सजा होती। http://www.aamaadmiparty.org
Es liye to sare dal eak hokar aana hajare va kejrival ki khilapat karte hai.