मुसीबतें नहीं ये मौके हैं कामयाबी के

डा. रमेश अग्रवाल
डा. रमेश अग्रवाल
जिस तरह हर किताब,दही से निकले मक्खन की तरह इसके लेखक के जीवन भर का निचोड़ हुआ करती है ठीक उसी तरह हर इंसान का जीवन भी अपने आप में अनुभवों की एक पूरी किताब होता है। दुनिया से गुजरे ऐसे ही हजारों- हजार इंसानों के जीवन का निचोड़ लिये अनुभव की ऐसी ही हजारों किताबों की रोशनी ने इंसान को उस मुकाम तक पहुंचाया है जहां आज वह खड़ा है।
वे लोग निश्चित रूप से सौभाग्यशाली होते हैं जिन्हें अपने अनुभव की किताब आने वाली पीढ़ी के साथ बांटने का सुअवसर मिलता है। विवेकानंद केन्द्र के हिन्दी प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित पत्रिका,केन्द्र भारती की ओर से ,युवाओं को प्रेरित करने वाला एक कालम जीने की ज़िद लिखने का अवसर मुझे मिला है जिसके लिये मैं केन्द्र का ह्रदय से आभारी हूं। चूंकि सोश्यल मीडिया के अपने पाठकों से मुझे बेशुमार प्यार मिला है अत: अपने इन्हीं विचारों को मैं पत्रिका में छपने के साथ ही आप सबके साथ भी शेयर करता रहूंगा। अपनी बात की शुरुआत से पहले ही यह स्पष्ट कर देना सार्थक समझता हूं कि इस अवसर का मिलना मैं इसलिये अपना अधिकार नहीं समझता कि मेरे जीवन की उपलब्धियां अन्य सफल लोगों के जीवन की तुलना में असाधारण हैं मगर यह सच है कि मंजिल तक पहुंचने के लिये मेरे सफर की शुरुआत जिस मुकाम से हुई उसका फासला उस दूरी से दुगुना अवश्य था जितनी दूरी आम आदमी को अपनी मंजिल तक तय करनी होती है।
उम्र की पहली ही सीढ़ी पर कुदरत ने दोनों पैर मजबूरी की उन बेड़ियों में जकड़ दिये जो किसी भी इन्सान को जमाने का मोहताज बनाने के लिये काफी है। शुरुआत में ये बेड़ियां शरीर नहीं आत्मा पर बोझ लगीं मगर शायद इसी बोझ ने आत्मा को बोझ उठाने का अभ्यास भी कराया।
जीवन की पहली सीढ़ी पर ही यह अध्याय सीखने का मौका मिला कि वक्त के किसी मोड़ पर अचानक सामने आई विपरीत परिस्थितियां दरअसल मुसीबत नहीं बलि्क वे मौके हैं जो हमें औरों से अलग और कुछ खास बनाने के काम आने वाले हैं। किसी नौकरीपेशा व्यकि्त को अचानक यदि बेरोजगार हो जाने की सूचना मिले तो वह हड़बड़ा कर कभी किस्मत तो कभी ईश्वर को कोसने लगता है। मगर इन्हीं परिस्थितियों को चुनौती मान कर कोई अन्य व्यकि्त अपनी रूचि और काबलियत का उपयोग कर ऐसा व्यवसाय आरम्भ कर देता है कि उसे लगने वाला अभिशाप आने वाले समय में उसके लिये वरदान साबित होता है।महात्मा गांधी को अगर उनके आरंभिक जीवन काल में अंग्रेजों से व्यक्तिगत अपमान न झेलने पड़े होते तो उनका संकल्प उन्हें एक अमर महापुरुष न बनाता। बिल गेट्स ने अपने आरंभिक दिनों में रोडवेज इंजीनियरों के लिये उपयोगी यातायात के आंकड़े जुटाने का व्यवसाय आरंभ किया मगर जिस दिन उन्हें अपने काम का प्रजेन्टेशन करना था उनकी मशीन खराब हो गई और उनकी संभावित आमदनी का रास्ता बंद हो गया मगर इसी बंद रास्ते ने आगे चल कर उन्हें खरबपति बनाने वाली माइक्रोसोफ्ट कंपनी की स्थापना का रास्ता खोला ।थामस एडिसन बचपन से ही श्रवण शकि्त से वंचित थे। उन्हें मंद बुद्धि कह कर स्कूल से निकाल दिया गया। मगर इसी प्रताड़ना को उन्होंने वरदान बना लिया और घर पर मिले अतिरिक्त समय का लाभ उठा कर बिजली के बल्ब का आविष्कार कर डाला। विश्व प्रसिद्द संगीतकार बीथोवन को भी स्कूल से निकाल दिया गया था। बदकिस्मती से उनकी भी श्रवण शकि्त धीरे धीरे लुप्त होती गई मगर उन्होंने अपने जीवन की चार सर्व श्रेष्ठ रचनाएं तब लिपिबद्ध कीं जब वे पूरी तरह बहरे हो चुके थे। बीथोवन ने कहा बीथोवन संगीत लिख सकता है क्योंकि वह और कुछ नहीं कर सकता।
बगैर इम्तहान दिये कोई पास नहीं होता। समय समय पर जीवन में आने वाली मुसीबतें ऐसे ही छोटे बड़े इम्तहान हैं जिन्हें देना अथवा न देना हमारी मर्जी पर निर्भर करता है। इन इम्तहानों को न देकर हम किसी आम इन्सान की जिंदगी जीने के लिये स्वतंत्र हैं मगर याद रहे आम से कुछ खास तब ही बना जा सकता है जब न सिर्फ हम इम्तहान में बैठें बलि्क धैर्य, सूझबूझ और युकि्त के साथ इनमें अच्छे नम्बर भी लेकर आयें। कुल मिला कर मुसीबतें ईश्वर द्वारा हमें असाधारण बनने के लिये दिये गये मौके हैं जो हर किसी को नहीं मिला करते।

श्रंखला की अगली कड़ी 7 जून को..।

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