ऐसे सादगी भरे और निष्ठावान राजनेता अब कहां
-प्रकाश चंद बिश्नोई- बाड़मेर सरहदी जिले बाड़मेर राजनीती के केंद्र बिंदु रहे अब्दुल हादी। हादी का अपना प्रभाव था। अपने लोगो के बीच बेहद सहज रहते थे। बाड़मेर की राजनीती दशकों तक उनके इर्द गिर्द घुमती रही। उनके जाने के बाद उनकी जगह को कोई भर नहीं पाया।
चौहटन के बुरहान का तला निवासी अल्हज अब्दुल हादी का जन्म 5 मई 1926 को हुआ था. उन्होंने एक संघर्ष से भरे जीवन का नेतृत्व किया सात बार विधायक चुने गए थे . वह एक प्रसिद्ध मार्शल जाती शम्मा ( सिंधी ) परिवार से थे . उनका परिवार धार्मिक अनुयायी थे . उनके पिता अलहाज़ मोहम्मद हसन अपने समय के एक महान मौलवी थे . वह सिंधी भाषा के कवि थे . और सिंधी , उर्दू , फारसी और अरबी भाषा के विद्वान थे . अब्दुल हादी 1999 में ‘ बयाज़ ऐ कोसरी के रूप में सिंधी भाषा में अपने पिता की कविता प्रकाशित कराई . विभाजन से पहले, सिंध और राजस्थान के बहुत करीब थे . सिंध एक समृद्ध क्षेत्र था . शिक्षा के क्षेत्र में रुचि रखने वालों के उन दिनों में ज्ञान का एक बड़ा भंडार था। अब्दुल हादी ने अपने पिता की बहुत सेवा की।
अब्दुल हादी को सिन्धी ,उर्दू ,हिंदी राजस्स्थानी और अंग्रेजी का भुत ज्ञान था। वो सिंधी सूफी संत कविशाह अब्दुल भिटाई की रिसाला और कुरआन के नियमित पाठक थे वे रोज इनका पाठ करते। हादी राज्य के स्वतंत्रता सेनानी जयनारायण व्यास के अनुयायी थे ,राजस्थान के प्रथम मुख्यमंत्री रहे जय नारायण व्यास। उन दिनों जमींदारी प्रथा के खिलाफ चले आन्दोलनो में भी हादी ने निभाई। हादी ने आधुनिक राजस्थान की रचना साकार करने के लिए राजनीती में कदम रखा। बुरहान का तला के वो किशोर अवस्था में सरपंच बने। उन दिनों किसानो पर लगे भूमि कर के खिलाफ भी उन्होंने जंग लड़ी। किसानो को रहत दिलाई।
हादी 1959 में चौहटन पंचायत समिति के प्रधान बने . वे 1972 से 1980 तक केन्द्रीय सहकारी बैंक के अध्यक्ष रहे। बाड़मेर जिले के लिए दो बार कांग्रेस के जिला अध्यक्ष भी रहे . 11 साल के लिए, 1995-2006 के दौरान वह अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के एक सदस्य रहे। उन्होंने उनीस सौ तिरेपन में सांचोर ,बाड़मेर से विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीते ,विधायक बने ,1967 ,1971 ,1975 ,1985 ,1990 ,1999 और 2004 में भी विधायक बने। सात बार विधायक रहे जिसमे दो बार गैर कांग्रेसी दलों से विधायक बने।
अब्दुल हादी एक चरित्र और गुणों से भरपूर व्यक्तित्व के धनि थे ,. वह एक अनुशासित राजनीतिज्ञ थे ,हादी ने सीमा क्षेत्र के लोगों की नि: स्वार्थ , साफ़ दिल , सबसे धर्मनिरपेक्ष के साथ सेवा की। . उन्होंने बारीकी से नेहरू , मौलाना आजाद और रफी अहमद किदवई की तरह आजादी के बाद भारतीय राजनीतिक नेताओं की पहली पीढ़ी के साथ जुड़े थे . बाड़मेर के लोगो में हादी के लिए गहरा सम्मान था.श्रीमती इंदिरा गाँधी के वे हमेशा करीबी रहे ,इंदिरा गाँधी खास तौर से उन्हें बुलाती थी। अहमद पटेल से उनकी काफी नजदीकियां थी। हादी , दिखावा उन्हें बिलकुल पसंद नहीं था , वो हमेशा परम्परागत पायजामा और कुरता पहनते थे।
अब्दुल हादी में शील , इमानदार ,आतिथ्य परण और धैर्य जैसे महान व्यक्तिगत गुण शुमार थे और उन्होंने एक मितव्ययी जीवन शैली का नेतृत्व किया.भ्रष्टाचार के वे हमेशा खिलाफ रहे ,वो राजनीती में थे तब बाड़मेर में एक उप मजिस्ट्रेट भ्रष्ट था ,किसानो से खुले आम रिश्वत लेता था ,हादी ने उसे कई बार समझाया ,चेयावानी भी दी मगर वो नौकरशाह नहीं मन तो हादी ने भ्रष्टाचार निरोधक विभाग से संपर्क कर खुद एक किसान बन उप मजिस्ट्रेट को रिश्वत देने पहुंचे और उन्हें य्रेप कराया। रिश्वतखोर को सज़ा तक दिलाई। हादी ने चौहटन क्षेत्र में डकैती का जोरदार विरोध किया था जिससे नाराज होकर डकैतों ने हादी को मरने की योजना बना उनके गाँव पहुंचे मगर वो घर पर नहीं थे ,उनका भाई सौ रहा था डकैतों ने उनके भाई की हत्या कर दी। फिर भी वो विचलित नहीं हुए अपना संघर्ष जरी रख। हादी विकास को समर्पित इमानदार नेता थे। लोगो को स्वाभिमान से जीने की सीख देते ,इसीलिए वो व्यक्तिगत लाभ देने के विरोधी रहे उन्होंने क्षेत्र में सड़क, पानी की आपूर्ति, बिजली , अस्पताल, स्कूल , हॉस्टल , समुदाय घर और अन्य सार्वजनिक सुविधाओं जैसे जनोपयोगी सेवाओं के लिए अपने प्रयास किए . समाज के उत्थान के लिए शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है . शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सभी को उसका सबसे अच्छा प्रयास किया .
क्षेत्र के छात्रों के लिए बाड़मेर में एक छात्रावास के निर्माण में मदद की. उन्होंने शिक्षा के महत्व पर बल दिया. आर्थिक और नैतिक रूप से गरीब छात्रों की मदद के लिए इस्तेमाल किया .हादी नहा विरोधी थे उन्होंने कभी अफीम ,शराब का प्रचलन अपने चुनावो में नहीं किया ,हादी मृत्यु भोज के खिलाफ थे ,उन्होंने कभी परिवार में औसर मौसर मृत्युभोज नहीं किया। हादी इमानदार और सादगी पसंद थे ,तल्ख़ टिपणी करने से चुकाते नहीं थे ,लोग उन्हें सीमान्त गांधी के रूप में जानते थे ,अब्दुल हादी ने कभी राजनीती में महत्वकांक्षा नहीं राखी ,अंतिम दिनों में श्रीमती सोनिया गाँधी भी अब्दुल हादी के हाल जानती रहती ,साथ ही अशोक गहलोत जैसे राजनीतिग्य उनके अनुयायी रहे। हादी अपने क्षेत्र की समस्याए लेकर उनके साथ ही प्रशसनिक अधिकारियो के पास आ जाते ,बाड़मेर की राजनीती के वे धुरंधर रहे ,उनकी रणनीति को कोई चुनौती देने वाला नहीं था ,किसान नेता गंगाराम चौधरी उनके लंगोटिए थे ,मगर अंतिम दिनों में उनके बीच दुरिया बड़ी। आमने सामने चुनाव लदे ,हादी ने अपने पुराने मित्र से मात भी खाई। बहरहाल राजनीती में हादी मील का पत्थर थे। उनकी स्वच्छ राजनीती एक मिशाल थी। छ नवम्बर दौ हज़ार दस को हादी साब ने अंतिम सांस ली।
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उनके परिवार में उनके बड़े पुत्र अभी राजनीती में हें ,अब्दुल गफूर चौहटन के प्रधान रहे ,जिला उप प्रमुख भी हें ,अभी राज्य सरकार में श्रम कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष हें ,उनकी पुत्र वधु शम्मा खान चौहटन की प्रधान हें ,शिव से विधायकी की प्रमुख दावेदार भी ,उनकी राजनीती विरासत उनके छोटे पुत्र गफूर अहमद संभाल रहे हें।
yah aartical varisht patrakar chandan singh bhati ka likha he jo unki blog http://www.bmrnewstrack.blogspot.com par laga hen
http://bmrnewstrack.blogspot.in/2013/10/blog-post_6629.html
Shriman ji un se baat kar ke ye post huaa hain kuch maine change kiya hain…
Very Nice