पता नहीं क्यों पुलिस अपनी सामन्तवादी सोच को नहीं बदलती और लकीर के फकीर बनकर अपनी कार्यप्रणाली में कोई बदलाव नहीं करना चाहती ? जब भी पुलिस के किसी आई.पी.एस. अधिकारी का ट्रांसफर होता है या रिटायरमेन्ट होता है तो पुलिस लाईन में क्वाटर गार्ड से बाहर दरवाजे तक समस्त पुलिस अधिकारी और सिपाही पहले तो उस अधिकारी को कुर्सी पर बिठाकर कन्धों पर उठाते हैं फिर उसको कार में बिठाकर रस्से से खींचते हुए पीछे से धक्के देकर कार को बाहर तक छोड़ने आते हैं विदाई देते हैं ऐसा लगता है कि जैसे धक्के मारकर बाहर निकाल रहे हों कि कहीं दुबारा वापस मत आ जाना, और अगर ये परम्परा है तो फिर डिप्टी एस.पी., एडीशनल एस.पी. को भी ऐसे क्यों विदाई नहीं दी जाती ? उन्हें तो थानों एवं दफ्तरों में ही माला पहनाकर रूखसत कर देते हैं सिर्फ धक्के देकर विदा करने का रिवाज आई.पी.एस. अधिकारीयों के लिये ही है।
राजेश टण्डन, वकील, अजमेर
