पुलिस की सामन्तवादी दकियानूसी सोच

pपता नहीं क्यों पुलिस अपनी सामन्तवादी सोच को नहीं बदलती और लकीर के फकीर बनकर अपनी कार्यप्रणाली में कोई बदलाव नहीं करना चाहती ? जब भी पुलिस के किसी आई.पी.एस. अधिकारी का ट्रांसफर होता है या रिटायरमेन्ट होता है तो पुलिस लाईन में क्वाटर गार्ड से बाहर दरवाजे तक समस्त पुलिस अधिकारी और सिपाही पहले तो उस अधिकारी को कुर्सी पर बिठाकर कन्धों पर उठाते हैं फिर उसको कार में बिठाकर रस्से से खींचते हुए पीछे से धक्के देकर कार को बाहर तक छोड़ने आते हैं विदाई देते हैं ऐसा लगता है कि जैसे धक्के मारकर बाहर निकाल रहे हों कि कहीं दुबारा वापस मत आ जाना, और अगर ये परम्परा है तो फिर डिप्टी एस.पी., एडीशनल एस.पी. को भी ऐसे क्यों विदाई नहीं दी जाती ? उन्हें तो थानों एवं दफ्तरों में ही माला पहनाकर रूखसत कर देते हैं सिर्फ धक्के देकर विदा करने का रिवाज आई.पी.एस. अधिकारीयों के लिये ही है।

राजेश टंडन
राजेश टंडन
यह पुलिस की सामन्तवादी सोच का परिचायक है और अंग्रेजों का बनाया हुआ रिवाज है क्यों कि पहले एस.पी. सिर्फ अंग्रेज ही होते थे और वो गुलामों की तरह मातहतों से व्यवहार करते थे और उनके कन्धों पर बैठकर विदा होते थे अब ये आज के अंग्रेज उस परम्परा का आज भी निर्वहन कर रहे हैं, चिन्तन का विषय है। परम्पराओं को कानूनी मान्यताएं देेने का जो अंग्रेजों का एक सिलसिला था यह विदाई का ढंग उसी का एक अंग है अंग्रेज तो चले गए पर गुलामी की सामन्तवादी परम्पराएं छोड़ गए जिनको आज भी बिना वजह ढोया जा रहा है।
राजेश टण्डन, वकील, अजमेर

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