अब नहीं बनते हमराही, षिवपपेरा, कक्का जी और कबीर जैसे सीरियल
छतरपुर /खजुराहो। अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में जहां दिन भर चार अलग अलग सितारा होटलों में 13 देषों की विभिन्न भाषाओं में बनी 50 फिल्मों का क्रमबद्ध तरीके से प्रदर्षन चल रहा है तो वहीं प्रतिदिन किसी एक विषय को लेकर सार्थक संवाद भी हो रहा है। तीसरे दिन सोमवार को खजुराहो के पांच सितारा होटल ताज चंदेला में धारावाहिक और सिनेमा में बढ़ते बाजार वाद तथा जीवन मूल्यों पर विस्तार से चर्चा हुई। इस चर्चा में धारावाहिक निर्माताओं ने हिस्सा लिया, जिसमें अनिल चौधरी, चाणक्य सीरियल में चाणक्य की भूमिका जीवंत करने वाले डा. चंद्रप्रकाष द्विवेदी, सहायक निर्देष नित्या जी एवं जाने माने फिल्म समीक्षक अली पीटर जॉन ने हिस्सा लिया।
चर्चा के दौरान चाणक्य के नाम से मषहूर हो चुके डा. चंद्रप्रकाष द्विवेदी ने बताया कि पहले हमराही, षिवपपेरा, कक्का जी और कबीर जैसे अच्छी श्रेणी के सीरियत बना करते थे। उस वक्त सीरियल निर्माताओं की प्राथमिकता स्क्रिप्ट,नाटक और डायलॉग होती थी। निर्देषक की कोषिष होती थी कि कलाकार आंखों के इषारों और भाव भंगिमाओं से अपनी बात कह दे, उस वक्त सीरियलों में मानवीय जीवन के मूल्य, ज्ञान और संदेष भी समाहित होता था। जब डा. प्रकाषचंद्र द्विवेदी ने चाणक्य सीरियल बनाया और चंद्रप्रकाष द्विवेदी ने अपने भाई के निर्देषन चाणक्य की भूमिका निभाई तो शुरू में तो सीरियल खूब चला लेकिन बाद में उसे बंद करना पड़ा। अब जीवन के मूल्य बाजार वाद में खो गये हैं। एक जमाना था जब रेडियों और टेलीविजन घर में रखने के लिये लायसेंस लेना होते थे लेकिन अब सेटेलाईट का जमाना है और दुनियां में 700 से अधिक चैनल काम कर रहे हैं। उन्होने कहा कि रामायण, महाभारत जैसे गुणवत्ता पूर्ण सीरियलों का अब अभाव हो गया है। क्योंकि पहले धारावाहिक का उद्देष्य षिक्षा प्रसार प्रसार होता था, सेटेलाईट आने के बाद प्रसार षिक्षा और प्रचार उद्देंष्य हुआ ओर अब केवल प्रचार प्रसार ही सीरियल का उद्देष्य हो गया है। चर्चा में यह बात भी सामने आई कि सबसे पहले कॉलगेट कंपनी ने धारावाहिकों को प्रायोजित करना शुरू किया, जब धीरे धीरे यह चलन बढ़ा तो धारावाहिकों की गुणवत्ता समाप्त हो गई। भागमभाग और ज्यादा धन कमाने के चक्कर में सांस्कृतिक मूल्यों का हनन होता जा रहा है।
महिलाओं की नकारात्मक छवि दुखदाई
चर्चा में हिस्सा ले रहीं धारावाहिकों की सहायक निर्देषक नित्या जी ने बेवाक शब्दों में कहा कि वे धारावाहिकों में महिलाओं की नकारात्मक छवि प्रस्तुत करने से बेहद दुखी हैं। वे कहती हैं कि धारावाहिकों में किचिन पॉलिटिक्स दिखाकर महिलाओं की ऐसी छवि बना दी गई है कि महिलायें केवल किचिन पॉलीटिक्स ही करती हैं। उन्होने कहा कि महिलायें और भी बहुत कुछ करती हैं। वे महिलाओं की अच्छी छवि पर धारा वाहिक बनाना चाहती हैं, वे चाहती हैं कि महिलाओं को किचिन पॉलीटिक्स वाली छवि से बाहर निकाला जाये और उनकी नाकारात्मक छवि को खत्म कर एक अच्छी इमेज बनाई जाये।
सराही गई निडर
फिल्म फेस्टिबिल के तीसरे दिन होटल ऊषा बुन्देला में प्रदर्षित की गई, फिल्म निडर की मुम्बई के फिल्मकारों ने जमकर सराहना की। इस फिल्म के निर्माता दिलीप चौकीकर हैं तथा गीतकार मनोज श्रीवास्तव हैं। इस फिल्म का निर्माण बेतूल जिले के एक स्थानीय कलाकार ने किया है, इस फिल्म में लता मंगेषकर सम्मान से पुरूषकृत मध्यप्रदेष के आकृति महरा ने गाने गाए हैं। यह फिल्म पूरी तरह से पारीवारिक, सामाजिक और षिक्षाप्रद है, इस पूरी फिल्म में मध्यप्रदेष के कलाकारों ने काम किया आज जब स्थानीय स्तर पर बनी फिल्म निडर का पहली बार प्रदर्षन हुआ तो मुम्बई के फिल्मकार भी उसे देखकर दंग रह गए।
Santosh Gangele
