मुनि श्री ने आगे कहा की मौत के आते ही सब कुछ छूट जाता है वो देख तड़पता मानव सबके सामने भीख मांगता है प्राणों के भीख की कही जीवन छूट ना जाये….किन्तु वास्तविक स्थिति यह है की जीवन का उपयोग सत्य के लिए हुआ ही नहीं और जब सत्य का सामना जुटाने की परिस्थिति आई तब सब मूल्य रहित लगता था। मृत्यु देह का है शास्वत आत्मा का नहीं देह की यात्रा हर जन्मों में होती ही रही है लेकिन मृत्यु का दर्शन हुआ ही नहीं, लेकिन बार- बार मृत्यु के डर से भयभीत मानव मरता ही रहा है। उसके बाद भी मौत को मारने की कोशिश एक पल भी पुरषार्थ नही किया। मृत्यु ही मर गया तो निर्भयता की यात्रा से कौन रोक सकता है। मृत्यु का जन्म ही ना हो वही सत्य का शिखर है। पृथ्वी सारी मौत को बचाने की कोशिश करती है लेकिन प्रभु महावीर के संदेश के बिना मृत्यु को पहचानेंगे कैसे? जब तक प्रभु के संदेशो को ग्रहण नहीं करेंगे अहिंसा पथ के पथिक नहीं बनेंगे तब तक हम मृत्यु पर विजय नहीं प्राप्त कर सकते।
मृत्यु को मारना (विजय प्राप्त करना) यानि परम त्याग से जीवन जीना…. आपका त्याग अपूर्व सौंदर्य को लाता है और उस सौंदर्य की प्राप्ति जीवन को धन्य बना देती है।
-अशोक जैन
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