हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस नेता वीरभद्र सिंह ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। वे हिमाचल के छठी बार सीएम बने हैं। वीरभद्र सिंह के साथ नौ और मंत्रियों को शपथ दिलाई गई है। इनमें वरिष्ठ नेता विद्या स्टोक्स, कौल सिंह ठाकुर, जीएस बाली, सुजान सिंह पठानियां, ठाकुर सिंह भरमौरी, मुकेश अग्निहोत्री, सुधीर शर्मा, प्रकाश चौधरी और धनी राम शांडिल शामिल है। कांग्रेस की कैबिनेट टीम में पांच राजपूत मंत्री है जबकि तीन ब्राहमण और दो आरक्षित श्रेणी से ताल्लुक रखते हैं। ठाकुर सिंह भरमौरी चंबा जनजातीय क्षेत्र से संबंधित है। कांग्रेस की कैबिनेट टीम में वीरभद्र समर्थकों के अलावा वीरोधियों में कौल सिंह और जीएस बाली को भी जगह मिली है। आज शिमला के एतिहासिक रिज मैदान पर सुबह पौने ग्यारह बजे सभी मंत्रियों को राज्यपाल उर्मिला सिंह ने शपथ दिलाई।
इससे पहले हिमाचल प्रदेश की भ्रष्टाचार निरोधक अदालत के न्यायाधीश बीएल सोनी ने बहुचर्चित सीडी मामले में वीरभद्र सिंह को बाइज्जत बरी कर दिया गया। सोमवार को खचाखच भरी अदालत में न्यायाधीश ने उन्हें बरी करते हुए कहा कि उनके विरुद्ध लेन-देन के आरोपों को अभियोजन पक्ष सिद्ध नहीं कर पाया, अत: उन्हें बरी किया जाता है। सोमवार को आखिरी दिन जिन दो गवाहों की गवाही थी, उसे निपटाने के बाद इस पर दोनों पक्षों की ओर से बहस भी हुई और दोपहर बाद न्यायाधीश ने फैसला सुनाया।
कांग्रेस नेता मेजर विजय सिंह मनकोटिया ने जुलाई, 2007 में एक सीडी जारी की थी, जिसमें वीरभद्र सिंह, उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह व दो अन्य अधिकारियों महेंद्र सिंह व केएन शर्मा के मध्य किसी लेनदेन की बात रिकार्ड थी। इन दो अधिकारियों की मृत्यु हो गई थी, अब इस मामले में वीरभद्र सिंह व उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह ही आरोपी थे। 2008 में कांग्रेस के सत्ता से बाहर जाने के पश्चात इस मामले में जांच शुरू हुई और मामला सतर्कता विभाग को सौंपा गया।
2009 में एफआइआर दर्ज हुआ और जांच के बाद चालान शिमला की भ्रष्टाचार निरोधक अदालत में पेश किया गया। इस वजह से वीरभद्र को केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा था। इसके बाद सिंह प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने। इसी दौरान ट्रायल कोर्ट ने सुनवाई शुरू की। मामले के तीन अहम गवाह जो अभियोजन पक्ष ने शिकायतकर्ता बनाए थे-कपिल मोहन, वीसी जैन व विजय सिंह मनकोटिया पहले बयान से पलट गए और सारा मामला धराशायी होता नजर आया। अभियोजन पक्ष ने करीब 50 गवाह पेश किए परंतु वे अपने केस को बचाने में असफल रहे और वीरभद्र को दोषी सिद्ध नहीं कर सके। अदालत ने उन्हें साक्ष्यों की कमी व गवाहों के बयानों को देखते हुए बरी कर दिया।