गुमनामी के अंधेरे में नेताजी के अंगरक्षक को मिली मौत

आजाद हिंद फौज के सिपाही और नेता जी सुभाष चंद्र बोस के अंगरक्षक रहे हवलदार काहन सिंह की 64वें गणतंत्रता दिवस से दो दिन पहले मौत हो गई। विडंबना यह है कि प्रशासन को इस बात की जानकारी ही नहीं थी कि उनके इलाके में ऐसा जांबाज भी था।

जवानी में भारत की आजादी के लिए लड़ा यह सिपाही अपने अंतिम दिनों में गुमनामी के अंधेरों में रहा। उनका अंतिम संस्कार भी सामान्य रूप से हुआ। न तो प्रशासन का कोई अधिकारी अंत्येष्टि में आया और न ही कोई नेता उन्हें अंतिम विदाई देने पहुंचा। हालांकि, अंतिम संस्कार के बाद पूर्व मंत्री डॉ. रमेश चंद्र और एमएलसी रविंद्र शर्मा इस जांबाज के घर शोक जताने जरूर पहुंचे।

काहन सिंह के पुत्र जोगेंद्र पाल ने बताया कि उन्होंने अपने पिता के देहांत के बारे में नौशहरा की 166वीं ब्रिगेड को सूचना दी थी, लेकिन वहां से कोई अधिकारी नहीं आया। हालांकि, ब्रिगेड के अधिकारी इस बात से इन्कार कर रहे हैं। वहीं, जिला आयुक्त सौगात बिसबास ने कहा कि हमें इसकी जानकारी नहीं थी और न ही किसी ने हमें इसके बारे में बताया। प्रशासन की अनदेखी का पता इस बात से भी चलता है कि उन्हें पेंशन के अलावा कभी कोई सरकारी मदद नहीं मिली। यह सरकारी की ओर से अनदेखी की एक मिसाल है। कभी कोई उनका हाल तक जानने नहीं पहुंचा।

काहन सिंह के परिवार में दो पुत्र, बहुएं और तीन बेटियां हैं, जबकि पत्नी का देहांत करीब 20 साल पहले हो गया था।

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