बीकानेर। 23 सितम्बर। स्वाधीनता से पूर्व एवं स्वाधीनता के उपरान्त भारतीय जनमानस को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंति पर उनके विराट व्यक्तित्व पर हिंदी विश्वभारती अनुसंधान परिषद की ओर से संगोष्ठी का आयोजन किया गया। आयोजन के संबंध में जानकारी देते हुए हिंदी विश्वभारती अनुसंधान परिषद के सचिव, वरिष्ठ साहित्यकार एवं इतिहासविद् डॉ. गिरिजाशंकर शर्मा ने कहा कि श्रीरामधारी सिंह दिनकर ने हर विधा में अपनी बात रखी। उन्होंने धर्म, अध्यात्म, विज्ञान, राजनीति, संस्कृति, मान्यता, राष्ट्रीय चेतना, श्रंृगार रस जैसे सभी साहित्यरस को अपनी रचनाओं में प्रकट किया। नागरी भण्डार के विचार कक्ष में आयोजित इस संगोष्ठी की अध्यक्षता संगीतज्ञ एवं साहित्यमर्मज्ञ डॉ. असित गोस्वामी ने की जबकि मुख्य अतिथि युवा साहित्यकार संजय पुरोहित थे। वरिष्ठ ओज कवयित्री श्रीमती प्रमिला गंगल विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थीं। अपने अध्यक्षीय उदबोधन में डॉ.असित गोस्वामी ने कहा कि रामधारी सिंह दिनकर का साहित्य विशद् साहित्य है। उनकी रचनाएं कालजयी है। दिनकर कालजयी महाकाव्यों के रचयिता थे, जिनका महत्व किसी काल में कम नहीं हो सकता। उन्होंने युवा लोगों का आह्वान किया कि वे उनकी रचनाओं का अध्ययन करें, जिससे उनमें सांस्कृतिक चेतना का विकास हो। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि युवा साहित्यकार श्री संजय पुरोहित ने कहा कि स्वतंत्रता पूर्व श्री दिनकर विद्रोही कवि के रूप में तो स्वतंत्रता के उपरान्त वे सही मायनों में जनकवि और राष्ट्रकवि के रूप स्थापित हुए। पुरोहित ने कहा कि दिनकर ने पौरोणिक आख्यानों के कर्ण, परशुराम जैसे पात्रों को अपने महाकाव्यों का नायक चुना और उन्हे आधुनिक परिवेश के साथ स्थापित किया। रश्मिरथी, कुरूक्षेत्र, उर्वशी जैसी कालजयी कृतियों के लेखक दिनकर ने अपने जीवनकाल में 34 काव्यसंग्रह और 61 निबंध संग्रह लिखे,जो उनकी प्रज्ञा का उत्कृष्ट उदाहरण है। विशिष्ट अतिथि श्रीमती प्रमिला गंगल ने श्री रामधारी सिंह दिनकर के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विस्तार से वर्णन करते हुए किया वे युगदृष्टा थे। श्रीमती गंगल ने कहा कि दिनकर जी की वाणी जन जन तक पहुंचती थी। स्व.हरिवंशराय बच्चन ने तो उन्हे चार ज्ञान पीठ पुरस्कार प्राप्त होने योग्य बताया तो मूंर्धन्य हजारी प्रसाद द्धिवेदी ने अहिंदी भाषी क्षेत्रों में सर्वाधिक प्रसिद्ध हिंदी कवि की संज्ञा दी।
इससे पूर्व विषय प्रवर्तन करते हुए कार्यक्रम संचालक श्री मोहम्मद फारूख ने कहा कि दिनकर जी हिंदी के प्रमुख लेखक,कवि एवं निबंधकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में विख्यात हुए। उनकी कविता में ओज, विद्रोह,आक्रोश व क्रांति की पुकार अनुभूत की जाती है। संगोष्ठी में विचारों को आगे बढाते हुए वरिष्ठ शिक्षाविद् डॉ. मेघराज शर्मा ने कहा कि दिनकर जी राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना के कवि थे। दिनकर रचित ‘शुद्ध कविता की खोज‘ एकऐसी पुस्तक हैजिसमें श्रेष्ठतम कवियों के विचारों को समाहित किया गया है। इस अवसर पर उन्होंने दिनकर रचित ‘शंकर‘ कविता के कुछ अंश प्रस्तुत किये। वरिष्ठ पत्रकार श्री रमेश महर्षि ने राष्ट्रकवि दिनकर के दर्शन पर प्रकाश डालते हुए उनकी रचनाएं ‘हारे को हरिनाम‘ व ‘कुरूक्षे़त्र के कुछ अंशों का वाचन किया। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.कृष्णलाल बिश्नोई ने दिनकर जी को एक दबंग कवि की संज्ञा देते हुए साहित्यकारों को उनकी जयंति पर याद करने की श्रंृखला को एक शुभ संकेत बताया। वरिष्ठ व्यंग्यकवि श्री गौरीश्ंाकर मधुकर ने दिनकर जी की कविता ‘सिंहासन खाली करो, कि जनता आती है‘ के संस्मरण साझा किये तो साथ ही श्री दिनकर एवं पं. नेहरू के प्रसंग का भी उल्लेख किया। डिंगल व राजस्थानी के वरिष्ठ कवि श्री गिरधारीदान रतनू ने जनकवि दिनकर के व्यक्तित्व पर अपनी बात रखते हुए कहा कि कवि भविष्यदृष्टा होता है। नैतिक पतन से घिरे वर्तमान काल में दिनकर जी जैसे रचनाकारों की रचनाएं राष्ट्रभक्ति एवं सांस्कृतिक चेतना का आधार बन सकती है। इस मौके पर युवा शाईर श्री अमित गोस्वामी ने श्री रामधारी सिंह दिनकर जी के सर्वाधिक प्रशंसित महाकाव्य ‘रश्मिरथी‘ के कर्ण चरित्र को सस्वर वाचन कर महान कवि के काव्य वैभव से परिचित कराया। इस अवसर पर व्यंग्यकार एवं खेल लेखक श्री आत्माराम भाटी ने भी ‘रश्मिरथी‘ कविता के अंशों का वाचन किया। हिंदी विश्वभारती अनुसंधान परिषद के अध्यक्ष डॉ. घनश्याम आत्रेय ने इस प्रकार के आयोजनों से युवा पीढी को जोड़ने की आवश्यकता पर बल देते हुए श्री रामधारी सिंह दिनकर को विरला कवि बताया। इस मौके पर साहित्यानुरागी श्री मयंक पारीक, श्री विकास पारीक और श्री विमल आदि भी उपस्थित थे।
संवाद प्रेषक डॉ. गिरिजा श्ंाकर शर्मा
सचिव, हिंदी विश्वभारती अनुसंधान परिषद,
नागरी भण्डार,बीकानेर
